(hindi) The Effective Executive
इंट्रोडक्शन
ऐसा क्यों है कि कुछ कंपनियां कामयाब हो जाती हैं और बाकी फेल? कुछ executives अच्छा परफॉर्म कर ज़्यादा रिजल्ट डिलीवर कर पाते जबकि दूसरे नहीं? क्या वो इन स्किल के साथ पैदा हुए हैं या उन्हें सिखाया जाता है कि उन्हें क्या करना है? इन कंपनियों और टॉप executives का राज़ क्या है जो उन्हें मार्केट में बने रहने में मदद करता है? वो ऐसा क्या अलग और ख़ास करते हैं?
किसी भी आर्गेनाइजेशन में एक एग्जीक्यूटिव बहुत ही इम्पोर्टेन्ट इंसान होता है. वो जो भी डिसिशन लेता है उसका बड़े स्केल पर आर्गेनाइजेशन पर असर होता है. उनके द्वारा लिए गए डिसिशन या उठाए हुए कदम किसी भी कंपनी को या तो ऊँचाई पर ले जा सकते हैं या उसे ज़मीन पर पटक सकते हैं. लेकिन एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव अच्छे से जानता है कि उसे क्या करना है और वो सोच समझकर सही डायरेक्शन में कदम उठाता है. आपको ये पता होना चाहिए कि कोई भी ये स्किल सीखकर पैदा नहीं होता.
इस बुक में आप सीखेंगे कि इफेक्टिवनेस एक स्किल है जिसे कोई भी सीख सकता है. आप किसी भी काम को किस तरह करते हैं बस वो मायने रखता है. इस बुक में कुछ ख़ास qualities बताई गई हैं जिनका इस्तेमाल कर इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव सक्सेसफुल हुए हैं. तो क्या आप एक ग्रेट एग्जीक्यूटिव बनने के लिए तैयार हैं जिसे हमेशा याद रखा जाएगा? अगर हाँ, तो ये बुक आपको सिखाएगी कि कैसे.
KNOW THY TIME.
हर एग्जीक्यूटिव के लिए टाइम सबसे इम्पोर्टेन्ट फैक्टर होता है. इसका ज़्यादा से ज़्यादा फ़ायदा उठाने के लिए कई एग्जीक्यूटिव कहते हैं कि अपने काम के लिए पहले प्लान बनाना चाहिए. लेकिन रियल लाइफ में ये मेथड ज़्यादा काम नहीं करता. इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव पहले ठीक से अपने टाइम को एनालाइज करते हैं. फ़िर वो unproductive और बेकार के काम पर लगने वाले समय को कम से कम करने की कोशिश करते हैं. लेकिन हम इंसानों को ठीक से टाइम मैनेज करना ही नहीं आता. असल में, हम अक्सर समय की सुध बुध खो देते हैं.
एक साइकोलॉजिकल एक्सपेरिमेंट किया गया जिसमें लोगों को एक अँधेरे कमरे में रखा गया और वहाँ से बाहर निकलने का कोई रास्ता नहीं था. उन लोगों में सेंस ऑफ़ स्पेस तो बरकरार थी लेकिन उन्होंने जल्द ही अपना सेंस ऑफ़ टाइम खो दिया था. अब इसी एक्सपेरिमेंट को लाइट जलाकर दोहराया गया. उनमें से ज़्यादातर लोग अभी भी समझ नहीं पा रहे थे कि वो उस कमरे में कितनी देर से बंद थे. इसलिए टाइम का ट्रैक खो देना और समय बर्बाद करना हम सभी करते हैं जिसका मतलब ये हुआ कि हर एग्जीक्यूटिव को सीखना होगा कि टाइम को मैनेज कैसे किया जाए.
कई executives को बेकार का काम सौंप दिया जाता है जिस वजह से उनका बहुत टाइम बर्बाद होता है लेकिन जॉब की वजह से उन्हें इस प्रेशर को भी झेलना पड़ता है. एक बार एक एग्जीक्यूटिव ने बताया कि उसकी जॉब का एक हिस्सा ये भी था कि उसे हर रात डिनर मीटिंग अटेंड करनी पड़ती थी. इसमें उसका बहुत समय बर्बाद होता था लेकिन फ़िर भी वो इसे टाल नहीं सकता था. बेकार के काम में समय बर्बाद करना एक एग्जीक्यूटिव के काम का जैसे एक हिस्सा होता है.
इसलिए ज़्यादातर executives अपने डेली रूटीन में कम से कम समय देकर समय बचाने की कोशिश करते हैं. लेकिन ये तो unproductive होना हुआ ना. अगर आप प्रोडक्टिव बनना चाहते हैं तो आपको हर काम या एक्टिविटी के लिए ज़्यादा समय देना चाहिए और अगर आप अपने एम्प्लाइज के साथ एक अच्छा और मज़बूत रिश्ता बनाना चाहते हैं तो आपको उनसे बातचीत करने के लिए भी समय देना होगा.
एक एग्जीक्यूटिव किसी भी बड़े आर्गेनाइजेशन में लीडर का रोल निभाता है और उसे कई इम्पोर्टेन्ट डिसिशन लेने पड़ते हैं. जल्दबाजी में लिया गया डिसिशन अक्सर गलत साबित होता है. आपको कई बार ऐसी प्रॉब्लम का सामना करना पड़ सकता है. ज़्यादातर एग्जीक्यूटिव इसके लिए पूरा टाइम लेते हैं. कमिटमेंट देने से पहले वो कई बार अपने डिसिशन के बारे में सोच विचार करते हैं.
एल्फ्रेड पी. स्लोएन जूनियर सबसे बड़ी मैन्युफैक्चरिंग कंपनी जेनरल मोटर्स के कभी सीईओ हुआ करते थे. ऐसा कहा जाता है कि जब भी कोई प्रॉब्लम खड़ी होती तो एल्फ्रेड कभी भी तुरंत फ़ैसला नहीं लेते थे. वो पहले टेस्ट करने के लिए एक solution लेकर आते थे. कुछ दिनों और हफ़्तों के बाद वो दोबारा उस प्रॉब्लम को एनालाइज करते. अगर फ़िर से उनका डिसिशन वही होता तभी उसे अप्लाई किया जाता था वरना नहीं.
इसी तरह एक दूसरे केस में, एक सीनियर एडमिनिस्ट्रेटिव ऑफिसर लंबे समय से गवर्नमेंट रिसर्च इंस्टिट्यूट में काम कर रहे थे. उन्होंने उस इंस्टिट्यूट में बहुत अच्छे से काम संभाला था लेकिन बाद में उनकी परफॉरमेंस ख़राब होने लगी. अब ना तो उन्हें काम से निकाला जा सकता था और ना ही उनकी मौजूदा पोजीशन से उन्हें नीचे की पोजीशन दी जा सकती थी क्योंकि कंपनी उनके सालों की सर्विस और वफ़ादारी को नज़रंदाज़ नहीं कर सकती थी. लेकिन क्योंकि वो एडमिनिस्ट्रेटिव पोजीशन पर थे तो कंपनी को उनके गलत फ़ैसलों की भारी कीमत चुकानी पड़ रही थी.
उस कंपनी के डायरेक्टर और deputy किसी प्रॉब्लम के बारे में सोच रहे थे लेकिन उसका कोई हल नहीं निकाल पाए. बाद में जब उन्होंने उस प्रॉब्लम के लिए ज़्यादा समय निकाला तो उन्हें उसका हल मिल गया. वो इतना आसान सा उपाय था जिसने उन्हें आश्चर्यचकित कर दिया था कि उन्होंने पहले ऐसा क्यों नहीं सोचा. इसलिए एक आर्गेनाइजेशन में किसी भी बड़े डिसिशन को लेने से पहले एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव को उसे ज़्यादा टाइम देना चाहिए.
अगर आप समय बचाना चाहते हैं तो उन चीज़ों को हटाएं जो समय बर्बाद करते हैं. पहला स्टेप ये पहचानना है कि सिस्टम की कमी के कारण कौन से काम समय बर्बाद करते हैं. बहुत सारे एम्प्लाइज को काम पर रखना, बहुत ज़्यादा मीटिंग बुलाना और गलत चीज़ों पर ध्यान फोकस करना बहुत समय बर्बाद करता है.
हैरी हॉपकिंस (Harry Hopkins ) वर्ल्ड वॉर 2 के दौरान प्रेसिडेंट रूज़वेल्ट के सलाहकार थे. पेट के कैंसर की वजह से उनकी हालत बिगड़ती जा रही थी इसलिए हॉपकिंस ने ज़्यादा इम्पोर्टेन्ट चीज़ों पर फोकस करने का फ़ैसला किया. इसका नतीजा ये हुआ कि उन्होंने उस हालत में भी कंपनी से जुड़े हर इंसान से बढ़कर परफॉर्म किया था. अगर आप एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव बनना चाहते हैं तो आपको अपने टाइम को अच्छे से मैनेज करना सीखना होगा. आपको बैठकर लिखना होगा कि आपका समय किन किन चीज़ों में लग रहा है. इस तरह आपको पता चलेगा कि कहाँ समय कम देने की ज़रुरत है और कहाँ ज़्यादा. तभी आप ज़्यादा से ज़्यादा अचीव कर पाएँगे.
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एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव अपने आस पास देखकर ख़ुद से पूछता है, “मैं इस आर्गेनाइजेशन के फ़ायदे के लिए और क्या कर सकता हूँ?” कई executives अच्छा परफॉर्म करने में इसलिए फेल हो जाते हैं क्योंकि वो अपने एम्प्लाइज के रिजल्ट के बजाय अपने एफर्ट के बारे में ज़्यादा सोचने लगते हैं. उन्हें लगता है कि आर्गेनाइजेशन को उनका अहसानमंद होना चाहिए क्योंकि वही तो सब कुछ संभाल रहे हैं लेकिन ऐसे एग्जीक्यूटिव कभी किसी चीज़ की ज़िम्मेदारी नहीं लेते.
एक बड़ी कंपनी के पब्लिकेशन डिपार्टमेंट में एक डायरेक्टर काम करते थे. वो कई सालों से उस कंपनी से जुड़े हुए थे. साइंस का बैकग्राउंड ना होने के बावजूद वो साइंटिफिक टॉपिक पर भी लिखा करते थे. लेकिन उनके काम की क्वालिटी इतनी अच्छी नहीं थी क्योंकि वो एक मंजे हुए अच्छे राइटर नहीं थे. उनके रिटायर होने के बाद एक प्रोफेशनल को काम पर रखा गया जो हाई क्वालिटी का काम कर रहा था. नए डायरेक्टर के आने से उस डिपार्टमेंट में बहुत कुछ इम्प्रूव हुआ था. पब्लिकेशन अब ज़्यादा प्रोफेशनल हो गया था लेकिन आश्चर्य की बात तो ये थी कि अब उनके टारगेट ऑडियंस ने उनका आर्टिकल पढ़ना बंद कर दिया था. एक साइंटिस्ट ने इसके जवाब में कहा कि उन्होंने पढ़ना इसलिए बंद किया क्योंकि अब आर्टिकल उन पर लिखे जा रहे थे. वो सभी उस पुराने डायरेक्टर को पसंद करते थे क्योंकि वो आर्टिकल उनके लिए लिखते थे.
अब यहाँ पुराने डायरेक्टर इसलिए इफेक्टिव बने रहे क्योंकि वो लगातार ख़ुद से सवाल किया करते थे कि , “ज़्यादा से ज़्यादा लोग हमारे आर्टिकल को पढ़े इसके लिए मैं क्या कर सकता हूँ?” उन्हें एहसास हुआ कि जितने भी यंग साइंटिस्ट थे उन्हें उन सब में उनकी एजेंसी में काम की दिलचस्प को जगाना होगा. बस उसके बाद हर फ़ैसला इसी बात को ध्यान में रखकर लिया जाने लगा. उनका मानना था कि पब्लिकेशन की क्वालिटी मायने नहीं रखती इसके बजाय ज़्यादा साइंटिस्ट को उनकी एजेंसी में जॉब करने के लिए attract करना ज़्यादा मायने रखता है.
जब आप ख़ुद से सवाल करते हैं कि आप अपनी तरफ़ से ज़्यादा से ज़्यादा क्या दे सकते हैं तो आप अपने अंदर छुपे हुए पोटेंशियल के बारे में जान पाते है. जो एग्जीक्यूटिव ख़ुद से ये सवाल नहीं पूछता है तो उसका गोल भी बहुत छोटा होता है और उसका कंपनी में योगदान भी बहुत कम होता है. जब एक एग्जीक्यूटिव कंट्रीब्यूट करने पर फोकस करता है तो उससे कंपनी के लोगों पर भी असर पड़ता है. ऐसा ही एक एग्ज़ाम्पल तब सामने आया जब किसी हॉस्पिटल में एक नए एडमिनिस्ट्रेटर ने काम करना शुरू किया.
पहली स्टाफ़ मीटिंग के दौरान एक बड़ी प्रॉब्लम जिसका वो सामना कर रहे थे उसके लिए एक डिसिशन लिया गया. तब एक नर्स ने पूछा, “क्या नर्स ब्रेंडा इससे सहमत होंगी?” उसके बाद फ़िर से चर्चा शुरू हो गई. नए एडमिनिस्ट्रेटर को बाद में पता चला कि नर्स ब्रेंडा ना तो किसी ऊँचे पोजीशन पर थीं और ना ही कोई ख़ास मेंबर थीं, वो तो औरों की तरह एक आम नर्स थी. लेकिन जो बात उन्हें आम से ख़ास बनाती थी वो ये थी कि वो हमेशा ख़ुद से पूछती रहती थीं “क्या ये मेरे पेशेंट्स के लिए अच्छा होगा?” जिस वजह से उनके यूनिट के पेशेंट हमेशा जल्दी और बेहतर तरीके से ठीक हो जाते थे. ये देखकर वहाँ की हर नर्स अब इस बात को फॉलो करने लगी थी. वो सब भी ख़ुद से पूछने लगी थी, “क्या ये हमारे पेशेंट के लिए सबसे बेस्ट साबित होगा?” भले ही नर्स ब्रेंडा को रिटायर हुए दस साल हो चुके थे, लेकिन उन्होंने हॉस्पिटल के स्टाफ़ के लिए एक मिसाल और हाई स्टैण्डर्ड सेट कर दिया था.
जब हम अपनी तरफ से contribute करने का वादा कर लेते हैं तब हम ज़्यादा इफेक्टिव हो जाते हैं. आज executives इसलिए फेल हो रहे हैं क्योंकि वो बदलने के लिए तैयार नहीं हैं. जब उन्हें एक ऊँची पोजीशन पर प्रमोट कर दिया जाता है तब भी वो वही करते रहते हैं जो पहले कर रहे थे और वही उनके फेलियर का कारण बनता है.
आज के दौर में, आर्गेनाइजेशन के लगभग हर इंसान ने हायर एजुकेशन हासिल की है और वो काफ़ी नॉलेज भी रखते हैं. लेकिन इस नॉलेज को आईडिया और कांसेप्ट में बदलना हर किसी को नहीं आता. इफेक्टिव बनने के लिए, किसी एक एरिया में फोकस करना चाहिए और उसमें परफेक्ट होने की कोशिश करनी चाहिए. अगर आप चाहते हैं कि आपको काबिल और इफेक्टिव कहा जाए तो आपको अच्छे रिजल्ट देने होंगे, जो सिर्फ़ नॉलेज को अप्लाई करने से ही पाया जा सकता है.
कई executives अपने जूनियर्स के साथ अच्छे से पेश नहीं आते हैं जिनमें एल्फ्रेड स्लोएन भी शामिल हैं लेकिन इसके बावजूद उनके एम्प्लाइज उन्हें बहुत सम्मान और अहमियत देते थे. इसका कारण ये था कि उन्हें भी कंपनी का इम्पोर्टेन्ट हिस्सा माना जाता था. नीचे लेवल पर काम करने के बावजूद उन्हें बड़े डिसिशन लेते वक़्त शामिल किया जाता था. एल्फ्रेड इन फैसलों को लेने में वक़्त ज़रूर लगाते थे लेकिन उनके डिसिशन हमेशा अच्छे और सही साबित हुए क्योंकि वो हर एक की भलाई को ध्यान में रखकर डिसिशन लेते थे.
अगर आज आप एक इफेक्टिव एग्जीक्यूटिव बनना चाहते हैं तो नीचे के लेवल से लेकर टॉप लेवल तक अच्छे कम्युनिकेशन सिस्टम को बनाने पर ध्यान दें. अगला स्टेप है टीमवर्क को बढ़ावा देना. उसके बाद आप ख़ुद को और दूसरों को डेवलप करने पर फोकस करें. हमेशा बड़े और इम्पोर्टेन्ट डिसिशन सोच समझकर लें, उसे थोड़ा एक्स्ट्रा समय दें और हमेशा ऐसे तरीकों के बारे में सोचें जो चीज़ों को पहले से बेहतर बना सके.