(hindi) Freakonomics: A Rogue Economist Explores the Hidden Side of Everything

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इंट्रोडक्शन

क्या आप चीज़ों को जैसे वो हैं वैसे ही स्वीकार कर लेते हैं या आप चीज़ों को शक की निगाह से देखते हैं? क्या आप किसी बात से सहमत सिर्फ़ इसलिए होते हैं क्योंकि ज़्यादातर लोग उससे सहमत हैं? क्या आप मानते हैं कि इस दुनिया में हर इंसान अच्छा है?

जैसे कि एक कहावत है “हर चमकती हुई चीज़ सोना नहीं होती” ठीक उसी तरह जो चीज़ हमें जैसी दिखाई देती है अक्सर वो हमेशा वैसी नहीं होती. क्या आपने कभी बिना सवाल किए या सीधे विश्वास कर के किसी चीज़ को स्वीकार किया है जो बाद में एक बुरा डिसिशन साबित हुआ जैसे आपने किसी बुक के attractive कवर को देखकर excitement में उसे खरीद लिया हो और आपने अपने दोस्तों को बड़े चाव से दिखाकर कहा हो कि आप उसे पढ़ने के लिए बहुत excited हैं लेकिन बाद में आप उसे पढ़कर बहुत निराश होते हैं क्योंकि वो बेहद बोरिंग था?
आज हम जिस दुनिया में रह रहे हैं, एक बार में ही किसी चीज़ पर भरोसा करना काफ़ी मुश्किल हो गया है. आजकल इनफार्मेशन में बड़ी आसानी से हेरफेर किया जा सकता है और अगर किसी इंसान की नॉलेज थोड़ी कम हो तो आसानी से उसका फ़ायदा उठाया जा सकता है. इसलिए आपको ख़ुद ये ज़िम्मेदारी लेनी होगी कि आप इस तरह के झांसे और छल-कपट में ना फंसें.

इस बुक में आप इंसानों के व्यवहार के बारे में जानेंगे और समझेंगे कि लोग एक दूसरे को धोखा देने की मानसिकता क्यों रखते हैं. आप सीखेंगे कि लोगों की बातों पर आँख बंद कर के विश्वास नहीं करना चाहिए और डेटा को स्टडी करने के बाद ही फ़ैसला लेना चाहिए. इन सभी चीज़ों में इकोनॉमिक्स हमें गाइड करेगी. इकोनॉमिक्स उतना भी मुश्किल नहीं है जितना कि हम इसे समझते हैं. इकोनॉमिक्स की मदद से आप हर चीज़ के छुपे हुए पहलू को देखना सीखेंगे.

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What Do School teachers and Sumo Wrestlers Have in Common?

इंसेंटिव एक ऐसा शब्द है जिसे हर फील्ड में लागू किया जा सकता है. आसान शब्दों में इसका मतलब होता है कोई भी ऐसी चीज़ जो आपको बढ़ावा दे यानी मोटीवेट करे. इकोनॉमिस्ट को भी इस शब्द का इस्तेमाल करना बहुत पसंद है क्योंकि असल में इकोनॉमिक्स इस बात को बताता है कि लोगों को वो कैसे मिलता है जो उन्हें चाहिए या जिसकी उन्हें ज़रुरत है.

चाहे इंसेंटिव अच्छा हो या बुरा हम सभी उसके प्रति respond करते हैं जैसे आपके पेरेंट्स आपसे कहते हैं कि अगर आप स्कूल में अच्छे ग्रेड्स लेकर आए तो वो आपको आपका मनपसंद लैपटॉप लाकर देंगे या अगर आप किसी की प्राइवेट प्रॉपर्टी में घुसते हुए पकड़े गए  तो पुलिस आपकी हवा टाइट कर देगी और वो जुर्म हमेशा आपके नाम से रिकॉर्ड में दर्ज हो जाएगा.

इंसेंटिव तोहफ़े की तरह होते हैं क्योंकि ये लोगों को बुरे काम के बजाय अच्छे काम करने के लिए यकीन दिलाने का तरीका होता है. इंसेंटिव तीन तरह के होते हैं – इकनोमिक, सोशल और moral. आइए एक एग्ज़ाम्पल से इन्हें समझते हैं.

जब अमेरिका में “एंटी-स्मोकिंग” कैंपेन शुरू किया गया तो सिगरेट के हर पैक पर कॉस्ट में “सिन-टैक्स” नाम से 3$ एक्स्ट्रा जोड़ा गया था. अब जितने भी स्मोकर्स थे अगर उनके पास ज़्यादा पैसे नहीं होंगे तो वो सिगरेट नहीं ख़रीद पाएँगे. इस तरह, ये “सिन-टैक्स” उन्हें सिगरेट ख़रीदने से रोकता था. इसे इकनोमिक इंसेंटिव कहते हैं.

जैसे-जैसे ये कैंपेन बढ़ता जा रहा था, रेस्टोरेंट और बार ने अपने आस-पास के एरिया में स्मोकिंग पर बैन लगाना शुरू कर दिया. अब अगर कोई स्मोकर उस एरिया में अक्सर स्मोक करता था तो उसे ये देखकर कभी ना कभी तो शर्मिंदगी ज़रूर होगी कि उसके अलावा वहाँ कोई स्मोक नहीं कर रहा था. ये है सोशल इंसेंटिव.

अंत में, गवर्नमेंट ने पब्लिक के सामने इस बात का ख़ुलासा किया कि आतंकवादियों के पास इतना पैसा इसलिए था क्योंकि वो सिगरेट को ब्लैक मार्केट में बेचते थे. ऐसी बात सुनकर आप सोचने पर मजबूर हो जाते हैं और आपका moral इंसेंटिव आपसे कहने लगता है कि आप indirectly आंतकवादियों को पैसे दे रहे हैं.

इंसेंटिव होने का मतलब ये नहीं है कि लोग automatically अच्छा काम करने के लिए मोटीवेट हो जाएँगे. हर वो इंसान जो एक नया इंसेंटिव प्लान इन्वेंट करने की कोशिश करता है, उसे 100 लोग अलग-अलग तरीकों से धोखा देने के लिए तैयार हो जाते हैं. अगर आप इसके बारे में ज़रा गौर से सोचें तो धोखा देना एक बेसिक सर्वाइवल technique बन गई है. इसका मतलब है कम काम के बदले ज़्यादा मिलना यानी कम एफर्ट के बदले ज़्यादा इनाम मिलना.

एग्ज़ाम्पल के लिए, आपके दोस्त ने आपसे उधार लिया और कुछ समय बाद पूछने पर कि उसे कितने पैसे लौटाने हैं, आपने उसमें 1 $ ज़्यादा जोड़कर बताया. एक और एग्ज़ाम्पल है, अपने प्रोजेक्ट के एक मुश्किल सवाल के लिए गूगल का इस्तेमाल करना और ऑनलाइन मौजूद चीट शीट से सारे जवाब कॉपी-पेस्ट करना.

तो स्कूल के टीचर्स और सूमो wrestlers में क्या कॉमन है? जब अमेरिकन पब्लिक स्कूलों में स्टैण्डर्ड टेस्ट को शुरू किया गया तो उसके दो पहलू थे. पहला, अगर ज़्यादातर बच्चों के मार्क्स कम आते हैं तो स्कूल बंद होने का ख़तरा है जिसका मतलब है कि सारे स्टाफ़ की नौकरी चली जाएगी. दूसरी ओर, जो इस टेस्ट के पक्ष में थे उनका कहना था कि ये लर्निंग क्वालिटी बढ़ाने का काम करेगा.

इसके साथ ही, इसमें कोई दो राय नहीं है कि ये टीचर्स और स्टूडेंट्स दोनों के लिए एक इंसेंटिव का काम करेगा क्योंकि उन्हें अच्छी परफॉरमेंस के लिए अवार्ड दिया जाएगा. जिन टीचर्स के स्टूडेंट्स के बहुत ख़राब मार्क्स आएँगे उन्हें काम से निकाल दिया जाएगा और जिनके स्टूडेंट्स के अच्छे मार्क्स आएँगे उन्हें रिवॉर्ड के तौर पर प्रमोशन दी जाएगी.

इस इनफार्मेशन को देखते हुए, टीचर्स भी चीट करने की कोशिश करेंगे. कुछ टीचर्स ने एग्जाम के जवाब बोर्ड पर लिख दिए तो कुछ ने अपने स्टूडेंट्स के गलत जवाब को मिटाकर उसे सही कर दिया. असल में चीटिंग है क्या, इसके बारे में सोचें. इसमें हम कम काम कर के ज़्यादा पाने चाहते हैं.

टीचर्स ने सोचा कि अगर हम अपने स्टूडेंट्स के मार्क्स को थोड़ा बढ़ा देते हैं तो इसमें कोई बुराई नहीं है. अगर स्टूडेंट को अच्छे मार्क्स मिलते हैं तो टीचर को भी उसका फ़ायदा होगा. इस सिचुएशन में हर कोई जीत सकता था. लेकिन ये जीत कुछ समय के लिए ही टिक पाती क्योंकि आज नहीं तो कल ये धोखा सामने आ जाता और चीट करने वालों को उसका परिणाम भुगतना पड़ता.

अब, सूमो रेसलिंग को जापान में एक बहुत सम्मानजनक खेल माना जाता है. अगर आप एक अच्छे सूमो रेसलर हैं तो आपको एक राजा के समान समझा जाता है और आप इससे बहुत कुछ कमाते हैं लेकिन ये तब होता है जब आप एक हाई रैंकिंग रेसलर हों.

हालांकि, सूमो रेसलिंग में बहुत सम्मान मिलता है लेकिन वहाँ चीटिंग की संभावना भी काफ़ी होती है. अगर एक सूमो रेसलर किसी टूर्नामेंट के दौरान 8 बार जीत हासिल करता है तो उसकी रैंकिंग बढ़ जाएगी और उसके पास सूमो elite केटेगरी में शामिल होने का मौका होगा. लेकिन अगर उसने 8 से कम बार जीत हासिल की है तो उसकी रैंकिंग गिर जाएगी. तो आप कह सकते हैं कि आठवाँ मैच “करो या मरो” वाली सिचुएशन में आ जाता है.

अब यहाँ क्या ये पॉसिबल है कि आठवे मैच में 7 जीत के साथ एक सूमो रेसलर और उससे मुकाबला करने वाले 6 जीत के रेसलर के बीच कोई डील हो जाए कि वो उसे जीतने दे? तो जवाब है कि हाँ, यहाँ बहुत हाई चांस है कि ये डील हो जाएगी. वो यहाँ चीट कर सकते हैं क्योंकि 7 जीत वाले रेसलर का 6 जीत वाले रेसलर की तुलना में बहुत कुछ दाव पर लगा हुआ है.

अक्सर ये साबित करना काफ़ी मुश्किल हो सकता है कि कौन सा आर्गेनाइजर धोखाधड़ी में शामिल है. एक बार, दो रेसलर थे जिन्होंने उन लोगों को बेनकाब करने की कोशिश की थी जिन्होंने घूस देकर मैच में हेरफेर की थी. उन्होंने टोक्यो में प्रेस कांफेरंस के ज़रिए सब कुछ दुनिया के सामने लाने का प्लान बनाया. लेकिन घटना से कुछ घंटे पहले दोनों सूमो रेसलर बड़े ही रहस्यमय ढ़ंग से मरे हुए पाए गए.

इसलिए इंसेंटिव लोगों के अंदर से अच्छाई और बुराई दोनों को बाहर निकालता है. जब लोगों को लगता है कि उनकी इकनोमिक, सोशल और moral इंसेंटिव बढ़ने वाली है तो उनके धोखा देने की संभावना भी बढ़ जाती है.

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