(hindi) THE DISCOVERY OF INDIA
इंट्रोडक्शन (Introduction)
डिस्कवरी ऑफ़ इण्डिया बुक हमारे देश के फॉर्मर प्राइम मिनिस्टर और फ्रीडम फाइटर पंडित जवाहर लाल नेहरु ने लिखी है.
ये बुक उन्होंने 1942 और 1946 के बीच लिखी थी जब उन्हें अहमदनगर किले में नज़रबंद रखा गया था. नेहरु ने अपनी इस बुक में हिस्टोरिकल फैक्ट्स और एविडेंस के साथ इंडियन पोलिटिक्स के बारे में लिखा है.
इस बुक में काफी डिटेल्स से बताया गया है कि देश की आज़ादी के लिए हमे क्या-क्या स्ट्रगल करने पड़े और साथ ही कांग्रेस ने देश के लिए कौन-कौन से काम किये. इंडिया के रिच हेरिटेज़ और कल्चर के बारे में भी इस बुक में काफी कुछ लिखा गया है.
नेहरु ने इस बुक इण्डिया के उन ओल्ड रूलर्स का भी जिक्र किया है जिन्होंने हमारे देश में राज़ किया था. और उन्होंने इसमें ब्रिटिश राज और दो वर्ल्ड वार्स के दौरान इंडिया के फॉरेन अफेयर्स के बारे में भी काफी इन्फोर्मेशन दी है.
एक्चुअल में हिस्टोरिकल व्यू पॉइंट से ये बुक काफी इम्पोर्टेंट मानी जाती है क्योंकि इसमें हिस्ट्री के काफी इम्पोर्टेंट फैक्ट्स दिए गए है. ये बुक हमे उन महान लोगो की लाइफ के बारे में जानने और समझने का मौका देती है जिन्होंने कंट्री की हिस्ट्री और कल्चर को काफी हद तक इन्फ्लुएंस किया था.ध्रर्म, पोलिटिक्स, हिस्ट्री, इकोनोमिक्स और कल्चर में नेहरु जी के व्यूज गौर करने लायक है.
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अहमदनगर फोर्ट (Ahmadnagar Fort)
मै, जवाहर लाल नेहरु बाकि कैदियों के साथ 20 महीने पहले यहाँ अहमदनगर फोर्ट में लाया गया था. तीन हफ्ते तक हम बाहर की दुनिया से दुनिया से एकदम अनजान थे. हम तक कोई न्यूज़ नहीं पहुँचने दी जाती थी. दरअसल हम लोग अहमद नगर फोर्ट में बंद किये गये है, ये बात अंग्रेज सरकार सीक्रेट रखना चाहती थी. सिर्फ ओफिशिय्ल्स को ये बात मालूम थी पर बाद में पब्लिक तक ये बात पहुँच गयी, और कुछ टाइम बाद न्यूज़ पेपर वालो को भी अंदर आने की परमिशन मिली तो हमे भी अपनी फेमिली के लैटर्स मिलने स्टार्ट हो गए. हालांकि हमे इंटरव्यू देने की इजाज़त नहीं दी गयी.
न्यूजपेपर्स सेंसर्ड कर दिए थे पर इसके बावजूद हमने अपने तरीके से पता लगा लिया था कि बाहर क्या चल रहा है और साथ ही वॉर की इन्फोर्मेशन भी हमे मिल गयी थी. हज़ारो इंडियंस को बिना ट्रायल के जेल में डाल दिया गया था जिनकी हालत हमसे भी बुरी थी. जेल का सड़ा खाना खाकर कई लोग बेहद बीमार पड़ गए थे. लोगो को प्रॉपर मेडिकल फेसिलिटीज़ भी नही दी गयी थी.
उन्ही दिनों बंगाल, मालाबार और ओड़िसा के बीजापुर में भयानक अकाल पड़ा. हज़ारो आदमी, औरतों और बच्चे भूख से तड़प-तड़प कर दम तोड़ रहे थे. खेतों में, सड़को में हर जगह लोगो की लाशें पड़ी हुई थी.
वर्ल्ड वॉर के चलते पूरी दुनिया में लोग मर रहे थे. मगर हमारे देश में बेवजह मौते हो रही थी. जब तक लोगो में रिलीफ बांटी गयी तब तक लाखो लोग मौत के मुंह में समा चुके थे.
फासिज्म और नाज़िज्म का राज बुलंद हो रहा था. 1936 में इटली के पोलिटिशियन सिग्नोर मुसोलिनी की तरफ से मुझे एक इनविटेशन मिला था जिसे मैंने रिजेक्ट कर दिया. बहुत से ब्रिटिश स्टेट्समेन जो पहले मुसोलिनी की बुराई करते थे, बाद में उसकी तारीफों के पुल बाँधने लगे. जो मुसोलिनी एक तानाशाह माना जाता था अब उसी के मेथड्स की तारीफ हो रही थी.
इसके दो साल बाद की बात है. नाज़ी गवर्नमेंट ने मुझे जर्मनी आने का इनविटेशन भेजा. हालाँकि उन्हें मालूम था कि मै उनकी आडियोलोजी को सपोर्ट नहीं करता हूँ फिर भी वो लोग चाहते थे कि मै उनसे मीटिंग करूँ. लेकिन मैंने जाने से मना कर दिया और इसके बदले चेकोस्लावाकिया चला गया.
इन्डियन नेशनल कांग्रेस फासिज्म, नाज़ीज्म और इम्पीरियल रुल के सख्त खिलाफ़ थी फिर भी ब्रिटिश सरकार ने इसे पूरे दो साल तक इललीगल डिक्लेयर कर दिया था.
सात साल पहले एक अमेरिकन पब्लिशर ने मुझे लाइफ की फिलोसोफी लिखने को बोला था. मुझे आईडिया पसंद तो आया लेकिन मै लिख नहीं पाया. क्योंकि तब मुझे पता ही नहीं था कि लाइफ की फिलोसफी आखिर होती क्या है.
धर्म ने मुझे कभी अट्रेक्ट नहीं किया था. क्योंकि मुझे लगता है कि रिलिजन हमे अंधविश्वासी बना देता है. लेकिन साथ ही मुझे ये भी लगता है कि दुनिया में लोग किसी ना किसी धर्म में यकीन रखते है. कुल मिलाकर मुझे लगता है कि दुनिया के सारे धर्मो में अच्छे लोगो के साथ-साथ बुरे और नैरो माइंडेड लोग भी शामिल है.
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कमला (Kamala)
4 सितम्बर, 1935 में मुझे अचानक एक दिन अल्मोड़ा की जेल से रिहा कर दिया गया क्योंकि मेरी वाइफ की हालत बहुत क्रिटिकल थी. वो उस वक्त जर्मनी के एक सेनीटोरियम में एडमिट थी. मैं अलाहाबाद तक गाड़ी से आया और उसी दिन वहां से योरोप की फ्लाईट ली.
मुझे अपनी वाइफ के पास पहुँचने में चार दिन लगे. मेरी वाइफ कमला दर्द से तड़प रही थी बावजूद इसके वो मुस्कुराती रहती थी. जब मै उससे मिलने गया तो उसे बहुत अच्छा लगा. बीमारी की वजह से उसकी बॉडी बेहद कमज़ोर दिख रही थी. डॉक्टर्स ने मुझे भरोसा दिया कि वो जल्दी ठीक हो जायेगी. मैं कमला का मन बहलाने के लिए उसे एक किताब पढकर सुनाने लगा.
उसने बिमारी में भी हिम्मत नहीं हारी थी. उसे पूरी उम्मीद थी कि हम एक दिन जरूर अपने मकसद में कामयाब होंगे, और हमारा एक ही मकसद था, देश की आज़ादी.
मेरी वाइफ ने कोई फॉर्मल एजुकेशन नही ली थी. वो एक सीधी-सादी कश्मीरी लड़की थी जो हमेशा खुश रहती थी.
जिन दिनों हमारी शादी हुई थी, उन दिनों मै कमला के साथ ज्यादा टाइम स्पेंड नहीं कर पाता था. मेरा पूरा फोकस देश और आज़ादी की लड़ाई पर था. और ऐसा नही था कि कमला को कोई शिकायत थी बल्कि वो भी बराबर अपना कोंट्रीब्यूशन देना चाहती थी.
जब देश के मर्द जेल में बंद थे तो परिवार की औरतों ने सारी जिम्मेदारी उठा रखी थी. आज़ादी की लड़ाई में हमारे देश की औरतों का रोल भी काफी इम्पोर्टेंट रहा है. अमीर या गरीब हर क्लास की औरतों ने सड़को पर उतर कर नारे लगाये और प्रोटेस्ट किया. मुझे लगता है कि हमारे देश के हर कम्यूनिटी की औरत देशभक्त और बहादुर है. मुझे नैनी जेल में रखा गया था जहाँ मुझे ये न्यूज़ मिली. जेल के सारे कैदी मेरी रिहाई से बहुत खुश थे.
कभी-कभी मुझे लगता है कि मै अपनी वाइफ के लिए एक परफेक्ट मैच नहीं हूँ. हम नैचर में एक दुसरे से काफी अलग थे. हम एक दुसरे को कॉम्प्लीमेंट नही करते. लेकिन मै हमेशा से उसके लिए डिवोटेड रहा और वो मेरे लिए.
1935 में क्रिसमस से पहले कमला की हालत में कुछ-कुछ इम्प्रूवमेंट आ रहा था. तो मैं इस मौके का फायदा उठाते हुए अपनी बेटी इंदिरा से मिलने इंग्लैण्ड चला गया. लेकिन जब मै वापस जर्मनी पहुंचा तो कमला फिर से बीमार हो गयी.
उस सेनिटोरियम में एक आईरिश लड़का था जो कमला को फ्लावर्स भेजता था. वो भी कमला की तरह वहां ट्रीटमेंट के लिए एडमिट था. हालाँकि वो देखने में कमला से हेल्थी लगता था पर अचानक एक दिन वो चल बसा. मैंने अपनी वाइफ से ये बात छुपा कर रखने की पूरी कोशिश की पर उसे पता चल गया. अपने फ्रेंड की डेथ के बारे में सुनकर वो काफी उदास हो गयी थी साथ ही उसे ये भी लगने लगा कि वो अब कभी ठीक नही हो पाएगी.
कुछ टाइम बाद मुझे दूसरी बार इन्डियन नेशनल कांग्रेस का प्रेजिडेंट सेलेक्ट कर लिया गया. पर मैंने फैसला किया कि मै प्रेजिडेंट पोस्ट छोड़ दूंगा ताकि अपनी फेमिली पर भी फोकस कर सकू. लेकिन कमला ने मुझे प्रेजिडेंट की पोस्ट नही छोड़ने दी. वो नहीं चाहती थी कि मै उसकी वजह से अपना काम छोड़ दूँ. जनवरी, 1936 में कमला को स्विट्ज़रलैंड के दुसरे सेनिटोरियम में शिफ्ट किया गया.
मैंने सोचा कि मै कुछ महीनों के लिए मै इंडिया जाऊँगा. पर कमला चाहती थी कि मै उसे छोडकर कहीं ना जाऊं लेकिन वो ये भी नहीं चाहती थी कि मै अपनी प्रेजीडेंसी की ड्यूटीज़ मिस करूँ. अपने आखिरी दिनों में उसने मुझे बताया कि उसे कमरे में एक साया दिखता है जो उसका नाम पुकारता है. लेकिन मैंने कभी कोई साया नही देखा.
और 28 फरवरी के दिन कमला मुझे छोड़कर चली गयी. उस वक्त सिर्फ मेरी बेटी इंदिरा और मेरा एक क्लोज फ्रेंड डॉक्टर एम. अटल मेरे साथ थे.
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द इंडस वैली सिविलाईजेशन (The Indus Valley Civilisation)
हमे जो इण्डिया की सबसे पुरानी हिस्ट्री मालूम है वो है इंडस वैली सिविलाईजेशन. वेस्टर्न पंजाब में हरप्पा और सिंद में मोहेंजो-दारो की डिस्कवरी हुई थी. इन दोनों साइट्स में खुदाई की गयी थी पर पिछले 13 सालों से खुदाई का काम रुका पड़ा था. इस एक्सकेवेशन प्रोजेक्ट को बंद करने की सबसे बड़ी वजह थी द ग्रेट डिप्रेशन.
मैं दो बार मोहेंजो-दारो की साईट देखने गया था. जब दूसरी बार मै वहां गया तो मैंने नोटिस किया कि बारिश और सूखी हवा ने काफी सारी बिल्डिंग्स को नुक्सान पहुंचाया था जो स्टार्टिंग में खोदी गयी थी.
ये जगह 5000 साल से भी ज्यादा टाइम से जमीन में दबी हुई थी. लेकिन जब इनकी खुदाई हुई तो ये देखभाल की कमी से खराब हो रही थी. आर्कियोलोजिकल डिपार्टमेंट के ऑफिसर ने बताया कि उन्हें बिल्डिंग्स को प्रोटेक्ट करने के लिए प्रॉपर फंडिंग नही मिल रही थी.
इंडस वैली सिविलाईजेशन काफी डेवल्प्ड मानी जाती है और हमारे पूर्वजो ने इतनी प्रोग्रेस करने के लिए काफी कुछ सीखा होगा. कुछ लोगो का कहना है कि इंडस वैली सिवीलाइजेशन अचानक आई एक तबाही के कारण खत्म हो गयी थी. लेकिन इतनी महान सभ्यता के खत्म होने की असली वजह क्या थी, निश्चिन्त तौर पर कोई नहीं जानता.
पुराने इंडियन लिटरेचर में हिन्दू टर्म कहीं यूज़ नहीं हुआ है. तो हिन्दूइज्म को एक कल्चर समझ लेना भूल होगी क्योंकि ये एक रिलिजन में डेवलप हुआ है. हिन्दू शब्द असल में संस्कृत के शब्द सिन्धु से निकला है. यानी लार्ज बॉडी ऑफ़ वाटर” सिन्धु नदी के लिए मान सकते है जो इस इलाके से होकर गुजरती है.
वेदों में इन्डियन कल्चर के बहुत पुराने रीकोर्ड्स मिलते है. कई हिन्दू वेदों को देवतओं की वाणी मानते है. यानी वेदों के श्लोक देवताओं ने इंसानों को सुनाये थे. आर्यन्स जब भारत आये तो एक नई प्रोब्लम शुरू हो गयी. दरअसल आर्यन्स खुद को सुपीरियर समझते थे. उन्हें अपनी जाति पर प्राउड था. उनकी इसी सोच के चलते हमारे देश में कास्ट सिस्टम की शुरुवात हुई.
आर्या शब्द का मतलब है” टू टिल” यानी खेती करने वाले. ये लोग फार्मिंग को एक नोबल प्रोफेशन मानते थे. उनके रेसियल सुपीरियरटी के आईडिया ने ही कास्ट सिस्टम की नींव रखी थी. लोगो को काम के आधार पर ग्रुप में डिवाइड किया गया. वैश्य, क्षत्रिय, ब्राह्मण और शूद्र.
ब्राहमण पुजारी होते थे, यानी कास्ट सिस्टम के टॉप पर. उसके बाद क्षत्रिय आते थे जो सोल्जेर्स होते थे. उसके बाद वैश्य जो बिजनेसमेन, खेती बाड़ी करने वाले, आर्टिस्ट और मर्चेंट्स होते थे. शूद्रस सबसे नीचे रखे गये थे क्योंकि ये लोग लेबर और अनस्किल्ड वर्कर्स होते थे.
ब्राह्मणों को ब्रहमा यानी मोस्ट इंटेलीजेंट का सक्सेसर माना गया इसलिए उन्हें सोसाइटी में पॉवरफुल पोजीशन मिली थी.