(hindi) Braving the Wilderness: The quest for true belonging and the courage to stand alone

(hindi) Braving the Wilderness: The quest for true belonging and the courage to stand alone

इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आपने कभी वो बनने की कोशिश की है जो आप नहीं हो? आप जैसे हो, वैसा दुसरे के सामने प्रेजेंट होने में आपको डर लगता है? क्या आपको अपने अंदर कोई स्ट्रेंजर फील होता है? आप किस टाइप की चॉइस रखते हो? क्या आप इसलिए कोई चीज़ चूज़ करते हो क्योंकि आपको लगता है कि वो आपके लिए राईट है या फिर इसलिए कि आप डरते है की दुसरे क्या बोलेंगे ? क्या आपको कभी ये लगा कि आप आउटसाइडर हो ? क्या आपको किसी ग्रुप में फिट होने में प्रोब्लम होती है ? क्या आप हर वक्त पीयर प्रेशर में रहते है ? इन सारे सवालों का जवाब अगर हाँ में है तो इस बुक को पढकर आप अपनी लाइफ का सबसे बोल्ड स्टेप लेने जा रहे है जिससे आपकी पूरी लाइफ चेंज हो जाएगी. क्योंकि अपनी लाइफ की प्रोब्लम्स फेस करना बहुत हिम्मत का काम होता है और उन प्रोब्लम्स को सोल्व करने के लिए उससे भी ज्यादा हिम्मत चाहिए. लेकिन हिम्मत आपके अंदर ही है जिसे आपको पहचानना है. और आपकी सक्सेस सिर्फ आपके हाथो में है.

ये बुक हमे सिखाती है कि अपने डर पर कण्ट्रोल करके हमे अपनी लाइफ का चार्ज अपने हाथो में लेना है. ये बहुत जरूरी है कि हम जो सपने देखे उन्हें पूरा करे. जो लाइफ हम जीना चाहते है उसके लिए हमे खुद पर बिलीव करना होगा. क्योंकि लाइफ बहुत छोटी है इसलिए खुल कर जियो. आप जो हो वही बने रहो. किसी और जैसा बनने की कोशिश भी मत करना. ये बुक आपको सच्चाई की ताकत का एहसास कराएगी. क्योंकि सच बहुत पॉवरफुल होता है. और ये तभी होगा जब आप अपनी परेशानियों को समझकर उन्हें सोल्व करने का रास्ता ढूंढते है. इस जर्नी में आपको कई बार अप-डाउन फील होगा, और आप सीख जायेंगे कि गिरना संभलना भी लाइफ का जरूरी एक पार्ट है, पर आप कोशिश करते रहो. तब तक करते रहो जब तक कि आपको वो हासिल नही हो जाता जो आपको चाहिए. एक बार और, इन सब चीजों का पॉइंट यही है कि आपको इतना ब्रेव बनना है कि अगर जरूरत पड़े तो आप अपने गोल्स की डायरेक्शन चेंज कर सको.

तो क्या आप खुद को एक बार रीडिस्कवर करना चाहोगे? ये बुक आपको वो हिम्मत देगी जिसकी आपको कब से जरूरत थी. तो फिर वेट कैसा? चलिए स्टार्ट करते है.

एवरीव्हेयर एंड नो व्हेयर
हर कहीं और कहीं नहीं (Everywhere and Nowhere)

हर इंसान कहीं ना कहीं से आता है. लेकिन कुछ लोग अपनी पूरी लाइफ एक आउटसाइडर या अजनबी की तरह फील करते है. ये लोग हमेशा फिट होने की कोशिश करते है पर हो नहीं पाते. तो एक तरह से फिट होने के लिए इनका स्ट्रगल चलता रहता है. इन्हें यही फील होता है कि ये अलग है, बाकियों जैसे नहीं है. असल में ये इनका डर है. ये वो लोग है जो अपनी लाइफ में चेंजेस लाने से बड़ा डरते है. इसलिए ये हमेशा एक फेक पर्सनेलिटी के साथ जीते है. इन्हें ये टेंशन रहती है कि लोग इनके बारे में क्या सोचेंगे और इसीलिए ये अपनी ट्रू पर्सनेलिटी छुपाते है. ऐसे लोग को फेल होने से भी बड़ा डर लगता है. हम सबके आस-पास ऐसे लोग मौजूद है या फिर शायद हम भी खुद ऐसे ही है.

दरअसल ये बिहेवियर बचपन के किसी एक्सपीरियंस की वजह से भी हो सकता है. आपकी पर्सनेलिटी को शेप करने में आपके पेरेंट्स का बड़ा हाथ होता है. उन्होंने आपको कैसे पाला है ये आपके फ्यूचर बिहेवियर को डिसाइड करता है. लेकिन इसका ये मतलब नहीं कि आप पास्ट आपका फ्यूचर भी डिसाइड करेगा. ऐसा बिलकुल नहीं है बल्कि आप कभी भी अपनी लाइफ में चेंज ला सकते हो.

हम यहाँ एक एक्जाम्पल लेते है जो शो करेगा कि कैसे सिंपल चीज़े भी किसी पर्सन की सेंस ऑफ़ बिलोंगिंग को इन्फ्लुएंस करती है. एक चार साल की लड़की थी जो अपने पेरेंट्स के साथ न्यू ओरलेंस से टेक्सास मूव हुई थी. इस लड़की को कोई भी बच्चो की पार्टी में इनवाईट नहीं करता था. क्योंकि वो जहाँ भी जाती, लोग उसके नाम से उसे जज करने लगते थे. दरअसल उसका नाम ब्लैक था, हालाँकि उसका रंग गोरा था. उसका नाम उसकी पर्सनेलिटी से अपोजिट था तो लोगो को इसमें रेसिज्म नजर आता था.

बचपन के एक्सपीरिएंस कैसे हमारी लाइफ शेप करते है इसका एक एक्जाम्पल लेते है. एक लड़का था जो मिडल स्कूल में पढता था. उसके पेरेंट्स हमेशा एक सिटी से दूसरी सिटी मूव करते रहते थे तो उस लड़के को हर बार एक नए स्कूल में एडमिशन लेना पड़ता था. और इस वजह से वो हर क्लास में सबसे न्यू बॉय होता था. उस लड़के को इस बात पे बड़ी शर्म आती थी. वो जब टीनएजर था तो उसके पेरेंट्स का डाइवोर्स हो गया जिसने उसकी पर्सनेलिटी को काफी अफेक्ट किया. हमारे बचपन में कई सारी इस तरह की घटनाए होती है जो हमे एक पर्सन के तौर पर मेंटली काफी अफेक्ट करती है.
इसी तरह फेलर्स का भी हम पर काफी असर होता है. सिर्फ एक बार की हार से इंसान की पूरी लाइफ प्रोग्रेस कैसे रुक जाती है इसका एक एक्जाम्पल हम आपको दे रहे है. एक टीनएजर अपने हाई स्कूल की चीयरलीडिंग टीम में सेलेक्ट नही हो पाई. हालंकि वो सही कर रही थी पर जज को लगा कि वो ग्रुप में फिट नही हो पाएगी तो उसे रिजेक्ट कर दिया. उस लड़की को काफी बुरा लगा. वो अकेली थी जिसे रिजेक्ट कर दिया गया. उसके पेरेंट्स को भी बड़ी डिसअपोइन्टमेंट हुई. लेकिन इस घटना का असर उस पर पूरी लाइफ रहा. उसकी एक हार ने उसके फ्यूचर एक्श्न्स को काफी हद तक इन्फ्लुएंस किया.

लेकिन वो लड़की स्टुपिड नहीं थी, बड़ी होकर वो एक फेमस स्पीकर और राइटर बनी. उसकी एक ही प्रोब्लम थी, और वो था उसका डर. उसे यही लगता रहा कि वो कहीं फिट नही हो सकती. फिर धीरे-धीरे उसने खुद को एक्स्पेट करना सीख लिया. जब उसका पर्सपेक्टिव बदला तो लाइफ में भी बदलाव आ गया.

हो सकता है कि आपकी भी कोई बेड मेमोरी आपको आगे बढ़ने से रोक रही हो, लेकिन आप इससे छुटकारा पाकर अपनी लाइफ चेंज कर सकते हो. क्योंकि ऐसी कोई चीज़ नहीं जो इंसान कोशिश करके बदल ना पाए. आप जैसे हो, खुद को एक्स्पेट करो. खुद से प्यार करना सीखो. ये मान लो कि आप जैसा कोई नहीं है. आप एक यूनीक पर्सन हो. अपने पास्ट को पीछे छोड़ो और आगे बढ़ो. क्योंकि प्रेजेंट आपके हाथ में है तो फ्यूचर भी बदला जा सकता है.

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द क्वेस्ट फोर ट्रू बीलोंगिंग (The Quest for True Belonging)

वैसे तो सब लोगो के अलग-अलग एक्सपीरिएंस होते है फिर भी कई बातो में हम सेम है. हमारा नैचर है कि हम दूसरों के साथ आईडेंटीफाई करना पसंद करते है. क्योंकि हम बिलोंगिंगनेस चाहते है. हम चाहे इस बात को कितना भी छुपाने की कोशिश करे पर रियल में कोई भी हमेशा अकेला नही रहना चाहता. जिन्हें हम पसंद करते है, उनसे हम कनेक्ट रहना चाहते है. और हम ये भी चाहते है कि जिन्हें हम चाहते है वो भी हमे पसंद करे.

क्योंकि वही वो लोग है जिनसे हम वेळीडेशन या एक्स्प्टेंस चाहते है. बेशक हम खुद इस फैक्ट से अनजान रहते है पर यही सच है. लेकिन ट्रू बेलोंगिन्ग्नेस इससे कहीं बढकर है. बेलोंगिन्ग्नेस का मतलब है कि खुद को एक्सेप्ट करना. जो आप हो, वैसे ही खुद को पंसद करना. यानी अपने इमपरफेक्शन को एक्स्पेट कर लेना ही खुद से प्यार करना है. जिन्हें खुद की कमियां मालूम होती है उन्हें अपनी खूबियों का भी पता होता है.

ट्रू बेलोंगिन्ग्नेस के इसी कांसेप्ट को प्रूव करने के लिए ऑथर ब्रेने ब्राउन ने फोकस ग्रुप डिस्कसन कन्डक्ट किया. अक्सर ये देखा गया है कि अक्सर लोग खुद की पहचान खोये बिना उन्ही लोगो के साथ कनेक्ट होना चाहते है जिन्हें वो पसंद करते है. लेकिन कुछ लोग ऐसा नही कर पाते क्योंकि वो अपनी फीलिंग्स छुपाते है. ऐसे लोग अपने रिलेशनशिप्स बचाने के लिए झूठ का सहारा लेते है. यानी ऐसे लोग अंदर से कुछ और होते है पर दिखाते कुछ और है. देखा जाए तो ऐसे लोग जिंदगी भर दुखी रहते है. ना तो ये सच बोल पाते है और ना ही इनका झूठ इन्हें जीने देता है.

अगर आप खुद पे ही बिलीव नहीं कर सकते तो दूसरो से क्या उम्मीद करोगे. खुद के बारे में पोजिटिव सोचना बड़ा जरूरी है. अपनी एबिलिटीज़ पर यकीन करो, आपकी लाइफ और आपके रास्ते दुसरों से अलग है. इसलिए अगर आप दूसरों के बताए रास्ते पर चलने की कोशिश करोगे तो कभी इम्प्रूव नहीं कर पाओगे. अपनी वैल्यूज़ के हिसाब से जीने की कोशिश करो और उसी रास्ते पर चलो जो आपने डिसाइड किया है. इनफैक्ट ये सब इतना भी आसान नहीं है. लाइफ में चेंज लाने के लिए हमे कई सैक्रिफाइस करने पड़ते है.

पर्सनल फ्रीडम हमारा गोल होना चाहिए जिसे अचीव करने के लिए कई बार हमे अकेले भी चलना पड़ता है. अगर कोई बात सच हो तो उसे बोल दो, दूसरों की हाँ में हाँ मिलाने के लिए झूठ का सहारा मत लो. शायद आपका ओपिनियन दूसरों से अलग हो पर झूठ बोलने से तो कहीं अच्छा है कि आप सच का साथ दो. फिर चाहे आपको रिजेक्शन ही झेलना पड़े. क्योंकि डिफरेंट होना फेक होने से बैटर है.

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