(hindi) BUSINESS @ SPEED OF THOUGHT

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इंट्रोडक्शन

आज की इस डिजिटल दुनिया में हरकंपनी को बड़ी आसानी और तेज़ी से इनफार्मेशन मिल जाती है. तो ऐसा क्यों होता है कि बस कुछ ही कंपनियां सक्सेसफुल हो पाती हैं और बाकी इस competetive मार्केट में स्ट्रगल करते रह जाते हैं?

Efficient प्रोसेस, स्मार्ट एम्प्लाइज, ज़बरदस्त प्रोडक्ट – क्या आपकी कंपनी के पास ये सब हैं? लेकिन फिर भी आप मार्केट में कुछ अलग नहीं कर पा रहे? वो कौन सी चीज़ है जो आपको अलग और हटके बनाने में मदद कर सकती है?

बिल गेट्स के अनुसार इसका जवाब टेक्नोलॉजी पर हो रहे ख़र्च और उससे जेनरेट होने वाले आउटपुट के बीच के फ़र्क में छुपा है. आमतौर पर कंपनी अपने फंड्स का 80% टेक्नोलॉजी पर ख़र्च करती है फ़िर भी उन्हें उसकी पोटेंशियल का सिर्फ़ 20% आउटपुट ही मिलता है.\
क्या आप अपनी टेक्नोलॉजी का पूरी तरह इस्तेमाल नहीं कर रहे हैं? अगर आपका जवाब हाँ है तो ये बुक आपको possibility और reality के बीच के गैप को भरने में मदद करेगी.

MANAGE WITH THE FORCE OF FACTS

बिज़नेस चलाने का सबसे इम्पोर्टेन्ट हिस्सा होता है इनफार्मेशन. आपको इनफार्मेशन को इकट्ठा करने, उसे मैनेज और यूज़ करने के लिए एक efficient तरीका इस्तेमाल करने की ज़रुरत है.ज़्यादातर काम की इनफार्मेशन पहले से ही सिस्टम में मौजूद है लेकिन कम्पनीज इसके लिए एक्शन लेने में फेल हो जाती हैं. आइए पहले समझते हैं कि काम की या मीनिंगफुल इनफार्मेशन का मतलब क्या होता है.

कस्टमर्स आपके प्रोडक्ट के बारे में क्या सोचते हैं? उन्हें प्रोडक्ट से क्या-क्या उम्मीदें हैं? क्या distributors को किसी प्रॉब्लम का सामना करना पड़ता है? क्या आपके competitors आपके बिज़नेस में आपसे आगे हैं?

ये ऐसे सवाल हैं जिनका आपको जवाब देना होगा. आपको इनफार्मेशन इकट्ठा करने की ज़रुरत है और फ़िर ये पता लगाना होगा कि इसका अच्छे से इस्तेमाल कैसे किया जाए.आइए एक एग्ज़ाम्पल से इसे समझते हैं.

अल्फ्रेड स्लोएन 1920 से 1950 तक जेनरल मोटर्स के सीईओ थे. अपने समय के दौरान उन्होंने कंपनी को एक बड़े आर्गेनाइजेशन के रूप में ग्रो करने में मदद की. अल्फ्रेड जानते थे कि लोगों का नॉलेज सक्सेस पाने का एक बहुत इम्पोर्टेन्ट हिस्सा है.

अल्फ्रेड टेक्निकल और बिज़नेस स्टाफ से अक्सर ख़ुद मिला करते थे. उसके कारण उन सभी के साथ उनकी एक अच्छी understanding हो गई थी. वो देश भर के डीलर्स के पास जाया करते, इससे उन्हें जानने में मदद मिलती थी कि कौनसा प्रोडक्ट ज़्यादा बिक रहा है.

सेल्स के बारे में इस अपडेटेड इनफार्मेशन ने अल्फ्रेड को ये एहसास कराया कि 1920 के अंत तक बिज़नेस बदलने वाला था.अब used कार के बजाय मिडिल क्लास के लोग नई कार लेना पसंद कर रहे थे. जिसका मतलब था कि डीलर्स के साथ अब कंपनी का रिलेशन भी बदलना चाहिए था. अल्फ्रेड के लेटेस्ट इनफार्मेशन के कारण जेनरल मोटर्स बदलते हुए मार्केट के लिए तैयार था.

अल्फ्रेड ने डीलर्स की एक काउंसिल बनाई. उन्होंने डीलर्स के साथ एक मज़बूत पार्टनरशिप डेवलप की.उन्होंने नए डीलरशिप के लिए इफेक्टिव जगहों को खोजनेकीरिसर्च की.

सेल्स की इनफार्मेशन के बिना, अल्फ्रेड कस्टमर्स की पसंद के ट्रेंड में बदलाव या सेल्स में कमी कोभांप नहीं पाते. कमाल की बात तो ये थी कि जो इनफार्मेशन अल्फ्रेड इस्तेमाल कर रहे थे वो उस वक़्त डिजिटल नहीं था. लेकिन फिर भी वो जानते थे कि वो कितना इम्पोर्टेन्ट था. जेनरल मोटर्स इसलिए सक्सेसफुल हुई क्योंकि वहाँ इनफार्मेशन को इफेक्टिव ढंग से इकट्ठा, मैनेज और इस्तेमाल किया गया था.

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CAN YOUR DIGITAL NERVOUS SYSTEM DO THIS?

ब्रेन में नयूरोंस की तरह, हर आर्गेनाइजेशन के बैकग्राउंड में आपस में जुड़े हुए कई प्रोसेस होते हैं. बिल गेट्स इसे कंपनी का नर्वस सिस्टम कहते हैं और उनका मानना है कि ये बिलकुल इंसानों के नर्वस सिस्टम जैसा है.

ये बैकग्राउंड प्रोसेस सिर्फ़ एक डिपार्टमेंट में नहीं होते. इसके बजाय ये अलग-अलग डिपार्टमेंट को एक साथ जोड़ते हैं. कंपनी के मार्केट में बने रहने के लिए ये डिजिटल नर्वस सिस्टम बहुत ज़रूरी होता है.एग्ज़ाम्पल के लिए, किसी भी कंपनी की मार्केटिंग टीम को अपनी स्ट्रेटेजी में सुधार करने के लिए प्रोडक्ट की सेल्स के बारे में पता होना चाहिए.एक बड़े आर्डर को फाइनल करने से पहले, सेल्स डिपार्टमेंट को पहले से इन्वेंटरी के स्टेटस के बारे में पता होना चाहिए.

हर डिपार्टमेंट का एक इम्पोर्टेन्ट योगदान होता है. इसीलिये उन सभी को एक दूसरे के साथ इनफार्मेशन शेयर करनी चाहिए और मिलकर एक टीम की तरह काम करना चाहिए.ह्यूमन बॉडी के अलग-अलग पार्ट्स नर्वस सिस्टम का इस्तेमाल कर कम्यूनिकेट करते हैं. इसी तरह, departments को भी अपने डिजिटल नर्वस सिस्टम का इस्तेमाल कर के इनफार्मेशन को कम्यूनिकेट करना चाहिए.

टेक्नोलॉजी एक कंपनी के डिजिटल सिस्टम को ज़्यादा आर्गनाइज्ड और भरोसेमंद बना सकती है.अगर कंपनी के अलग-अलग डिपार्टमेंट के बीच इनफार्मेशन बिना किसी रुकावट के कम्यूनिकेट किया जाए तो कंपनी बेहतर रूप से काम कर पाएगी. आइए एक एग्ज़ाम्पल से समझते हैं कि आप मार्केट एनालिसिस में सुधार करने के लिए अपनी मौजूदा टेक्नोलॉजी को कैसे यूज़ कर सकते हैं.

1990 के ख़त्म होते-होते माइक्रोसॉफ्ट ज़्यादा से ज़्यादा रिटेल और होलसेल कस्टमर्स तक पहुँचने की कोशिश कर रहा था. यह जानने के लिए कि कौन से मार्केट को एप्रोच करना है,ऑपरेशन मैनेजर पैट्रिक हेज़ और उनकी टीम ने माइक्रोसॉफ्ट के सिस्टम से sales की इनफार्मेशन निकालना शुरू कर दिया.

इन्टरनेट को यूज़ कर उन्होंने अलग-अलग शहरों में per कैपिटा इनकम, कस्टमर डिटेल जैसी कई इनफार्मेशन इकट्ठा की.ईमेल के ज़रिए उन्होंने हर शहर में कंपनी के सेल्स पार्टनर के बारे में भी इनफार्मेशन निकाली. इस डेटा को ध्यान से देखने के बाद पैट्रिक और उनकी टीम ने करीब 80 शहरों को शोर्टलिस्ट किया जिसमें माइक्रोसॉफ्ट की कोई भी मार्केटिंग एक्टिविटी नहीं थी.इन शहरों को मार्केटिंग के साथ टारगेट किया जा सकता था ताकि सेल्स बढ़ाया जा सके.

पैट्रिक ने सेल्स के वाईस प्रेसिडेंट जेफ़ राईक्स को ये डेटा दिखाया.जेफ़ को ये आईडिया बहुत पसंद आया और उन्होंने इस मार्केटिंग स्ट्रेटेजी को आगे बढ़ाने के लिए सिग्नल दे दिया. ये एक बड़ाइवेंट था जो सभी 80 शहरों में organize किया जाने वाला था.ये स्ट्रेटेजी बहुत इफेक्टिव साबित हुई.टार्गेटेड मार्केटिंग ने माइक्रोसॉफ्ट के सेल्स पार्टनर्स की सेल्स को बढ़ा दिया था.सिर्फ़ तीन quarter में उनकी इनकम 57% बढ़ गई थी.

ये सब बिना रुकावट के इनफार्मेशन को कम्यूनिकेट करने के कारण पॉसिबल हुआ. पैट्रिक और उनकी टीम ज़रूरी इनफार्मेशन इकट्ठा करने में कामयाब हुए थे. उन्होंने पहले से मौजूद सिस्टम और टूल्स की मदद से उसे analyse किया. इस तरह, माइक्रोसॉफ्ट ने एक इफेक्टिव मार्केटिंग स्ट्रेटेजी की खोज की.

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THE INTERNET CHANGES EVERYTHING

1990 के अंत तक हर चीज़ डिजिटल होने लगी थी.इन्टरनेट अपनी सस्ती और quick सर्विस के कारण popular होने लगा और मिडिल मैन का रोल निभाने लगा जैसे कि ट्रेवल एजेंट्स जिनका काम टिकेट बुक करना है वो तो शायद कुछ समय बाद गायब हो जाएँगे.उसी तरह, पहले ब्रोकरेज फर्म अपने कस्टमर को डेटा देती थी जो अब ज़्यादातर इन्टरनेट पर फ्री में मिल जाता है.

मेरिल लिंच ट्रेडिशनल फाइनेंसियल सर्विस में लंबे समय से लीडर थीं.1992 से 1997 के बीच इन्टरनेट बेस्ड बिज़नेस ट्रेडिंग तेज़ी से बढ़ने लगा. इसलिए कंपनी ने अपनी स्ट्रेटेजी में बदलाव करने का फ़ैसला किया. सीनियर managers समझ गए थे कि उनका मौजूदा एप्रोच अब टिक नहीं सकता. कंपनी की सबसे बड़ी चिंता थी कंपनी के सबसे कीमती एसेट की एफिशिएंसी में सुधार की ज़रुरत थी, जो फाइनेंसियल कंसलटेंट या ऍफ़सी(FC) थे. एफसी स्टॉक, प्रोडक्ट और कस्टमर्स के बारे में डेटा को ट्रैक करने में बहुत समय बिता रहे थे.

मेरिल लिंच ने अपने इनफार्मेशन सिस्टम को फिर से बनाने का फैसला किया. Managers ने बोर्ड ऑफ़ डायरेक्टर्स से लगभग एक बिलियन डॉलर टेक्नोलॉजी पर इंवेस्ट करने के लिए कहा. मार्केट में कंपनी की टॉप पोजीशन को बनाए रखने के लिए ये इंवेस्टमेंट ज़रूरी था.

बोर्ड ने माना कि कम्पटीशन में बने रहने के लिए सबसे अच्छा तरीका है फाइनेंसियल कंसल्टेंट्स को सही टूल देना. इसलिए बोर्ड पांच सालों के लिए 825 मिलियन डॉलर के प्रोजेक्ट के लिए तैयार हो गया.एक साल के अंदर, आईटी टीम ने एक यूनिवर्सल पीसी “शेल” बनाया जो एम्प्लाइज के लिए एक आम यूजर इंटरफेस था.इस सिस्टम ने कंपनी के डेटा और पुराने सिस्टम को एक ही जगह पर एक साथ ला दिया था.

मेरिल लिंच ने अपने ऑफिस को अपग्रेड करना शुरू कर दिया. उन्होंने हर हफ़्ते दस ऑफिस में नए पीसी इंस्टाल करने का प्लान बनाया. सभी एम्प्लाइज को इस नई टेक्नोलॉजी को यूज़ करने की ट्रेनिंग दी गई. अब ऍफ़सी कुछ ही सेकंड में अपने स्क्रीन पर कोई भी इनफार्मेशन ढूंढ सकते थे.वो सिस्टम के ग्राफ़ औरचार्ट के कारण मिनटों में किसी भी डेटाको एनालाइज कर सकते थे. सिर्फ़ एक क्लिक करने की ज़रुरत थी और ऍफ़सी के पास हर कस्टमर की सारी इनफार्मेशन सामने आ जाती थी. इससे एफसी को कस्टमर्स के साथ मजबूत रिलेशन बनाने के लिए ज़्यादा समय और इनफार्मेशन मिली. इंटरनेट ने लोगों को हटाकर उनकी जगह नहीं ली, इसके बजाय, इसने लोगों कोज़्यादा efficient बनाया.

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