(hindi) The Test of My Life

(hindi) The Test of My Life

इंट्रोडक्शन (Introduction)

“द टेस्ट ऑफ़ माई लाइफ” फेमस इंडियन बैट्समेन युवराज सिंह की ऑटोबायोग्रेफी है.ये बुक को पढकर कई लोग इंस्पायर हुए है. अपनी इस बुक के जरिये युवी ने क्रिकेट के लिए अपने प्यार और अपनी कैंसर की बिमारी के स्ट्रगल को शेयर किया है. आप इस बुक में युवराज सिंह के क्रिकेट के शौकीन से टीम इंडिया के प्लेयर बनने तक की पूरी स्टोरी पढ़ेंगे और ये भी जानेंगे कि उन्हें यहाँ तक पहुँचने में कितने स्ट्रगल करने पड़े. युवराज सिंह जब अपने करियर के पीक पर थे तो उन्हें अपनी कैंसर की बिमारी का पता चला जिसका उनकी लाइफ और करियर में काफी इम्पेक्ट पड़ा. लेकिन इन सबके बावजूद युवराज सिंह ने कभी हार नही मानी. युवराज सिंह कैंसर को हराकर क्रिकेट की दुनिया में वापस कैसे लौट कर आए, ये सब आपको इस बुक में पढने को मिलेगा. उन्होंने एक बुक लिखी है और कैसंर पेशेंट्स के लिए “यूवीकैन” नाम से एक फाउंडेशन भी स्टार्ट किया जो कैंसर जैसी गंभीर बिमारी को लेकर अवेयरनेस क्रिएट करती है और यहाँ पर कैंसर पेशेंट्स को फ्री चेक-अप भी प्रोवाइड किया जाता है. अगर आप एक क्रिकेट फैन है या फिर आप एक इंस्पायरिंग स्टोरी पढना चाहते हो तो ये बुक आपको एक बार जरूर पढनी चाहिए.

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आल द वे टू इंडिया (All the Way to India)

बचपन से ही मेरा स्पोर्ट्स में इंटरेस्ट रहा है. स्कूल टाइम में मुझे हमेशा रीसेस और फिजिकल ट्रेनिंग का वेट रहता था, बाकि सब्जेक्ट्स मुझे ज्यादा पसंद नहीं थे. इसलिए मेरे ग्रेड्स भी अच्छे नहीं आते थे. मेरी फ्रेंड आंचल मुझे स्टडीज़ में हेल्प करती थी बावजूद इसके मेरा स्कोर हमेशा एवरेज से कम ही रहा. एक बार की बात है, मै अपने फ्रेंड्स के साथ बैटिंग कर रहा था तो गलती से शॉट एक आदमी लगा जो स्कूटर से जा रहा था. बॉल उसे बड़े जोर से लगी थी. वो आदमी स्कूटर से नीचे गिरा और तुरंत उठकर हमारे पीछे भागा.

ये बात मुझे आज तक क्लियर याद है. मेरे फादर ने यादविंद्र पब्लिक स्कूल में मेरा एडमिशन करा दिया था. उस वक्त महारानी क्लब में इण्डिया के फेमस बैट्समेन नवजोत सिंह सिद्धू प्रेक्टिस करते थे. एक दिन मेरे फादर मुझे उनके पास लेकर गए और सिद्धू से पुछा कि क्या वो मेरी बैटिंग देखेंगे. मेरे बैटिंग करने के बाद सिद्धू ने मेरे फादर को बोला” ये लड़का क्रिकेट के लिए नहीं बना है” लेकिन मेरे फादर भी हार मानने वालो में से नहीं थे. उन्होंने सोच लिया था कि वो मुझे नेशनल टीम में जगह दिलवा कर रहेंगे. वो कभी भी डिसकरेज नहीं हुए और ना ही मुझे होने दिया.
एक दिन सुबह-सुबह मेरे फादर ने मुझे प्रेक्टिस करने को बोला. उस दिन काफी ठंड थी. मै बेड में लेटा रहा. मै बहाने कर रहा था कि मैंने उनकी आवाज़ नही सुनी. थोड़ी देर बाद मेरे फादर मेरे रूम में आए और एक बाल्टी ठंडा पानी मेरे सर पे उड़ेल दिया. उस दिन मुझे उन पर बहुत गुस्सा आया.

लेकिन जिस दिन मै अच्छा परफॉर्म करता था, मुझे लगता था कि मेरे फादर का एक ही सपना है कि वो मुझे एक ग्रेट क्रिकेटर बनता हुए देखे. मुझे भी यही लगता था कि क्रिकेट ही वो चीज़ है जो मुझे फ्रीडम दे सकती है. मेरे पेरेंट्स के आपस में रिलेशनशिप अच्छे नहीं थे. मेरा छोटा भाई जोरावर मुझसे 8 साल छोटा है. मेरे पेरेंट्स के बीच जो भी प्रोब्लम थी, उससे बचने के लिए मैंने अपना पूरा फोकस क्रिकेट में लगा दिया था. पर मेरा छोटा भाई जोरावर माँ-बाप के झगड़ो के बीच पिस रहा था. मेरी मदर ने अपनी मैरिड लाइफ की प्रोब्लम्स सोल्व करने की कभी कोशिश भी नहीं की थी.

मुझे ये बात बहुत परेशान करती थी क्योंकि मेरी माँ मेरे लिए सपोर्ट सिस्टम है. क्रिकेट को लेकर मेरे फादर शुरू से ही काफी स्ट्रिक्ट रहे थे. मेरी पूरी टीनएज तक उन्होंने मुझे काफी स्ट्रिक्ट डिसपलीन में रखा था. एक बार रणजी प्रेक्टिस मैच खेलते वक्त मै 39 में आउट हुआ तो मेरे फादर बहुत गुस्सा हुए. उन्होंने मुझे फोन पे बोल दिया था’ अब घर मत आना वर्ना तुम्हे जान से मार दूंगा’. और मुझे पूरी रात घर के बाहर खड़ी अपनी कार में सोना पड़ा था.

अगली सुबह जब मै घर के अंदर आया तो फादर ने मुझे देखते ही मेरे मुंह पे दूध का गिलास देकर मारा. एक और बार की बात है, बैक में फ्रेक्चर आने की वजह से मुझसे फील्डिंग में मिस्टेक हो गयी थी. उस रात जब मै घर पहुंचा तो देखा फादर ने मेरी कार का साउंड सिस्टम तोड़ रखा था. ऊपर से मेरे सिनियर के नेगेटिव कमेंट्स सुन-सुनकर मेरा जीना मुश्किल हो गया था. फाइनली रणजी ट्रॉफी में मैंने 100 का स्कोर किया. मेरे फादर ने मुझे कॉल किया और पुछा” मैच कैसा रहा”?

“ मैंने सेंचुरी मारी” मै प्राउडली बोला. इस पर मेरे फादर बोले” तुमने 200 रन क्यों नहीं बनाये? उनकी बातो से मै डिसअपोइन्ट हो गया. फिर फादर ने मुझे दुबारा फ़ोन करके बोला कि उन्होंने मेरी कार की चाबियां कहीं छुपा दी है. इसके बाद मै अंडर 19 वर्ल्ड कप खेलने चला गया. मुझे प्लेयर ऑफ़ द टूर्नामेंट सेलेक्ट किया गया. और इस तरह इन्डियन नेशनल टीम में मेरी एंट्री हुई. अपने फर्स्ट मैच में मैंने 84 का स्कोर बनाया और मेन ऑफ़ द मैच बन गया. अपने पहले पे-चेक से मैंने अपनी मदर के लिए घर खरीदा.

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द टॉप ऑफ़ द वर्ल्ड कप (The Top-of-the-World Cup)

2011 वर्ल्ड कप हमारे लिए किसी एपिक एडवेंचर से कम नहीं था. हम इंगलैंड के खिलाफ खेल रहे थे. 2010 में मेरी गर्दन में एक स्ट्रेंन आ गया था जिसकी वजह से बड़ा पेन हो रहा था, दर्द इतना ज्यादा था कि मै सर घुमा कर देख भी नहीं पा रहा था. एमआरआई में डिस्क बल्ज आया था. हमारे टीम फिजियोथेरेपिस्ट नितिन पटेल को मेरी गर्दन ठीक करने के लिए बुलाया गया पर कोई फायदा नहीं हुआ.

मेरी बारी नंबर 4 पर थी. मैंने दो बॉल खेले थी कि अचानक लगा गर्दन में एक झटका लगा है, उसके बाद तो जैसे कमाल हो गया, मैंने धुनांधार खेलना शुरू कर दिया और काफी बढ़िया स्कोर बनाए. मै सचिन तेंदुलकर से काफी इंस्पायर था, ये मेरे लिए एक ग्रेट अचीवमेंट था कि हम टीममेट्स थे. वर्ल्ड कप खेलने से पहले सचिन ने मुझसे बोला था कि मुझे किसी ऐसे एक लिए टूर्नामेंट खेलना चाहिए जिसकी मै रिस्पेक्ट देता हूँ या प्यार करता हूँ. सचिन ने मुझे और मेरे टीममेट्स को हमेशा मोटिवेट किया.

एक बार मेक्सिको में हमारी टीम डिनर कर रही थी, तो एक फैन रविन्द्र जड़ेजा के पास आकर उस पर शाउट करने लगा. वो चिल्ला रहा था’ तुम इतनी जल्दी आउट कैसे हो गए?’ और गंदी गालिया दे रहा था. मामला काफी बिगड़ गया और न्यूज़ में भी आ गया था. हम पर ओवरपेड और गैरजिम्मेदार होने का ठप्पा लगा. इस घटना के बाद मै टीम से बाहर हो गया था. लेकिन फिर जुलाई में मुझे श्रीलंका के खिलाफ मैच खेलने के लिए सेलेक्ट कर लिया गया था. वर्ल्ड कप से पहले मैंने दो बैट सेलेक्ट किये. एक में मैंने वर्ल्ड कप नंबर 1 लिखा और दुसरे में वर्ल्ड कप नंबर 2.

साउथ अफ्रीका के खिलाफ़ जो मैच था उसमे मैंने नंबर 1 वाले बैट से खेला. ढाका के लिए जाते वक्त मुझे मेरा बैट नंबर 2 नही मिल रहा था. लेकिन मुझे ये नही मालूम था कि मेरी मदर ने किसी को वो बैट चंडीगढ़ अपने पास मंगा लिया था. माँ उस बैट को बाबा जी आशीर्वाद दिलवाने संगत में लेकर गयी संगत में काफी भीड़ थी. जब बाबजी ने बैट देखा तो एकदम बोल पड़े” ये तो युवी का बैट है” उन्होंने मेरे बैट पहचान लिया था. ये वही बैट था जिससे मैंने वर्ल्ड कप में खेला था. बाबाजी ने सबको बोला कि वो इस बैट को ब्लेस करे. मेरी मदर बेंगलोर मैच शुरू होने से पहले ही पहुँच गयी थी. उसने मुझे मेरा बैट नंबर 2 वापस दिया. वर्ल्ड कप में मैंने टोटल 352 रन बनाए जिसमे चार चौके और एक सेंचुरी थी.

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