(hindi) The Diary Of a Young Girl

(hindi) The Diary Of a Young Girl

इंट्रोडक्शन

“द डायरी ऑफ़ अ यंग गर्ल” एक यंग जूइश लड़की की ऑटोबायोग्राफी यानी आत्मकथा है.ये बुक बहादुरी और कभी हार ना मानने वाले ज़ज्बे की कहानी है क्योंकि ऐन और उसका परिवार नाज़ियों (Nazi) से ख़ुद को बचाने की कोशिश कर रहे थे. आपको उस विध्वंस और सर्वनाश के शुरुआत का पता चलेगा जिसने jews के जीवन को नर्क जैसा बना दिया था.

आप जानेंगे कि जंग से पहले ऐन की जिंदगी कैसी थी. उसे डायरी लिखना बेहद पसंद था और वो रोज़ अपनी डायरी में अपने स्कूल, परिवार और दोस्तों के बारे में लिखा करती थी.ये बुक आपको दिखाएगी कि कैसे जंग की दरिंदगी ने एक यंग टीनएज लड़की को किन हालातों से गुज़रने पर मजबूर कर दिया था. आपको जानकार हैरानी होगी कि ऐन को दो साल तक दूसरे परिवार के साथ छुपकर रहना पड़ा था.

ऐन अपनी डायरी में सिर्फ़ अपने डेली रूटीन के बारे में ही नहीं लिखती थी बल्कि उसने जंग के खौफ़नाक माहौल और पकड़े जाने के डर के बारे में भी लिखा था. ये बुक हिटलर के क्रूर शासन में रहने वाले एक आम jew के जीवन की गहराई को दिखाता है जिसे जानकार किसी का भी दिल दहल जाएगा.

June 14, 1942 – July 5, 1942

इस बुक की शुरुआत में ऐन फ्रैंक ने बताया था कि कैसे उसे गिफ्ट में एक डायरी मिली जिसे उसने “किटी” नाम दिया था. ऐन का बर्थडे था और उसे ढेर सारे गिफ्ट मिले थे जिनमें गुलाब का गुलदस्ता, एक ब्लू रंग की ड्रेस और एक पौधा शामिल थे. आगे वो अपने स्कूल के दोस्तों के बारे में बताती है.

ऐन को अपनी डायरी के रूप में जैसे एक दोस्त मिल गया था और वो अपने दिल की हर बात उसमें लिखने लगी थी. उसका मानना था कि लोगों की तुलना में कागज़ में किसी की भी बात सुनने का ज़्यादा पेशेंस होता है और वो लोगों की तरह शिकायत भी नहीं करते. बस चुपचाप बातें सुनकर सब कुछ अपने अंदर समेट लेते हैं. इस डायरी में उसने अपनी जिंदगी के हर पहलू के बारे में काफ़ी कुछ लिखा था.

ऐन 12 साल की जूइश लड़की थी. उसकी एक बहन थी जिसका नाम मार्गोट था. वो फ्रैंक फ़र्ट, जर्मनी में अपने माता पिता के साथ रहते थे.ऐन ने डायरी में अपने एक बूढ़े मैथ्स टीचर का भी ज़िक्र किया जिनका नाम मिस्टर कीसिंग (Keesing) था. ऐन क्लास में बहुत बातें करती थी और मिस्टर कीसिंग को उसकी ये आदत बिलकुल पसंद नहीं थी. बार-बार warning देने के बाद भी जब ऐन नहीं सुधरी तो उन्होंने ऐन को एक्स्ट्रा होमवर्क कम्पलीट करने की पनिशमेंट दी. उसे “The Chatter box” टॉपिक पर एक essay लिखना था. इस टॉपिक का मतलब था एक ऐसे इंसान के बारे में लिखना जो बहुत बातूनी है.

ऐन ने ख़ुद पर ही essay लिख दिया और लिखा कि ज़्यादा बातें करना लड़कियों का एक ख़ास गुण होता है जिसे वो चाह कर भी बदल नहीं सकती क्योंकि उसे ये आदत उसकी माँ से विरासत में मिली थी जो बिलकुल ऐन की तरह बहुत बातें करती हैं. Essay पढ़कर मिस्टर कीसिंग ने ऐन को एक और टॉपिक दिया जिसका नाम था “An Incorrigible Chatterbox”. ऐन ने उस पर भी essay लिख डाला. Incorrigible का मतलब एक ऐसा इंसान जिसे सुधारना नामुमकिन है.

ना ऐन सुधर रही थी और मिस्टर कीसिंग हार मान रहे थे. उन्होंने एक बार फ़िर ऐन को टॉपिक दिया जिसका नाम था “'Quack, Quack, Quack', said Mistress Chatterbox.”ऐन ने इस बार एक दोस्त की मदद से एक poem लिखा. ये बत्तख के तीन बच्चों और उनके मम्मी पापा के बारे में था. बत्तख के तीनों बच्चे quack-quack कर बहुत बातें करते थे इस बात से गुस्सा होकर उनके पापा ने उन्हें इतना मारा कि उनकी मृत्यु हो गयी.

इस बार ऐन का जवाब पढ़कर मिस्टर कीसिंग समझ गए कि ऐन दूसरे बच्चों से अलग थी, वो शायद इस कहानी में छुपे ऐन के मैसेज को भी समझ गए थे.वो अब जान गए थे कि बातें करना ऐन की पर्सनालिटी का एक ऐसा हिस्सा था जिसे वो बदल नहीं सकती थी.उन्होंने फ़िर कभी उसे एक्स्ट्रा होमवर्क नहीं दिया.

उसके बाद उन दर्दनाक घटनाओं का ज़िक्र शुरू हुआ जिसने उन सब की जिंदगी को उथल पुथल कर दिया था. हम एक बारह साल की लड़की के एक्सपीरियंस के ज़रिए उस निर्ममता के बारे में जानेंगे जिससे jews को टार्चर किया जाता था.ऐन ने लिखा कि कैसे 1940 के समय में jews को अपने कपड़े पर एक येलो स्टार का बैज पहनना पड़ता था ताकि वो जहां भी जाएं उन्हें आसानी से पहचाना जा सके कि वो jews थे.

Jews को गाड़ियों का इस्तेमाल करने की सख्त मनाही थी. यहाँ तक कि उनसे उनकी साईकल भी छीन ली गई थी.उन्हें दिन में एक बार सिर्फ़ 3 से 5 बजे के बीच शॉपिंग करने की परमिशन थी. रात 8 बजे के बाद उन्हें सकड़ों पर निकलने से मना किया गया था. Jews थिएटर में नहीं जा सकते थे, टेनिस कोर्ट या स्विमिंग पूल को यूज़ नहीं कर सकते थे. जूइश बच्चों को सिर्फ़ जूइश स्कूल में पढ़ने की परमिशन दी गई थी. उन पर अनगिनत पाबंदियां थीं और उनसे कई हक़ छीन लिए गए थे. बाहर की दुनिया में रहते हुए भी वो किसी जेल में बंद कैदी से ज़्यादा नहीं थे.

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Sunday, July 5, 1942 – October 9, 1942

इस समय के दौरान ऐन ने डायरी में लिखा कि उसके पिता छिपने की बात कर रहे थे और उन सब के लिए यूं दुनिया से अलग रह कर जीना कितना मुश्किल होने वाला था.ऐन के पिता ने कहा कि वो नहीं चाहते थे कि उनका सामान नाज़ी द्वारा छीन लिया जाए.

कुछ दिनों बाद, ऐन की बहन मार्गोट ने उसे बताया कि उनके पिता को जर्मन पुलिस ने फ़ोन किया था.ऐन को तुरंत कंसंट्रेशन कैंप का ख़याल आने लगा, वो डर से काँप उठी. बाद में मार्गोट ने अपनी बहन को बताया कि वो कॉल उनके पिता के लिए नहीं बल्कि मार्गोट के लिए था. इससे ऐन और भी ज़्यादा घबरा गई.उसकी माँ ने उन्हें समझाया कि मार्गोट को कंसंट्रेशन कैंप नहीं जाना पड़ेगा क्योंकि वो सब छुपने वाले थे.

सभी ने अपना सामान पैक किया और शाम तक घर छोड़कर चले गए. उनका प्लान ऐन के पिता के ऑफिस में छुपने का था. ऐन ने डायरी में लिखा कि बाहर ना निकल पाना उसे बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. उसने ये भी बताया कि वो अपनी माँ और बहन से दूर होती जा रही थी.

ऐन को लगने लगा था कि उसके माता पिता उसमें और मार्गोट में भेदभाव करते थे और एक दिन जब मार्गोट से vacumn क्लीनर टूट गया था तो उसे एक शब्द भी नहीं कहा गया.

एक दिन, ऐन की माँ ने एक शॉपिंग लिस्ट बनाई और ऐन को वो दोबारा लिखने के लिए कहा गया. ऐन ने शिकायत की कि उसे अपनी माँ की हैण्डराइटिंग समझ में नहीं आ रही थी जिसके लिए उसे बहुत डांट पड़ी.उसने अपनी डायरी में लिखा कि सिर्फ़ उसके पिता ही थे जो उसे समझते थे.

एक महीने बाद,वैनडान(Van Daan) का परिवार वहाँ पहुंचा. वो भी एक जूइश परिवार था जो ऐन के पिता के ऑफिस में छुपने आया था. क्योंकि नाज़ी हर जगह जूइश लोगों की तलाश कर रहे थे इसलिए उस जगह को छुपाने के लिए किताबों की एक अलमारी बनाई गई थी.दिखने में वो एक अलमारी जैसा ही था लेकिन असल में वो एक सीक्रेट दरवाज़ा था.

ऐन ने ये भी लिखा कि उसके कई जूइश दोस्तों को नाज़ी पकड़कर कंसंट्रेशन कैंप ले गए थे.वहाँ jews को बहुत कम खाने दिया जाता था. यहाँ तक कि वहाँ सभी लोगों के लिए पानी भी काफ़ी नहीं था. हज़ारों लोगों के इस्तेमाल के लिए सिर्फ़ एक टॉयलेट था.ऐन को लगने  लगने लगा था जैसे हिटलर ने उनसे उनका देश ही छीन लिया हो. Jews ने अपना सारा जीवन जर्मनी की जनता के रूप में जिया था और हिटलर ने एक झटके में कह दिया कि वो जर्मन के थे ही नहीं.

इस बुक में एक ही शख्स की जिंदगी के दो अलग-अलग पहलू हमारे सामने आते हैं.हम एक teenager को बड़े होते और उसकी टीनएज लाइफ के बारे में जानते हैं जहां वो अपने दोस्तों और परिवार के साथ अपने रिश्ते के बारे में बताती है . वहीँ दूसरी ओर,हम देखते हैं कि जंग का उसकी जिंदगी पर क्या क्या असर हो रहा था और वो उसके प्रति कैसे रियेक्ट कर रही थी.

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