(hindi) Why We Sleep: Unlocking the Power of Sleep and Dreams
इंट्रोडक्शन
क्या आपको याद है जब आप बच्चे थे तो आपकी मम्मी आपको जल्दी सोने के लिए फ़ोर्स करती थी और वो हमें बिलकुल अच्छा नहीं लगता था. हम जल्दी सोने से बचने के लिए ना जाने क्या क्या बहाने करते थे, या तो हम रोने लगते या रूम से बाहर भाग जाया करते थे.
रिसर्चने ये साबित किया है कि हम सभी की मम्मी सही थीं. वो अच्छे से जानती थीं कि वो क्या रही थींऔर इसका लॉजिक आपको ये बुक समझाएगी.
इस बुक में आप सीखेंगे कि हर इंसान का स्लीप साईकल कैसे काम करता है. आपको ये जानकार हैरानी होगी कि हर इंसान के सोने का पैटर्न बाकी लोगों से अलग होता है. आप उन फैक्टर्स के बारे में जानेंगे तो आपके स्लीपिंग पैटर्न को इन्फ्लुएंस करते हैं.
एक बार जब आप नींद की इस साईकल के बारे में समझ जाएँगे तब जाकर आप नींद की कद्र करना सीखेंगे. आप रात में 7-8 घंटों की गहरी नींद के अनगिनत फ़ायदों के बारे में जानेंगे कि ये आपकी बॉडी और ओवरआल हेल्थ के लिए क्या-क्या कर सकता है.
आपको कम सोने के साइड इफेक्ट्स के बारे में भी पता चलेगा. आप जानकार हैरान रह जाएँगे कि कैसे नींद की कमी जानलेवा बीमारियों जैसे कैंसर और डायबिटीज का कारण बन सकती है. अगर आप किसी छोटी मोटी हेल्थ प्रॉब्लम को फ़ेस कर रहे हैं तो हो सकता है कि उसकी जड़ नींद की कमी हो.
नींद से जुडी प्रॉब्लम को स्लीप डिसऑर्डर कहते हैं और वो बहुत ख़तरनाक होते हैं क्योंकि कभी-कभी मौत का कारण भी बन सकते हैं.आपकी हेल्थ बहुत इम्पोर्टेन्ट है लेकिन अगर आपकी नींद पूरी नहीं होती तो आप कभी healthy नहीं हो सकते.
तो अपनी स्लीप साईकल के बारे में जानने के लिए हमारे साथ बने रहिए और इसी उम्मीद के साथ कि हमारी ये छोटी सी कोशिश आपकी लाइफ को बेहतर बनाएगी, आइए शुरू करते हैं क्योंकि ये बुक शायद आपकी जान बचा सकती है.
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Losing and Gaining Control of Your Sleep Rhythm
क्या आपने कभी सोचा है कि ऐसा क्या है जिसकी वजह से रात होने पर आपको नींद आने लगती है और सुबह होने पर आप दोबारा काम करने के लिए रेडी हो जाते हैं? इसका जवाब बड़ा ही सिंपल सा है, सन यानी सूरज.
पहला सिग्नल जो ये डिसाइड करता है कि आपको कब सोना है और कब जागना है वो है आपकी बॉडी के अंदर फिट 24 घंटे का बॉडी क्लॉक जिसके साथ हम सभी पैदा होते हैं. ये क्लॉक आपके ब्रेन में एक सिग्नल भेजता है ताकि उसे पता चल सके कि कब दिन है और कब रात.
सूरज ढलने के बाद दूसरे फैक्टर्स द्वारा ब्रेन को बताया जा सकता है कि दिन का कौन समय चल रहा है. ये फैक्टर्स हैं टेम्परेचर, खाना और लोगों से मिलना जुलना यानी हमारा सोशल इंटरेक्शन. एक और फैक्टर है जो आपके नींद के साईकल को कंट्रोल करता है.आइए जानते हैं.
जब आप जाग रहे होते हैं तब आपका ब्रेन एक substance बनाता है जो आपकी बॉडी में जमा होता रहता है. आप जितनी ज़्यादा देर तक जागेंगे, आपका ब्रेन उतना ही ज़्यादा इस substance को रिलीज़ करेगा. इसलिए जब आप काफ़ी देर तक जागते हैं तो ये substance नींद का प्रेशर बनाने लगता है जिससे आपको थकान महसूस होती है और नींद आने लगती है.
सूरज ढलने के बाद ब्रेन मेलाटोनिन नाम का हॉर्मोन रिलीज़ करता है. इस हॉर्मोन का काम है आपकी बॉडी को ये बताना कि अब सोने का समय हो गया है. इस हॉर्मोन की वजह से आपको नींद नहीं आती बल्कि इसका काम सिर्फ़ ये बताना है कि अब रात का समय हो गया है.
जब सूरज की रौशनी आती है तब ब्रेन इस नींद के हॉर्मोन को रिलीज़ करना बंद कर देता है और इंसान जागने के लिए तैयार हो जाता है.
ये स्लीप साईकल बहुत आर्गनाइज्ड होता है. हर इंसान का अपना अलग स्लीप साईकल होता है क्योंकि हम सभी की बॉडी में अलग अलग genes मौजूद हैं. हम इस साईकल को कुछ हद तक कंट्रोल भीकर सकते हैं जैसे नींद की गोलियों से नींद आती है, कॉफ़ी पीने से नींद उड़ जाती है.लेकिन ऐसा कहा जाता है कि इन चीज़ों को लेकर नेचुरल स्लीप साईकल कोडिस्टर्ब नहीं करना चाहिए. लेकिन जो फैक्टर आपके स्लीप साईकल को बिलकुल गड़बड़ कर देता है वो है एक अलग टाइम ज़ोन में ट्रेवल करना.आइए एक एग्ज़ाम्पल से समझते हैं.
सारासैन फ्रांसिस्को से इंग्लैंड जा रही थी. लन्दन का टाइम सैन फ्रांसिस्को से आठ घंटे आगे है. जब सारा लन्दन पहुंची तब एअरपोर्ट की घड़ी सुबह नौ बजे का समय दिखा रही थी लेकिन उसके शहर के हिस्साब से सुबह के एक बजे थे. उसकी बॉडी और वो दोनों ये बात जानते थे.
याद है हमने कहा था कि हमारी बॉडी में एक नेचुरलक्लॉक होता है जो सनराइज और सनसेट, टेम्परेचर, खानेके समय इन सब की वजह से सेट हो जाता है. जब आप एक नए टाइम ज़ोन में जाते हैं तब भी आपका बॉडी क्लॉक पुराने टाइम ज़ोन के हिसाब से ही आपके स्लीप साईकल को कंट्रोल करती रहती है. इसलिए हम ट्रेवल करने के बाद जेट लैग महसूस करते हैं.
लन्दन में सुबह नौ का समय होने के बावजूद सारा की बॉडी के लिए रात के एक बजे थे और उस हिसाब से उसे तीन घंटे पहले ही सोजाना चाहिए था.लेकिन लन्दन काम पर जाने का समय था फ़िर भले ही सारा की बॉडी स्लीप के स्टेट में थी. लेकिन सारा की हालत तो तब खराब हुई जब लन्दन में आधी रात थी और उसके शहर में सुबह होने का समय होने वाला था.तो जब लन्दन में सब लोग घोड़े बेच कर सो रहे थे तब सारा का बॉडी क्लॉक उसे उठने के लिए कह रहा था.
रिसर्च ने ये साबित किया है कि हमारी बॉडी नई लोकेशन के हिसाब से हमारी स्लीप साईकल को एडजस्ट कर लेती है.इसके लिए बॉडी हर दिन एक एक घंटे एडजस्ट करती है. क्योंकि सैन फ्रांसिस्को और लन्दन में टाइम डिफरेंस आठ घंटे का था तो सारा को नई स्लीप साईकल में एडजस्ट होने में आठ दिन लग गए.
सारा नींद की स्टेट को ट्रिगर करने के लिए मेलाटोनिनकी गोली ले सकती थी. लेकिन जैसा कि हमने पहले बताया, ज़बरदस्ती सोने की कोशिश करना और नेचुरल नींद आने में बहुत फ़र्क होता है. इसे कंट्रोल करने के लिए किसी गोली या कॉफ़ी का सहारा लेने की बजाय बॉडी को नेचुरल तरीके से नए स्लीप साईकल में एडजस्ट करने देना चाहिए.
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Defining and Generating Sleep
इमेजिन कीजिए कि आपके कुछ दोस्त आपके घर नाईट स्टे करने के लिए आएं हैं. रात को गप्पें मारते हुए आप नोटिस करते हैं कि आपकी एक दोस्त सो गई है. अब क्या आप sure हैं कि आपकी दोस्त सो रही है? आप ऐसा क्यों नहीं सोचते कि वो बेहोश हो गई है या कोमा में चली गई है? इसका जवाब है कि हमें नींद के पैटर्न के सिग्नल को समझने की आदत हो जाती है. जब कोई इंसान सोता है तो वो सबसे कम्फ़र्टेबल पोजीशन में होता है, तब वो किसी से बातचीत नहीं करता और आसानी से जाग भी सकता है.
हम भी जान सकते हैं कि हम कब सो रहे हैं.जब हमें अपने आस पास के दुनिया की सुध बुध नहीं होती और हमें समय का पता नहीं चलता तब हम नींद की स्टेट में होते हैं. 1952 में यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर Eugene Aserinsky और Nathaniel Kleitman ने एक रिसर्च किया.
Eugene ने सोते हुए बच्चों के आँखों की मूवमेंट को स्टडी किया.उन्होंने नोटिस किया कि उनके आँखों की मूवमेंट एक पैटर्न मेंबदल रही थी. पलकों के नीचे उनकी आँखें एक साइड से दूसरी साइड जा रही थी. जब उन्होंने इस eye मूवमेंट के साथ ब्रेन के response को स्टडी किया तो उन्होंने पाया कि ब्रेन के सिग्नल जगे हुए स्टेट के जैसे थे.
इन eye मूवमेंट्स के बाद ब्रेन की waves धीमी हो जाती थीं और आँखें एक साइड से दूसरी साइड घूमना बंद कर देते थे.इसके रिजल्ट को करीब से नोटिस करने के लिए,Kleitman ने अपनी छोटी सी बेटी एस्टर को चुना. इससे कई फैक्ट्स उनके सामने आए. उन्हें समझ में आया कि सोते वक़्त हर इंसान दो तरह के स्लीप साईकल से गुज़रता है.
हालांकि इसका कोई प्रूफ़ नहीं है लेकिन हमारा ब्रेन दो तरह की स्लीप साईकल को रिपीट करता है क्योंकि हमारी बॉडी रात में ख़ुद को रिपेयर करने का काम करती है.आप इसे एक कंप्यूटर की तरह सोच सकते हैं जहां दिनभर के डेटा को डाउनलोड होने में एक घंटे की नींद लगती है और उसके बाद ये सेटिंग अपडेट होती है. लेकिन हमारी बॉडी एक कंप्यूटर से कहीं ज़्यादा कॉम्प्लेक्स है.
तो इस स्टडी ने हमें ये सिखाया कि जब हम सोते हैं तब हम अगले दिन के लिए अपने ब्रेन को अपडेट कर रहे होते हैं.इसलिए रात में आठ घंटे सोना हमारे लिए बहुत इम्पोर्टेन्ट होता है.
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Your Mother and Shakespeare Knew: The Benefits of Sleep for the Brain
क्या आप लंबे समय तक जीना चाहते हैं? अगर हाँ तो बड़े सिंपल सी बात है कि आपको भरपूर नींद लेनी होगी.रिसर्च ने ये साबित किया है कि 6 घंटे से ज़्यादा सोना आपकी मेमोरी यानी याददास्त को बढ़ाता है, क्रिएटिविटी को बढ़ाता है, आपको ज़्यादा सुंदर और यंग बनाए रखताहै, आपको ज़्यादा खाने से और वेट बढ़ने से रोकता है और कैंसर और भूलने की बीमारी से भी बचाताहै.
जब आपकी बॉडी healthy होगी और आप ज़रुरत से ज़्यादा नहीं खाएँगे तो आपको डायबिटीज, डिप्रेशन और हार्ट अटैक नहीं होगा.ये सभी रात को अच्छी नींद लेने के फ़ायदे हैं.अब आइए देखते हैं कि एक अच्छी नींद का ब्रेन पर क्या असर होता है.
सोने का मतलब है जब हमारा conscious माइंड होश में नहीं होता लेकिन तब भी हमारी बॉडी काम करती रहती है.ये हमारे ब्रेन, हर ऑर्गन और सेल्स को रिपेयर कर हील करने का काम करती है. एग्ज़ाम्पल के लिए, जब हम किसी एग्जाम के लिए prepare करते हैं तो हम बहुत सारी इनफार्मेशन याद करते हैं. तो हमारा ब्रेन इतनी सारी इनफार्मेशन को कैसे हैंडल करता है? इसका जवाब ढूँढने के लिए एक रिसर्च टीम ने एक्सपेरिमेंट किया.
उन्होंने यंग लोगों को इकट्ठा कर उन्हें दो ग्रुप्स में डिवाइड किया.सबसे पहले, दोनों ग्रुप्स ने एक सब्जेक्ट के बारे में जितना हो सके उतना याद करने की कोशिश की. इसके बाद, पहले ग्रुप को झपकी लेने के लिए कुछ समय दिया गया जबकि दूसरे ग्रुप को जागे रहने के लिए कहा गया.
जब पहला ग्रुप झपकी ले रहा था तब उनकी नींद को मापने के लिए उनके सिर से electrodes को कनेक्ट किया गया. वो लोग 90 मिनट तक सोए रहे. वहीँ दूसरा ग्रुप, गेम्स खेल रहा था या अपने फ़ोन को ब्राउज कर रहा था.
पहले ग्रुप के जागने के बाद, दोनों ग्रुप्स को दोबारा कुछ याद करने के लिए एक और सब्जेक्ट दिया गया. रिजल्ट से पता चला कि पहला ग्रुप ज़्यादा आसानी से याद कर पा रहा था. वहीँ दूसरा ग्रुप औरज़्यादा इनफार्मेशन याद करने की स्टेट में नहीं था. इससे ये साबित होता है कि सोते समय हमारा ब्रेन याद किये हुए इनफार्मेशन को स्टोर करता है जिससे हम उठने के बाद फ्रेश फील करते हैं और दोबारा चीज़ें याद करने के लिए रेडी हो जाते हैं.