(hindi) THE MILLIONAIRE REAL ESTATE AGENT

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इंट्रोडक्शन (Introduction)

मिलेनियर रियल एस्टेट एजेंट बुक एक ऐसी गाइड है जो आपके बिजनेस में ग्रोथ ला सकती है. इस बुक के थ्रू गैरी केलर आपको सिखायेंगे कि कैसे आप जीरो से स्टार्ट करके एक बड़ा बिजनेस एम्पायर खड़ा कर सकते हो. इस बुक को पढने के बाद आपको मिलेनियर बनने का कांसेप्ट काफी अच्छे से समझ आ जायेगा. ये बुक ना सिर्फ हमे अपने गोल्स तक पहुँचने का रास्ता दिखाती है बल्कि उस रास्ते पर कंटीन्यू चलते रहने के लिए इंस्पायर भी करती है. तो देर किस बात की है ?

आपकी सक्सेस आपके बेहद करीब है और इसे पाने में गैरी आपको स्टेप बाई स्टेप गाइड करेंगे. अपने पर्सनल एक्सपिरियेंस से गैरी केलर आपको अपनी ट्रू पोटेंशियल तक पहचानना सिखायेंगे और बताएँगे कि एक सक्सेसफुल बिजनेस कैसे बिल्ड किया जाता है. गैरी केलर ने अपनी लाइफ के एक्सपीरिएंसेस को लेकर ये बुक लिखी है जिसमे वो अपने रीडर्स को अपनी ट्रू पोटेंशियल को पहचान कर एक सक्सेसफुल बिजनेस बिल्ड करने का तरीका एक्सप्लेन करते है.

मिथ अंडरस्टैंडिंग #1 Mythunderstanding #1

मिथ: आई कांट डू इट ( मै ये नहीं कर सकता )MYTH: I CAN'T DO IT.
ट्रुथ (सच्चाई ) : अंटिल यू ट्राई, यू कांट पोसिब्ली नो व्हट यू कैन और कांट डू.
आप तब तक अपनी पोटेंशियल नहीं समझ सकते जब तक कि आप ट्राई नहीं करोगे (TRUTH: UNTIL YOU TRY, YOU CAN'T POSSIBLY KNOW WHAT YOU CAN OR CAN'T DO.)

ये चैप्टर मिथअंडरस्टैंडिंग के साथ डील करता है. “मिथअंडरस्टेंडिंग्स” दो वर्ड्स का कॉम्बिनेशन है “मिथ” और “मिस अंडरस्टैंडिंग”. एक मिथ या मिसअंडरस्टैंडिंग एक फाल्स बिलिफ है. और सक्सेस के रास्ते में अक्सर हमे ये चीज़े फेस करनी पड़ती है. एक “मिथअंडरस्टैंडिंग” ये भी है कि हमारे सपने पूरे नहीं हो सकते. क्योंकि हमे खुद की पोटेंशियल पर यकीन नहीं होता. लेकिन इस चैप्टर को पढने के बाद आपका ये मिथ टूट जाएगा. इस चैप्टर में हम सीखेंगे कि जब तक हम कोशिश नहीं करते तब तक हमे अपनी काबिलियत पर शक नहीं करना चाहिए. इस चैप्टर में सेल्फ कांफिडेंस पर जोर दिया गया है.

गैरी डब्ल्यू. केलर से एक स्टूडेंट ने कुछ सवाल पूछे. उसने गैरी को बोला” जब आप बिग सक्सेस अचीव करने की बात करते है तो ये अनरियल लगता है” तो गैरी ने उससे पुछा” तुम्हारी अल्टीमेट पोटेंशियल क्या है? तो उस स्टूडेंट ने कहा उसे अपनी पोटेंशियल नहीं मालूम है. गैरी ने उसे बताया कि अगर उसे अपनी पोटेंशियल ही नहीं पता तो उसे कैसे पता चलेगा कि उसके ड्रीम्स पूरे होंगे या नहीं. फिर गैरी ने पूरी क्लास से पुछा” अगर मै आपके बच्चो को बोलूं कि उनके सपने पूरे नहीं हो सकते क्योंकि आपके अंदर कोई पोटेंशियल नहीं है, तो क्या आप उन्हें मेरे पास भेजोगे?’

तो पूरी क्लास ने बोला” नहीं, हम नही भेंजेंगे”. गैरी ने फिर एक्सप्लेन किया अगर आप अपने बच्चो को ऐसा नही बोलते तो खुद से क्यों बोलते हो?’ बहुत से लोगो के मन में ये मिथ या गलतफहमी रहती है कि वो कुछ बड़ा नहीं कर सकते, वो अपने गोल्स अचीव नहीं कर सकते क्योंकि उनमे काबिलियत नहीं है. लेकिन ये सच नहीं है. जब तक हम कोई काम हाथ में नही लेंगे हमे अपनी पोटेंशियल कभी मालूम नहीं पड़ेगी.

एक पेरेंट के तौर पर हम हमेशा अपने बच्चो को एंकरेज करना चाहते है. उन्हें यही फील कराते है कि उनके सपने अनरियलस्टिक नहीं है. हर पेरेंट यही चाहेगा कि उनके बच्चो के अंदर खूब सारा सेल्फ कांफिडेंस हो और वो उन्हें उनके एफर्ट्स के लिए रीवार्ड भी देते है. इसी तरह हमे भी अपना सेल्फ-एस्टीम कम नही होने देना है. सक्सेसफुल होने के लिए अपने सेल्फ कोंफिडेंस को बूस्ट करना पड़ता है और खुद को रीवार्ड भी देना पड़ता है. लाइफ में कुछ अचीव करना है तो अपने ड्रीम्स और पोटेंशियल पर यकीन करना सीखो और अपने सपनों को कभी छोटा मत समझो.

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मिथअंडरस्टैंडिंग #2 (Mythunderstanding #2)

मिथ: इट्स टू रिस्की. आई विल लूज़ मनी
ये बहुत रिस्की है, मेरे पैसे डूब जायेंगे (MYTH: IT'S TOO RISKY. I'LL LOSE MONEY.
ट्रुथ: रिस्क इज़ इन डायरेक्ट प्रोपोर्शन टू हाउ वेल यू होल्ड योर इंक्रीमेंटल कास्ट्स अकाउंटेबल टू प्रोड्यूसिंग इंक्रीमेंटल रिजल्ट्स. TRUTH: RISK IS IN DIRECT PROPORTION TO HOW WELL YOU HOLD YOUR INCREMENTAL COSTS ACCOUNTABLE TO PRODUCING INCREMENTAL RESULTS.

ये चैप्टर रिस्क एनालाइजिंग की इम्पोर्टेंस एक्सप्लेन करता है. किसी भी बिजनेस को शुरू करने से पहले ये जानना बेहद जरूरी है कि उसमे किस टाइप के रिस्क फेस करने पड़ सकते है. रिस्क तभी लेने चाहिए जब तक कि इनकम में खर्चो के मुकाबले बराबर इन्क्रीमेंट ना हो. दो तरह के लोग होते है. पहले वो जो खर्चो को लेकर रोते रहते है और दुसरे वो जो मानते है लाइफ में रिस्क लेना जरूरी है. मिलेनियर रीयल एस्टेट एजेंट्स जानते है कि रिजल्ट्स अनक्लियर हो तो क्या स्टेप्स लेने चाहिए और उस कॉस्ट को होल्ड कर देते है जो इन्क्रीमेंटल रिजल्ट्स देती है, साथ ही तब तक कोई फ्यूचर डील्स भी नहीं करते.

इससे रिस्क काफी हद तक कम हो जाता है. इसे हम बच्चो के एक गेम् से कम्पेयर कर सकते है, रेड लाईट, ग्रीन लाईट. एक बच्चा ट्रेफिक लाईट बनता है और जब ग्रीन लाईट बोलते है तो सब बच्चे चलने लगते है और रेड लाईट बोलते ही सब स्टॉप हो जाते है. ऐसे ही एक मिलेनियर रियल एस्टेट एजेंट भी बिहेव करता है, बिलकुल एक ट्रेफिक लाईट की तरह. यानी जब सिचुएशन उसके फेवर में होती है तो खर्चे बढाए जा सकते है ताकि स्पेशिफिक गोल्स अचीव किये जा सके. और जब रेड लाईट की सिचुएशन हो तो खर्चो पर कंट्रोल करना जरूरी है जब तक कि आपकी इनकम में कोई इजाफा ना हो. और फिर से जब लाईट ग्रीन हो जाए और इनकम बढ़ने लगे तो एक्स्पेंडीचर्स भी बढाए जा सकते है.

गैरी ने एक बार एक कैंडिडेट का इंटरव्यू लिया. वो कैंडिडेट गैरी से डबल सेलरी मांग रहा था और गैरी को $60,000 की सालाना सेलरी उस जॉब के हिसाब से काफी ज्यादा लग रही थी. क्योंकि इससे पहले वो इस पोस्ट के लिए $30,000 तक पे कर रहे थे. गैरी ने काफी सोच-विचार किया तो उन्हें फील हुआ कि जो अमाउंट उन्हें अब देनी होगी और जो वो पहले दे रहे थे, दोनों के बीच का जो डिफ़रेंस था वो उनके लिए रिस्क है.

फिर उन्हें ख्याल आया कि उन्हें महीने का सिर्फ $2500 पे करना है और अगर उन्हें उस कैंडिडेट का काम पसंद ना आया तो वो कभी भी उसे रीप्लेस कर सकते है. तो उन्होंने डिसाइड किया कि वो ये रिस्क लेंगे और उन्होंने लिया. साल के एंड में जो रिजल्ट्स उनके सामने थे, रीमार्केबल थे. उस कैंडिडेट की परफोर्मेंस काफी बैटर थी. तो कहने का मतलब ये कि अगर पैसा खर्च करके प्रॉफिट बढ़ता है तो ये पैसे का सही यूज़ है. गैरी ने जो रिस्क लिया था उसका उन्हें फेवरेबल रिजल्ट मिला. इसी तरह हमे भी हर डिसीजन सोच समझ कर लेने चाहिए और काम को आगे बढ़ाने से पहले रिस्क फैक्टर पर भी गौर कर लेना चाहिए.

मिथअंडरस्टैंडिंग #3 Mythunderstanding #3

मिथ: हैविंग अ गोल एंड नॉट फूली रियेलाइजिंग इट इज़ अ नेगेटिव थिंग
मिथ: गोल्स सेट करने के बाद उन्हें पूरी तरह रियेलाईज़ ना करना एक नेगेटिव चीज़ है (MYTH: HAVING A GOAL AND NOT FULLY REALIZING IT IS A NEGATIVE THING.
ट्रुथ: हैविंग अ गोल एंड नोट ट्राइंग टू अचीव इट इज़ अ नेगेटिव थिंग
सच: गोल्स सेट करने के बाद उन्हें अचीव करने की कोशिश ना करना नेगेटिव चीज़ है

अगर लोग ये सोचते है कि अपने गोल्स सक्सेसफूली अचीव ना करना फेलर है, तो ये सिर्फ एक मिथ है और इसमें कोई सच्चाई नहीं है. ये तो सब जानते है कि अब्राहम लिंकन और थॉमस एडिसन ने सक्सेस पाने के लिए ना जाने कितनी बार कोशिश की थी. गैरी एक्सप्लेन करते है कि फेलर हमारी सक्सेस स्टोरी के स्टेपिंग स्टोंस है जिन्हें क्रोस किये बिना हम आगे नहीं बढ़ सकते. बचपन में गैरी के पेरेंट्स ने उनके बेडरूम की दिवार पर एक पिक्चर टांग रखी थी जिसे वो “पोर्ट्रेट ऑफ़ एन अचीवर” बोलते थे.

इस पिक्चर में उन सालो का जिक्र था जब अब्राहम लिंकन फेल हुए थे. इसमें वो सारी डेट्स लिखी थी जब वो इलेक्शन हारे थे, बैंकरप्ट हुए थे, उनकी मंगेतर की डेथ हुई थी. और इसमें फाइनल पॉइंट वो साल था जब लिंकन यूनाईटेड स्टेट्स ऑफ़ अमेरिका के प्रेजिडेंट इलेक्ट हुए थे. अगर लिंकन ने शुरुवात में ही हार मान ली होती तो वो कभी भी प्रेजिडेंट नहीं बन पाते और ना ही लाखो लोगो को इंस्पायर कर पाते. तो फेलर्स से डरो मत, ये हमे सक्सेस की तरफ लेकर जाती है.

थोमस एडिसन हज़ार बार फेल हुए तब जाकर लाईट बल्ब इन्वेंट कर पाए थे. “नॉवेल”चिकेन सूप फॉर द सोल” को 30 से भी ज्यादा पब्लिशर्स ने रिजेक्ट किया था लेकिन बाद में इसी नॉवेल की 70 मिलियन से भी ज्यादा कॉपीज़ बिकी. हर कोई लाइफ में कहीं ना कहीं फेल होता है. पर फेलर्स का मतलब फाइनल हार नहीं है.

अगर लिंकन और एडिसन ने पहली हार में ही हिम्मत छोड़ दी होती तो वो कभी भी उस उंचाई तक नहीं पहुँच सकते थे. सक्सेसफुल लोग फेलर्स अवॉयड नहीं करते क्योंकि ये पॉसिबल ही नहीं है. अगर आप फेलर्स से बचना चाहते हो तो सक्सेस की उम्मीद मत रखो. आप तब फेल नहीं होते जब आप गोल्स मिस करते हो बल्कि तब होते हो जब आप ट्राई करना छोड़ देते हो.

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