(hindi) Getting to Yes: Negotiating Agreement Without Giving In

(hindi) Getting to Yes: Negotiating Agreement Without Giving In

इंट्रोडक्शन(Introduction)

क्या आपने कभी कोई सौदा करते वक़्त या कोई बिज़नेस डील का अग्रीमेंट करते वक़्त निगोशिएट करना या मोल भाव करना बीच में ही छोड़ा है ? हम सब ये कभी ना कभी एक्सपीरियंस ज़रूर करते हैं जब मौजूदा आप्शन हमारी पसंद से मैच नहीं होते, तब हमें  निराशा महसूस होती है और हम बीच में ही अग्रीमेंट छोड़ देते हैं. लेकिन आपसी समझौते तक पहुँचने का एक तरीका है जो दोनों ही पार्टी के लिए एक विन-विन सिचुएशन होती है.

जब भी हम कुछ खरीदना चाहते हैं या कोई डील क्रैक करना चाहते हैं तो हम फेयरटर्म्स और प्राइस के लिए मोल भाव करने लगते हैं, उसे ही नेगोशिएशन या बार्गेन करना कहते हैं.इसमंह सबसे अहम् बात होती है पेशेंस दिखाना.जब दोनों पार्टी बातचीत करते समय अपना पेशेंस दिखाते हैं तब वो आसानी से सही डिसिशन तक पहुँच सकते हैं.इस बुक में आपसीखेंगे कि बिना हार माने या बिना पीछे हटे आप एक डील पाने के लिए कैसे प्रोफेशनली निगोशिएट कर सकते हैं. इसके अलावा आप सही स्टेप्स लेकर दूसरी पार्टीज को अपने ऑफर की ओर  attract भीकर सकते हैं. तो क्या आप निगोशिएट और बातचीत करने के लिए तैयार हैं?

ये बुक आपको सिखाएगी कि शांति से एक negotiator कैसे बनें और अच्छे रिलेशन बनाए रखते हुए फेयर अग्रीमेंट कैसे हासिल करें.

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Don’t Bargain Over Positions

Negotiators अक्सर कोई डील निगोशिएट करते समय बीच में फंस जाते हैं, वो हमेशा आगे बढ़ने की कोशिश में लगे रहते हैं . लेकिन विलियम और रॉजर के अनुसार,नेगोशियेशन जीतने के बारे में नहीं है. ये राईट अग्रीमेंट करने के बारे में है. नेगोशिएट करते समय दोनों पार्टीज अपने आप का बचाव करने की कोशिश करती हैं.

एग्ज़ाम्पल के लिए, एक buyer है जो एक गिफ्ट शॉप में कुछ खरीदना चाहता है.Buyer बहुत कम दाम के लिए मोल भाव करने लगता है लेकिन सेलर उसके लिए राज़ी नहीं होता. सेलर नार्मल प्राइस का ऑफर देता है लेकिन buyer को लगता है कि वो अब भी महँगा है.buyer प्राइस कम करने की कोशिश करता रहता है लेकिन सेलर नहीं मानता. वो उस प्रोडक्ट की क्वालिटी और मैन्युफैक्चरिंग प्रोसेस के बारे में बताकर कम दाम को एक्सेप्ट करने से मना कर देता है. दोनों दाम को लेकर बहस करने लगते हैं. इस सिचुएशन को  positional bargaining कहा जाता है.ऐसी सिचुएशन में दोनों पार्टीज अपनी अपनी बात पर अड़े रहते हैं.

आमतौर पर इस तरह की negotiation को सही नहीं माना जाता क्योंकि ये दोनों पार्टी के बीच के रिश्ते को ख़राब कर सकता है.जो चीज़ उनके रिश्ते को बर्बाद कर सकती है वो है उनका ईगो , वो दोनों खुद जीतने की कोशिश में लगे रहते हैं. इस प्रॉब्लम को सोल्व करने और एक अग्रीमेंट तक पहुँचने के लिए दो तरीके हैं. उसे soft bargaining और hard bargaining कहते हैं.

निगोशिएट करते वक़्त सॉफ्ट negotiator किसी झगड़े में ना पड़कर आपसी समझौते जिसे म्यूच्यूअल अग्रीमेंट कहते हैं उस तक पहुँचने की कोशिश करता है. म्यूच्यूअल अग्रीमेंट उसे कहते हैं जहां एक नहीं बल्कि दोनों की पार्टी को कुछ ना कुछ फ़ायदा ज़रूर होता है.वहीँ दूसरी ओर, हार्ड negotiator मोल भाव करने में अड़ा रहता है, वो कभी पीछे नहीं हटता. वो हमेशा अपने टर्म्स पर डील फाइनल कर जीतने की कोशिश करता है.

आमतौर पर, सॉफ्ट negotiator दूसरी पार्टी को एक दोस्त के रूप में देखता है इसलिए इनके रिलेशन ज़्यादातर अच्छे होते हैं. ये लोग हमेशा म्यूच्यूअल अग्रीमेंट पर ज़ोर देते हैं ताकि दोनों पार्टी संतुष्ट हो सके. इससे बिलकुल उलटे, एक हार्ड negotiator दूसरी पार्टी को एक दुश्मन के रूप में देखता है जिसे वो हर हालत में हराना चाहता है.

अगर buyer और सेलर दोनों मोल भाव करने की ज़िद पर अड़े रहे तो यहाँ दोनों ही हार्ड bargaining का इस्तेमाल कर रहे हैं. सॉफ्ट barganing में दोनों ही पार्टी एक ऐसे प्राइस तक पहुँचने की कोशिश करती है जहां दोनों को कोई आपत्ति ना हो. जैसे कि मान लीजिए, आपका दोस्त 500$ में अपनी बाइक बेचता है. आप उसकी बाइक लेना चाहते हैं ताकि आपको काम पर बस में ना जाना पड़े लेकिन आप 300$ से ज़्यादा ख़र्च नहीं कर सकते.

अब इस सिचुएशन में अगर सॉफ्ट barganing हो तो आप और आपका दोस्त एक अग्रीमेंट तक पहुँचने की कोशिश करते हैं. यहाँ आप 300$ का ऑफर देते हैं और अपने दोस्त को समझाते हैं कि आपको बाइक की ज़रुरत क्यों हैं और आपका दोस्त मान जाता है. अंत में आपको बाइक 300$ में मिल जाती है. इसमें आप दोनों की satisfied महसूस करते हैं क्योंकि बाइक मिलने से आपकी ज़रुरत पूरी हुई इसके साथ-साथ आपने बाइक खरीद कर अपने दोस्त की मदद भी की.

आपका दोस्त भी संतुष्ट होता है क्योंकि उसे अपनी बाइक के पैसे मिल गए और उसने आपकी भी मदद कर दी. हमें सामने वाली की सिचुएशन को समझने की कोशिश करनी चाहिए, इससे एक अग्रीमेंट तक बड़ी आसानी तक पहुंचा जा सकता है. इस केस में दोनों पार्टी ने एक दूसरेको समझने की कोशिश की और एक दूसरे के हित या इंटरेस्ट पर फोकस किया नाकि सिर्फ़ ख़ुदकी पोजीशन पर.

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Separate the People from the Problem

एक और तरीका है जो हार्ड और सॉफ्ट barganing technique से ज़्यादा असरदार है. Harvard Negotiation Project में विलियम  और रॉजर ने positional bargaining के लिए एक अलग मेथड डेवलप किया है. उन्होंने इसे principled negotiation या negotiation on the merits का नाम दिया जिसका मतलब होता है योग्यता के आधार पर निगोशिएट करना. इस मेथड में चार फैक्टर्स शामिल हैं,जो हैं – लोग, interest, option और criteria.

पहला फैक्टर है लोग यानी निगोशिएट करते वक़्त हमें लोगों को प्रॉब्लम से अलग रखना चाहिए. ये फैक्टर हमें ये समझाता है कि हम लोगों के इमोशंस और ईगो को कैसे पहचान सकते हैं जो उस प्रॉब्लम में शामिल होते हैं जिसके लिए वो निगोशिएट कर रहे हैं. ऐसे लोग बड़ी आसानी से अपसेट और निराश हो जाते हैं. अगर हम उनके इरादे को ठीक से समझने में चूक गए तो वो हमें गलत समझ सकते हैं.

ऐसे मामले में आप  “hard on the problem, soft on the people” मेथड का इस्तेमाल कर सकते हैं. ये मेथड हमें सिखाती है कि अपने ईगो को शामिल किए बिना आप प्रॉब्लम को कैसे सोल्व कर सकते हैं. ये negotiation में होने वाली ग़लतफहमी से भी बचाता है. इसके साथ-साथ ये दूसरे पार्टी के साथ आपके रिश्ते को भी मज़बूत करता है.

तो रिश्ते को मज़बूत बनाने के लिए आपको क्या करना होगा? आपको उस डील में दोनों पार्टी के हितों को देखना चाहिए और अग्रीमेंट तक पहुँचने में किसी भी तरह के झगड़े से बचना चाहिए. इसके अलावा आपको अपने इमोशन को अलग रख कर प्रॉब्लम पर फोकस करना होगा. यहाँ main चैलेंज है लोगों को प्रॉब्लम से अलग करना, लोगों को लोगों से अलग करना नहीं. आइए एक एग्ज़ाम्पल से इसे समझते हैं.

जॉन इलेक्ट्रॉनिक्स रिपेयर स्टोर में एक नया एम्प्लोई है. एक दिन,एक कस्टमर स्टोर में शिकायत लेकर आया कि रिपेयर करवाने के बावजूद उसका टीवी काम नहीं कर रहा था. तब जॉन ने उसे समझाया कि उसका टीवी बहुत पुराना हो गया था और ठीक नहीं किया जा सकता. लेकिन तब भी कस्टमर ज़िद पर अड़ा रहा कि टीवी को ठीक करना होगा. यहाँ तक कि उसने जॉन को धमकी दी कि वो पुलिस कंप्लेंट कर देगा.

तब जॉन ने मैनेजर को प्रॉब्लम बताई. एक हफ़्ते बाद कस्टमर दोबारा स्टोर में आया. मैनेजर ने भी कस्टमर को समझाने की कोशिश की कि टीवी ठीक नहीं हो सकता और कहा कि पुलिस कंप्लेंट करना सही नहीं है. इसके बजाय उसे उनके स्टोर से कम दाम का नया टीवी खरीद लेना चाहिए. वो कस्टमर को अलग अलग टीवी दिखाने लगा और उनके फीचर के बारे में बताया. आखिर कस्टमर को कम दाम का एक टीवी पसंद आ ही गया और इस तरह ये बात आगे बढ़ने से रुक गई. इस केस में मैनेजर ने जॉन और कस्टमर दोनों को प्रॉब्लम से अलग कर दिया था.
Focus on Interests, Not Positions

अब आते हैं दूसरे फैक्टर पर जो है इंटरेस्ट. इसमें आपको दोनों पार्टी के हित या इंटरेस्ट पर ध्यान देना है नाकि उनकी पोजीशन पर. ये फैक्टर soft-bargaining approach से जुड़ा हुआ है जहां लोग अपने इंटरेस्ट पर फोकस करते हैं और अपनी पोजीशन के हिसाब से मोल भाव नहीं करते. ये फैक्टर आपको गाइड करता है कि आप लोगों की ज़रूरतों को कैसे जान सकते हैं. जब कोई समझाता है कि आपको क्या चाहिए तब जाकर दूसरे उसे समझ कर एक प्रोडक्ट आपके लिए ला सकते हैं.आइए एक एग्ज़ाम्पल से समझते हैं.

एक परिवार सैर पर निकला था. वो शहर के ख़ूबसूरत नज़ारे को एन्जॉय कर रहे थे. उस परिवार में एक छोटा बच्चा था जो सड़क पर चाट का ठेला देख कर वहाँ खाने की ज़िद करने लगा लेकिन उसके पापा ने मना कर दिया क्योंकि उन्हें वो जगह साफ़-सुथरी नहीं लग रही थी. बच्चा ना सुनकर ज़ोर-ज़ोर से रोने लगा.तब उसकी मम्मी उसे समझाने की कोशिश करती है कि वो उसके लिए उतना ही टेस्टी डोसा घर पर बना देगी, कुछ देर बाद बच्चा मान जाता है. यहाँ कहा जा सकता है कि उसकी मम्मी ने बिना स्ट्रीट फ़ूड खरीदे सिर्फ़ अपनी बातों से बच्चे की इच्छा पूरी की.

आइए एक और एग्ज़ाम्पल देखते हैं. एक कस्टमर बुकस्टोर में बुक खरीद रहा था. उसने 25$ की बुक 15$ में खरीदने की बात कही. लेकिन सेलर इंकार कर देता है क्योंकि वो बुक नई नई पब्लिश हुई थी. कस्टमर फ़िर भी मोल भाव करने की कोशिश कर रहा था. तब सेलर ने पूछा, “आप ये बुक क्यों खरीदना चाहते हैं? क्या ये आपकी favourite बुक है?” कस्टमर ने कहा, “हाँ, ये बुक काफ़ी दिलचस्प है और इसकी स्टोरी लाइन कमाल की है.”

ये सुनकर सेलर ने कहा, “ मेरे पास इस बुक की चार sequel है. इस बुक के ऑथर ने इस साल चार बुक्स पब्लिश की हैं. रुकिए मैं आपको दिखाता हूँ.” उसने चारों बुक्स कस्टमर को दिखाते हुए कहा, “अगर आप चारों बुक्स खरीदते हैं तो मैं एक बुक 20$ पर देने के लिए तैयार हूँ”. इस ऑफर से कस्टमर ख़ुश हो गया और उसने चारों बुक्स 80$ में खरीद ली. इस डील से दोनों कस्टमर और सेलर ख़ुश भी थे और संतुष्ट भी.

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