(hindi) Playing It My Way

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इंट्रोडक्शन (Introduction)

सचिन तेन्दुलकर को कौन नहीं जानता. हम सबको मालूम है कि सचिन ने क्रिकेट की दुनिया में और देश के लिए कितना नाम कमाया है. लेकिन हम इस बुक में हम सचिन के बारे में और भी काफी कुछ पढेंगे. इस बुक के थ्रू आप उसके माइंडसेट, उसके थौट्स और इमोशंस के बारे में जानोगे और उसकी सक्सेस का सीक्रेट भी. सचिन में उनकी एक्सपर्ट स्किल्स के अलावा भी काफी कुछ है.

उनके अंदर ह्यूमेनिटी है और वो एक स्ट्रोंग केरेक्टर वाले इंसान है. अपनी लाइफ में उन्होंने काफी स्ट्रगल किया और काफी मेहनत के बाद वो आज इस मुकाम पर पहुंचे है. इस बुक में आपको सचिन की लाइफ जर्नी के बारे में पढने को मिलेगा. और आप उनकी लाइफ स्टोरी की बारे में जानोगे.

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चाइल्डहुड( बचपन) Childhood

सचिन, लाइफ किसी किताब जैसी है जिसके कई चैप्टर्स होते है. कुछ चैप्टर्स हमे सक्सेस दिखाते है तो कुछ हमे फेलियर का लेसन देते है. इस बुक से आपको एक बात समझ आएगी कि दुःख और परेशानियां हमे वो सिखाती है जो हमे ख़ुशी नहीं सिखा सकती. इसलिए तो दुखो को एक बेहतरीन टीचर कहा जाता है. अपनी कंट्री के लिए खेलना किसी भी प्लेयर के लिए ऑनर की बात होती है. पर याद रहे ये भी लाइफ की बुक का सिर्फ एक चैप्टर है.

अगर गौर से देखो तो प्रोफेशनल क्रिकेट में आप अपनी लाइफ के मैक्सिमम 25 साल गुजारते है. जबकि आपकी लाइफ का एक बड़ा हिस्सा स्पोर्ट्स के बाहर भी है. कहने का मलतब है कि स्पोर्ट्स के अलावा भी लाइफ में काफी कुछ है जो हमे देखना चाहिए. इसलिए अपने पैर मजबूती से ग्राउंड पर जमाए रखो. सक्सेस को कभी सर पे मत चढने दो.

जितने हम्बल रहोगे उतना अच्छा है. क्योंकि प्रोफेशनल करियर खत्म होने के बाद भी लोग आपसे प्यार करते रहेंगे और आपकी रिस्पेक्ट करेंगे. मेरे बेटे, तुम्हारा फादर होने के नाते मै हमेशा यही चाहूँगा कि लोग मुझे देखे तो बोले” सचिन एक अच्छा इन्सान है” बजाए इसके कि” सचिन एक ग्रेट बैट्समेन है’.
ये बात मुझे मेरे फादर ने बोली थी जो मुझे आज तक याद है. मेरे फादर की डेथ 1999 में हुई जब मै इंग्लैण्ड में वर्ल्ड कप खेल रहा था लेकिन मेरे फादर हमेशा मेरे लिए एक ग्रेट इंस्पिरेशन रहेंगे.

मै मुंबई के बांद्रा में साहित्य सहवास कालोनी में पला-बढ़ा हूँ. अपने चार भाई-बहनों में मै सबसे छोटा और सबसे ज्यादा शैतान था. मेरे फादर एक प्रोफेसर और कवि थे. और मेरी माँ दुनिया की सबसे बेस्ट कुक थी. मै अपने बड़े भाई अजित के बहुत क्लोज था. वो तब से मेरे साथ है जब मैंने पहली बार क्रिकेट खेला था. मेरा बचपन काफी खुशहाल और एडवेंचर्स रहा है. मै और मेरे फ्रेंड्स पड़ोसियों पर प्रेंक करते थे जिसमे से हमारा प्रेक होता था, अपने फोर्थ फ्लोर के फ़्लैट से गली में आने-जाने वालो पर पानी फेंकना. सच कहूँ तो हम लोग बड़े मजे करते थे.

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लर्निंग द गेम (गेम सीखना ) Learning the Game

मै और मेरे फ्रेंड्स टेनिस बाल क्रिकेट भी खेलते थे. जब भी टीवी पे क्रिकेट मैच आता, मै जरूर देखता था. सुनील गावस्कर और विव रिचर्ड्स मेरे फेवरेट बैट्समेन थे. मै उनकी टेक्नीक्स बड़े गौर से ओब्ज़ेर्व करता था और टेनिस बाल खेलते वक्त ट्राई करता था. तब मेरी एज 11 साल की थी. फिर मेरे भाई अजित ने मुझे रमाकांत अचरेकर समर कैम्प ज्वाइन करने के लिए एंकरेज किया. वो मुंबई के सबसे बेस्ट क्रिकेट कोच थे.

उस टाइम वो शारदाश्रम विद्यामंदिर स्कूल में कोचिंग करते थे. अजित और मैने बस से शिवाजी पार्क पहुंचे, यही पर अचरेकर सर प्लेयर्स को ट्रेनिंग देते थे. मैंने सब-जूनियर के लिए ट्राई किया. स्टार्टिंग में अचरेकर सर ने मुझे रिजेक्ट कर दिया था. उन्हें मेरी बेटिंग अच्छी नहीं लगी थी. उन्होंने अजित को बोला” ये अभी बहुत छोटा है. अभी इसे और प्रेक्टिस की जरूरत है’. लेकिन अजित को मुझ पर पूरा बिलीव था. उसने टेनिस बॉल क्रिकेट में मेरी परफोर्मेंस देखी थी. उसने अचरेकर सर से कहा’ सर एक चांस और दे दीजिये, आप इसे देख रहे है इसलिए ये नर्वस हो रहा है”.

तो अचरेकर सर छुपकर दूर से मुझे देखते रहे. मैंने दुबारा बेटिंग की और इस बार पहले से अच्छी परफोर्मेंस दी. और फाइनली अचरेकर सर मुझे मुझे अपना स्टूडेंट बनाने को तैयार हो गए. मेरी ट्रेनिंग रोज़ सुबह 7:30 से 10:30 तक होती थी. फिर दोपहर से शाम तक एक और सेशन होता था. मेरे पास सिर्फ एक ही क्रिकेट यूनिफोर्म थी. मै जब लंच के लिए घर जाता था तो अपनी यूनिफोर्म धोकर सुखा देता था. फिर वही यूनिफॉर्म पहन कर आफ्टरनून प्रेक्टिस के लिए जाता था.

समर कैंप अच्छा चल रहा था. अचरेकर सर ने मेरे फादर से कहा कि अगर ये क्रिकेट को लेकर सिरियस है तो उसे शारदाश्रम में डलवा दीजिये. मेरी फेमिली हमेशा से ही काफी सपोर्टिव रही है. मेरे फादर ने मुझे हमेशा यही एडवाइस दी कि अपना बेस्ट करो और अपने गोल पर डटे रहो. मुझे अपने फ्रेंड्स के साथ खेलना और टेनिस बॉल क्रिकेट खेलना भी पसंद था इसलिए कई बार मै प्रेक्टिस के लिए लेट हो जाता था. तब अचरेकर सर अपने स्कूटर में मुझे लेने मेरी कॉलोनी पहुँच जाते थे. और मुझे डांटते हुए खेल के बीच से उठाकर ले जाते थे.

अचरेकर सर के सामने कोई बहाना नहीं चलता था. वो मुझे बोलते” जल्दी से क्रिकेट ड्रेस पहनो पीछे बैठ जाओ. इन फालतू के गेम्स में टाइम वेस्ट मत करो, रियल क्रिकेट नेट्स में तुम्हारा वेट कर रहा है. अगर तुम मेहनत करोगे तो जादू हो सकता है”

अचरेकर सर मुझे कुछ इस तरह की ट्रेनिंग देते थे. 15 साल की एज में मुझे अपना डेब्यू मैच खेलने का चांस मिला जो मुंबई और गुजरात के बीच था. ये मेरे लिए काफी बड़ा ब्रेक था. मुंबई के कैप्टेन ने मेरा गेम देखा और डिसाइड कर लिया कि मै अब क्रिकेट के लिए एकदम रेडी हूँ. और अपने पहले मैच में ही सेंचुरी मारने वाला मै सबसे यंगेस्ट क्रिकेटर बन गया. उसके बाद मैंने ईरानी ट्राफी गेम्स में 100 नोट आउट स्कोर बनाये. और 16 की उम्र में इंडियन नेशनल टीम में मेरा सेलेक्शन हो गया था.

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अंजली (Anjali)

1992 में ऑस्ट्रेलिया में मेरा फर्स्ट वर्ल्ड कप था. हालाँकि हम सेमी फाइनल्स तक नहीं पहुंच पाए पर मेरे लिए ये एक बड़ा चांस था. इंटरनेशनल क्रिकेट खेलना मेरे लिए बहुत बड़ी बात थी. इसने मुझे एक क्रिकेटर के तौर पर पूरी तरह से ट्रांसफॉर्म कर दिया था. वर्ल्ड कप की वो चार महीने की ट्रेनिंग मेरे स्किल्स इम्प्रूव करने के लिए काफी थी. इसी बीच, मै अपनी होने वाली वाइफ अंजली से मिला. ये इंसिडेंट एयरपोर्ट पर हुआ. मै उसी टाइम इंग्लैण्ड के टूर से लौटा था. मै अपने बैग्स का वेट कर रहा था. तभी मेरी नजर एक बेहद खूबसूरत लड़की पर पड़ी, उसने ब्ल्यू जींस और ऑरेंज शर्ट पहनी थी.

ये अंजली थी. वो अपनी फ्रेंड के साथ थी. फिर क्या हुआ कि दोनों मुझे फोलो करते हुए एअरपोर्ट के बाहर आ गई, मैंने उसकी तरह देखा, वो अपनी फ्रेंड से बोल रही थी” ओ माई गॉड, वो कितना क्यूट है! मुझे बड़ी शर्म आई, लेकिन मै अंजली से कुछ बोल नहीं पाया क्योंकि अजित बाहर मेरा वेट कर रहा था. अंजली का एक फ्रेंड क्रिकेटर था. उसने उससे मेरा नंबर माँगा, बाद में मुझे पता चला कि अंजली के फादर क्रिकेट फैन है. इसीलिए अंजली ने मुझे भी टीवी में क्रिकेट खेलते देखा था.

एक दिन उसने मुझे फ़ोन किया, उसने मुझे बोला कि वो एयरपोर्ट वाली लड़की है. उसने मुझे मिलने के लिए बोला. उसे डाउट था कि शायद मुझे एयरपोर्ट वाली बात याद नहीं है. लेकिन जब मैंने उसे बोला” तुम वही हो ना जिसने ब्ल्यू जींस और ऑरेंज शर्ट पहनी थी” तो वो खुश हो गयी.

हमने क्रिकेट क्लब ऑफ़ इंडिया में मिले. वहां काफी भीड़ थी इसलिए हम दोनों को ज्यादा बात करने का चांस नहीं मिल पाया. पर मैंने उसका नंबर जरूर ले लिया. और उसके बाद हम रोज़ फोन पे बात करते थे. मेरी भाभी को ये बात पता चली तो उसने मुझे चिढाना शुरू कर दिया.

अंजली और मै पांच साल तक डेट करते रहे. सच बोलूं तो मेरी लाइफ में कभी कोई लड़की नहीं आई थी, अंजली ही वो पहली लड़की थी जिससे मुझे प्यार हुआ था. मैंने क्रिकेट के अलावा कभी कुछ सोचा ही नहीं था. लेकिन मेरा लक अच्छा था जो मुझे अंजली जैसी लड़की मिली. फिर हमारी शादी हुई, दो बच्चे हुए. उनके नाम है सारा और अर्जुन.

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