(hindi) Rich Dad’s Before You Quit Your Job

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इंट्रोडक्शन(Introduction)

क्या आप अपने रेगुलर 9 टू 5 जॉब से थक चुके हैं? क्या आ 0 –

रूप में काम करते करते बोर हो गए हैं? अगर हाँ, तो ये बुक आपके लिए है.

शायद आप भी ऐसे लोगों को जानते होंगे जिन्होंने जॉब छोड़कर बिज़नेस की शुरुआत की  और आज वो काफ़ी सक्सेसफुल हैं और अच्छा ख़ासा कमा रहे हैं. आप भी उनमें से एक बन सकते हैं.

ये बातें सिर्फ़ कोरी कल्पना नहीं है और ना ही कोई सपना है. इस बुक के ऑथर रॉबर्ट आपको सिखाएँगे कि अपनी जॉब छोड़ कर एक लंबी छलांग लगाने से पहले आपको क्या क्या सीखने की ज़रुरत है.

एक बिजनेसमैन बनना आसान नहीं है. इस बुक के ज़रिए आपको ये समझ में आएगा कि इस प्रोफेशन में सिक्योरिटी नाम की कोई चीज़ नहीं होती. इसमें आपको रेगुलर सैलरी और बेनिफिट नहीं मिलने वाले. आप ये भी जानेंगे कि नए बिजनेसमैन बार-बार और कई बार फेल भी होते हैं. लेकिन मायने ये रखता है कि आप अपनी गलतियों से सीख कर कड़ी मेहनत करने के लिए तैयार हों.

इस सफ़र की शुरुआत अपना माइंडसेट और नज़रिया बदलने से होती है. हो सकता है कि आप सालों से एक एम्प्लोई हों और एक एम्प्लोई की तरह ही सोचते हों लेकिन अब इसे बदलने का समय आ गया है.एक बिज़नेसमैन किस तरह सोचता है ये सीखने के बाद आपको फ्रीडम और सक्सेस दोनों मिलेंगे.एक सक्सेसफुल बिजनेसमैन बनने के लिए यहाँ कुछ ख़ास लेसन बताए गए हैं. आइए एक-एक करके उन्हें समझते हैं.

Lesson #1
What is the difference between an entrepreneur and an employee?

“रिच डैड पुअर डैड” एक बहुत ही मशहूर बुक है. उसमें जो पुअर डैड थे उनका कहना था कि “मन लगाकर पढ़ाई करो, अच्छे मार्क्स लाओ ताकि आपको एक स्टेबल इनकम वाली अच्छी जॉब मिल सके”. उन्होंने रॉबर्ट को भी एम्प्लोई बनने के लिए encourage किया.

तो वहीँ रिच डैड का कहना था कि “अपना ख़ुद का बिज़नेस शुरू करो और उन लोगों को काम पर रखो जो आपसे ज़्यादा स्मार्ट हैं”. उन्होंने रॉबर्ट को एक बिजनेसमैन बनने के लिए encourage किया.

तो एक बिजनेसमैन और एम्प्लोई में आखिर फ़र्क क्या होता है? एक एम्प्लोई बिज़नेस की शुरुआत होने के बाद उसमें काम करना शुरू करता है. लेकिन एक बिजनेसमैन को बिज़नेस के शुरू होने से पहले ही काम पर लगना पड़ता है.

सच्चाईतोये है कि 99% नए बिज़नेस अपनी 10th एनिवर्सरी के पहले ही बंद हो जाते हैं. ज़्यादातर बिज़नेस ख़राब planning की वजह से फेल होते हैं. कंपनी का ओनर अपनी कड़ी मेहनत से बिज़नेस को लंबे समय तक चलाने की कोशिश करता है. हालांकि, ऐसा करने के कई सालों के बाद ओनर भी थक जाता है. काफ़ी समय और पैसा उन एक्टिविटीज में लगानी पड़ती हैं जो असल में प्रॉफिट कमाने में कोई मदद नहीं करते. पहली बात, अगर किसी बिज़नेस को ख़राब तरीके से डिज़ाइन किया गया हो तो ओनर की घंटों की कड़ी मेहनत भी उसे बचा नहीं सकती.

रॉबर्ट के एक दोस्त थे जिनका नाम जॉन था. जॉन ने अपना बिज़नेस शुरू करने के लिए एक बड़े बैंक में जॉब छोड़ दी थी. वो लोन ऑफिसर के रूप में काम करते थे जिसके लिए उन्हें अच्छी सैलरी मिलती थी. लेकिन उन्होंने देखा कि बैंक के जो सबसे अमीर कस्टमर्स थे वो बिजनेसमैन थे.जॉन सोचा करते थे, क्या कभी वो उनमें से एक बन पाएँगे. वो एक एम्प्लोई की तरह नहीं बल्कि एक बॉस बनकर अपने तरीके से काम करना चाहते थे.

इसलिए जॉन ने जॉब छोड़ दी और अपनी माँ के साथ एक छोटा सा फ़ूड जॉइंट खोल लिया. वो वहाँ लंच सर्व करते थे. उन्होंने शहर में कॉर्पोरेट ऑफिस के पास एक जगह रेंट पर ली. हर रोज़, जॉन और उनकी माँ सुबह 4 बजे उठते और खाना तैयार करने में लग जाते. दोनों कम दाम पर अच्छा ख़ासा खाना परोसने के लिए कड़ी मेहनत कर रहे थे.वो कम दाम लेते थे लेकिन प्लेट भर कर खाना देते थे.

रॉबर्ट अक्सर वहाँ खाने और उनसे बातें करने जाते थे.जॉन बहुत ख़ुश लग रहे थे. उन्हें कस्टमर्स को सर्व करना बहुत पसंद था. वो अक्सर रॉबर्ट से कहते, “किसी दिन हम भी एक बड़ा नाम होंगे. हम लोगों को काम पर रखेंगे ताकि वो हमारे लिए कड़ी मेहनत कर सकें”. लेकिन वो दिन कभी नहीं आया, जॉन की माँ गुज़र गईं थी. जॉन ने जॉइंट बंद करके एक रेस्टोरेंट में मैनेजर की पोस्ट के लिए अप्लाई किया. अब जॉन एक बार फ़िर से एम्प्लोई बन गए थे.

आखरी बार जब रॉबर्ट उनसे मिले तो जॉन ने बताया कि उनकी सैलरी कम थी लेकिन उन्हें कम घंटे काम करना पड़ता था. अब आप कहेंगे कि कम से कम जॉन ने बिज़नेस चलाने की कोशिश तो की और उसने बहुत कड़ी मेहनत भी की. अगर उनकी माँ जिंदा होतीं तो हो सकता था कि उनका बिज़नेस बढ़ जाता और वो बहुत पैसा कमा लेते.

रॉबर्ट को जॉन की माँ से बहुत लगाव था. वो इस बात से दुखी थे कि इतनी मेहनत करने के बावजूद उनका बिज़नेस फेल हो गया था. लेकिन ये फेलियर भी बिजनेसमैन होने का एक हिस्सा है.जॉन के बिज़नेस को डिज़ाइन करने के तरीके में कुछ गलती थी.

एक सक्सेसफुल बिज़नेस को इस तरह डिज़ाइन किया जाना चाहिए ताकि वो अपने ओनर के ना होने के बावजूद भी चलता रहे और ग्रो करता रहे. यही एक बिजनेसमैन का असली काम होता है. उसे एक ऐसा बिज़नेस मॉडल बनाने की ज़रुरत है जो उसके होने या ना होने के बावजूद कस्टमर्स को वैल्यू दे सके, लोगों को काम पर रख सके, ग्रो कर सके.

रॉबर्ट के अनुसार, बिज़नेस में चार तरह के लोग होते हैं.पहला है एम्प्लोई. दूसरे हैं, ख़ुद का बिज़नेस चलाने वाले छोटे बिज़नेस ओनर्स. तीसरे हैं, बड़े बिज़नेस ओनर्स जो 500 या उससे ज़्यादा एम्प्लाइज को काम पर रखते हैं और चौथे हैं इनवेस्टर्स.

एक सीनियर मैनेजर और सिक्योरिटी गार्ड दोनों ही कंपनी के एम्प्लोई हैं. उन्हें रेगुलर सैलरी मिलती है. ऐसे लोगों को सेफ़ और फिक्स्ड इनकम चाहिए.

बिज़नेस ओनर्स का ये मानना है कि अगर आप कोई काम ठीक से करवाना चाहते हैं तो आपको उसे ख़ुद करना चाहिए.ऐसे लोगों को दूसरों पर कम विश्वास होता है इसलिए इनका बिज़नेस ज़्यादा बड़ा नहीं हो पाता.ये छोटे बिज़नेस ओनर्स सारे काम ख़ुद सँभालते हैं.

वहीँ दूसरी ओर, बड़े बिज़नेस ओनर्स अच्छा सिस्टम बनाने में और टैलेंटेड लोगों को काम पर रखने में विश्वास करते हैं.ऐसा करने से,कंपनी ओनर की लगातार निगरानी के बिना भी बड़ी हो सकती है.

इनवेस्टर्स वो होते हैं जो छोटे और बड़े बिज़नेस की तलाश में रहते हैं जो उनके पैसों का सही इस्तेमाल कर उसे और बढ़ा सके.

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Lesson # 2
Learn How to Turn Bad Luck Into Good Luck

ये चैप्टर अपनी गलतियों से सीखने के बारे में है.आपको फेलियर को या अपनी गलतियों को bad लक के रूप में नहीं देखना चाहिए. आपको उन्हें अपने बिज़नेस को और ख़ुद को ज़्यादा जानने के मौकों के रूप में देखना चाहिए.

गलतियाँ स्टॉप सिगनल की तरह होती हैं. ये warning साइन के जैसे हैं जिसका मतलब है कि आपको रुक कर सोचने की ज़रुरत है यानी आप कहीं ना कहीं भूल कर रहे हैं और आपको उस भूल का पता लगाने की ज़रुरत है.ये हमें कुछ नया सीखने का मौका देती है.

इसलिए अगर अगली बार आप फेल होते हैं तो निराश मत होइए, आपको बस रुक कर सोचने की ज़रुरत है. आपको गुस्सा और दोष देने की फीलिंग्स को साइड में रखना होगा. अपना नज़रिया बदलें और इस बात को एक्सेप्ट करें कि फेल होना बुरा नहीं है. इससे आपको हताश होकर चीज़ों को बीच में छोड़ना नहीं है बल्कि ये समझना है कि आप क्या गलती कर रहे थे और उससे सीखना है.आइए रॉबर्ट के पुअर डैड की कहानी सुनते हैं.

50 की उम्र में वो गवर्नमेंट जॉब से रिटायर हुए और उन्होंने ख़ुद का बिज़नेस शुरू किया. उन्होंने एक फेमस आइसक्रीम ब्रैंड की फ्रैंचाइज़ी ली. पुअर डैड ने सोचा कि ये बिज़नेस तो फेल हो ही नहीं सकता क्योंकि लोग उस ब्रैंड के दीवाने थे. लेकिन सिर्फ़ दो सालों में ही उनकी दूकान बंद हो गई और उनका सारा पैसा डूब गया.

इस घटना की वजह से उन्हें बहुत गुस्सा आ रहा था और वो काफ़ी उदास भी हो गए थे. अपने बिज़नेस के फेल होने के लिए उन्होंने फ्रेंचाइज़र को दोषी ठहराया. उन्होंने अपनी गलतियों से कुछ नहीं सीखा.उनके स्टोर में कुछ गिने चुने लोग ही आया करते थे लेकिन इसके अलावा उनके लॉयल कस्टमर्स नहीं बन पाए. वो स्टोर में घंटों अकेले बैठे रहते.

यहाँ सबक ये है कि किसी और को दोष देने की बजाय उन्हें तुरंत इस बात को एक्सेप्ट कर लेना चाहिए था कि कहीं ना कहीं उनसे गलती हुई है. उन्हें अंधाधुन आगे बढ़ने की जगह रुक कर थोड़ा सोचना चाहिए था.उन्हें अपनी गलतियों का पता लगाकर उसे सुधारना चाहिए था.लेकिन उन्होंने इस पर गौर ही नहीं किया और एक के बाद एक दिन निकलते गए जिसका अंजाम ये हुआ कि उनका दिवाला निकल गया था.

पुअर डैड ने बिज़नेस के दौरान अपने स्टाफ़ को काम से निकाल दियाथाताकि वो कॉस्ट को कम कर सके और सारा काम ख़ुद करने लगे. इसके बाद उनका अपने बिज़नेस पार्टनर्स से झगड़ा हुआ. उन्होंने एक लॉयर की मदद से फ्रेंचाइज़र पर केस कर दिया.

पुअर डैड ने अपना सारा पैसा अपनी गलतियों का दोष दूसरों पर लगाने में ख़र्च कर दिया. फेलियर एक्सेप्ट कर एक नई शुरुआत करने के बजाय वो हालात बद से बदतर करते चले गए.

एक बिज़नेस खड़ा करने के प्रोसेस में, फेलियर वो सच है  जिसे टाला नहीं जा सकता. इसलिए जितनी जल्दी आप अपनी गलतियों से सीखेंगे उतना ही आपके लिए अच्छा होगा. यहाँ एक कॉमन प्रोसेस बताया गया है जिससे हर एक बिज़नेसमैन को गुज़रना पड़ता है.

पहला, अपने बिज़नेस की शुरुआत करें. दूसरा, फेल होने पर अपनी गलतियों से सीखें. तीसरा, एक गाइड या गुरु की तलाश करें. चौथा, अगर फ़िर फेल हुए तो हताश होने की जगह फ़िर उससे सीखें. पांचवा, अपने बिज़नेस के बारे में और जानने की कोशिश करें या ट्रेनिंग लें. छठा, अगर फेल हुए तो फ़िर उससे सीखें. सांतवा, अगर आपने सक्सेस हासिल कर ली तो आप थोड़ा रिलैक्स कर सकते हैं. आठवाँ, आप अपनी सक्सेस का जश्न मना सकते हैं. नौवां, अपने बिज़नेस से होने वाली इनकम पर ध्यान दें और अपनी हार और जीत का हिसाब रखें. दसवां, फ़िर से शुरू कर पहले स्टेप पर जाएं.

लेकिन सच्चाई तो ये है कि बिजनेसमैन बनने की इच्छा रखने वाले 90% लोग पहले स्टेप तक भी नहीं पहुँच पाते.उनके माइंड में एक परफेक्ट बिज़नेस प्लान तो होता है लेकिन उसे हकीकत में बदलने के लिए वो कोई एक्शन ही नहीं लेते. इसे Analysis Paralysis कहा जाता है.

यहाँ ये सबक सीखने को मिलता है कि जब तक आप कोशिश नहीं करेंगे तब तक आप जान ही नहीं पाएँगे. जब आप बिज़नेस शुरू ही नहीं करेंगे आपको कैसे पता चलेगा कि किस चीज़ की कमी है या किस चीज़ को बेहतर बनाने की ज़रुरत है? जब तक आपके पास सीखने के लिए कोई बिज़नेस नहीं होगा, आप बिजनेसमैन नहीं बन सकते.

फेल होना बुरा नहीं है लेकिन अपनी गलती ना मानना या उससे कुछ ना सीखना बहुत बुरा है.हम इंसान हैंऔर कभी-कभी गड़बड़ हो जाती है. मायने ये रखता है कि आप गलती को पहचान कर उससे सीखें और दोबारा खड़े होने का ज़ज्बा दिखाएं. अगर आप ऐसा नहीं कर सकते तो आप हमेशा के लिए एक एम्प्लोई बन कर रह जाएँगे. फ़िर आप कभी नहीं जान पाएँगे कि अपना बिज़नेस चलाना कैसा लगता है.

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