(hindi) Loonshots: How to Nurture the Crazy Ideas That Win Wars, Cure Diseases, and Transform Industries

(hindi) Loonshots: How to Nurture the Crazy Ideas That Win Wars, Cure Diseases, and Transform Industries

इंट्रोडक्शन(Introduction)

लूनशोट्स बड़ा ही अलग सा शब्द है ना लेकिन क्या है ये लूनशोट्स ? लूनशोट्स का मतलब होता है एक ऐसा आईडिया जिसके बारे में ना पहले कभी सुना, ना देखा, ये  क्रेज़ी आइडियाज के बारे में है. लूनशोट्स नए प्रोडक्ट्स और स्ट्रेटेजीज होते हैं जो किसी भी इंडस्ट्री या आर्गेनाइजेशन में रेवोल्यूशन लाने की पॉवर रखते हैं.

इन्हें आर्टिस्ट्स, साइंटिस्ट्स या engineers क्रिएट करते हैं लेकिन अक्सर इन्हें financers और मैनेजमेंट में डिसिशन लेने वाले बॉस रिजेक्ट कर देते हैं. इसकी कमाल की पोटेंशियल को देखे बिना ही कई लूनशोट्स को dustbin में डाल दिया जाता है. अगर उन क्रेज़ी आइडियाज को आज़माया जाता तो हो सकता था कि उनका ज़बरदस्त इम्पैक्ट होता.

इस बुक में आप ऐसे कई लूनशोट्स के बारे में जानेंगे जिन्हें रिजेक्ट कर दिया गया था और कुछ ऐसे भी थे जो आगे चलकर बहुत सक्सेसफुल हुए.आप उन लूनशोट्स के बारे में जानेंगे जिन्होंने ड्रग और मूवी इंडस्ट्री में एक रेवोल्यूशन लाकर उनका नक्शा ही बदल दिया था. आप ये भी जानेंगे की यूरोप में साइंटिफिक रेवोल्यूशन क्यों हुआ था.

ये बुक आपको सिखाएगी कि अपनी लूनशोट नर्सरी कैसे बनाएं और अपने ग्रुप में एक कमाल के इनोवेटिव आईडिया को कैसे ग्रो करने दें. इसके लिए तीन बातों का ध्यान रखने की ज़रुरत है. अगर आप उन्हें अप्लाई करते हैं तो ये हट के आइडियाज आपके ग्रेटेस्ट अचीवमेंट्स बन सकते हैं.

द लूनशोट ऑफ़ नोकिया (The Loonshot of Nokia)

नोकिया कॉरपोरेशन फ़िनलैंड की एक टेलीकम्यूनिकेशन कंपनी है. 1970 के समय में उन्होंने टॉयलेट पेपर और रबर के जूते बेचने से अपने बिज़नेस की शुरुआत की थी. 1990 के आस पास वो टेलीकम्यूनिकेशन के बिज़नेस में आ गए.

नोकिया पहला cellular नेटवर्क, पहलाऑल नेट एनालॉग फ़ोन और पहला सक्सेसफुल GSM फ़ोन introduce करने वाली कंपनी बना.2000 के दशक की शुरुआत में, दुनिया भर में बिकने वाले आधे से ज़्यादा फ़ोन नोकिया के थे.

नोकिया सक्सेस का दूसरा नाम बन गया था. लेकिन क्या आप जानते हैं कि 2004 में नोकिया के engineers ने एक नए तरह का फ़ोन डेवलप किया था? वो उसे लेकर बहुत excited थे. उस फ़ोन में कमाल के features थे जैसे बड़े स्क्रीन वाले coloured टचस्क्रीन, हाई रेसोल्यूशन कैमरा. ये इन्टरनेट के लिए बिलकुल तैयार था. Engineers ने इसके साथ साथ एक ऑनलाइन ऐप स्टोर भी बनाया था.

नोकिया स्मार्टफ़ोन के रेवोल्यूशन की शुरुआत कर सकता था लेकिन वहाँ की लीडरशिप टीम जिन्होंने नोकिया को इतनी शानदार सफ़लता दिलाई थी, उन्होंने इस आईडिया को रिजेक्ट कर दिया और इस आउट ऑफ़ द बॉक्सकमाल के प्रोजेक्ट पर ताला लगा दिया था.

इसके तीन साल बाद स्टीव जॉब्स ने सेन फ्रांसिस्को में Iphone लॉन्च लिया. नोकिया के इंजिनियर विश्वास नहीं कर पा रहे थे कि उनके साथ ये क्या हुआ. इनोवेशन की रेस को वो बड़ी आसानी से जीत सकते थे अगर उनके आईडिया को बेकार ना कह कर डेवलप करने दिया जाता तो.

2012 तक नोकिया का मार्केट ख़राब होने लगा था. कंपनी ने 2013 में अपना मोबाइल बिज़नेस बेच दिया. उनके पीक से लेकर उनकी कंपनी बेचने तक उनकी वैल्यू 25 बिलियन डॉलर कम हो गई थी.ये ताकत होती है एक लूनशोट आईडिया की, ये किसी को भी मार्केट का किंग बनाकर दूसरों को मार्केट से आउट कर सकता है.

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थ्री कंडीशन ऑफ़ आ लून्शोट नर्सरी (Three Conditions Of A Loonshot Nursery)

अब सवाल ये उठता है कि नोकिया ने जो गलती की आप उसे दोहराने से कैसे बच सकते हैं? आप एक क्रेज़ी से दिखने वाले आईडिया को कैसे encourage कर उसे अमज़िंग प्रोजेक्ट बनने का मौका दे सकते हैं? आप अपनी टीम में लूनशोट नर्सरी की शुरुआत कैसे कर सकते हैं? इसके लिए आपको तीन बातों का ध्यान रखना होगा.

सबसे पहले,“सेपरेशन फेज़” होना चाहिए. इसमें आपको क्रिएटिव और इनोवेटिव लोगों के ग्रुप को डिसिशन लेने वाले ग्रुप से अलग करना होगा. फ़िर आपको इन दोनों पर equally ध्यान देने की ज़रुरत है.

दूसरा है, “डायनामिक equilibrium”. इसमें एक dynamic बैलेंस होना चाहिए यानी दोनों ग्रुप्स खुलकर एक दूसरे के सामने अपने आइडियाज रख सकें.

तीसरा है,“क्रिटिकल mass” यानी लूनशोट का ग्रुप इतना बड़ा होना चाहिए कि दूसरा ग्रुप उनके आईडिया को एकदम रिजेक्ट ना कर पाए.इसमें ज़्यादा फंडिंग और ज़्यादा सक्सेसफुल प्रोजेक्ट्स का एक chain रिएक्शन होना चाहिए.इसे बेहतर तरीके से समझने के लिए आइए मूवी और ड्रग इंडस्ट्री की बात करते हैं.

मूवीज(Movies)

1900 की शुरुआत में न्यू जर्सी के लड़कों के एक ग्रुप ने अमेरिका में फ़िल्म इंडस्ट्री की शुरुआत की. ये लोग यूरोप से आए थे और सभी यंग थे. वो स्क्रैप-मेटल कलेक्टर, पेडलर और ट्रेडर्स के रूप में काम करते थे. इनमें से कुछ के सरनेम थे Goldwyn, Mayer, Warner और Fox.

इन लड़कों को थॉमस एडिसन के लेटेस्ट इन्वेंशन में बड़ी दिलचस्पी थी. वो एक मोशन पिक्चर का डिवाइस था जिसे kinetoscope कहा जाता है.इस डिवाइस के अंदर एक छेद था जिसके माध्यम से शोर्ट फ़िल्म देखी जा सकती थी. ये एक फ़िल्म प्रोजेक्टर का सबसे पहला version था.

इन लोगों ने kinetoscope खरीदा, एडिसन के शोर्ट फ़िल्म को रेंट पर लिया. अब वो लोगों से फ़िल्म देखने के बदले में एक पैसा चार्ज करने लगे.फ़िल्म का कांसेप्ट उस वक़्त नया नया था, लोगों में इसका क्रेज़ बढ़ने लगा और इनके कई कस्टमर्स बन गए. इन शोर्ट फ़िल्मों को दिखाकर उन्होंने बहुत पैसा कमाया. ये लोग अलग-अलग जगह जाकर लोगों को फ़िल्में दिखाने लगे. अंत में उन्होंने ख़ुद अपनी फ़िल्में बनाने का फैसला किया.

इसके लिए उन्होंने थिएटर बनाए, एक्टर्स, डायरेक्टर और writers को काम पर रखा. लेकिन उन्होंने kinetoscope का एक पायरेटेड कॉपी बनाया था जोकि एक पेटेंट इन्वेंशन था. थॉमस एडिसन ने इसे रोकने की कोशिश की.उन्होंने उन लड़कों को सज़ा देने के लिए कुछ गुंडों को पैसे देकर उनके equipment और फ़िल्म दिखाने वाली जगह को तहस नहस करने के लिए कहा.

इसलिए ये लड़के न्यू जर्सी छोड़कर भाग गए और मेक्सिकन बॉर्डर के पास बस गए. पुलिस का ख़तरा होने पर वो आसानी से मेक्सिको भाग सकते थे. अब इन लड़कों ने अपना ख़ुद का शहर बनाया और उसका नाम Hollywood रखा. तीस साल बाद, उन लड़कों ने एक छोटे से स्टूडियो को एक बड़ी कंपनी में बदल दिया था. आज उन कम्पनीज को हम MGM, Warner Brothers, Paramount, Universal और Columbia pictures के नाम से जानते हैं. ये स्टूडियो फ़िल्म के प्रोडक्शन से लेकर उनके थिएटर तक रिलीज़ होने तक सारे काम को कंट्रोल करते थे.ये कुछ कम्पनीज पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री को dominate करने लगीं.

पुलिस डिपार्टमेंट का ध्यान अब इन कम्पनीज पर जाने लगा कि कैसे कुछ स्टूडियोज पूरी फ़िल्म इंडस्ट्री चला रहे थे. 1948 में, सुप्रीम कोर्ट ने United States vs Paramount Pictures केस में अपना फाइनल फैसला सुनाया. उन्होंने बड़ी बड़ी कंपनी को डिवाइड कर दिया. तब से कोई भी प्रोडक्शन स्टूडियो अपना ख़ुद का थिएटर नहीं चला सकता था.

तब से फ़िल्म इंडस्ट्री दो मार्केट में बंट गई. पहला मार्केट था Majors का जिनमें बड़े स्टूडियो जैसे Warner Bros, Universal और Disney शामिल थे.ये कंपनी फ्रैंचाइज़ी को मैनेज करते हैं. वो ज़्यादा से ज़्यादा कस्टमर्स को फ़िल्म डिस्ट्रीब्यूट करने के लिए एक दूसरे से मुक़ाबला करते थे. ये स्टूडियोज एक्सपर्ट्स होते हैं और उनके ज़बरदस्त contact की वजह से उन्हें आसानी से लोन मिल जाता है, वो साउथ कोरिया में फ़िल्म रिलीज़ कर सकते हैं, Walmart में फ़िल्मों को प्रमोट करने के लिए सामान बेच सकते हैं.

Majors हर तीन महीने में म्यूच्यूअल फंड्स के साथ मीटिंग करते हैं, जो इन्वेस्टर भी हैं और एनालिस्ट भी.वो ग्लोबल मार्किट ट्रेंड के बारे में बात करते हैं. वो फ़िल्में नहीं बनाते, सिर्फ़ उन्हें डिस्ट्रीब्यूट करते हैं.

दूसरा मार्केट है, छोटे छोटे फ़िल्म स्टूडियो का. ये हज़ारों इंडिपेंडेंट प्रोडक्शन कंपनी हैं जो एक फ़िल्म को शुरू से लेकर अंत तक डेवलप करते हैं. ये छोटे-छोटे स्टूडियो अच्छे स्क्रिप्ट, टैलेंटेड एक्टर्स और फंडिंग के लिए एक दूसरे से मुकाबला करते हैं. बड़े बड़े म्यूच्यूअल फंड्स कभी इनमें इन्वेस्ट नहीं करते. फ़िल्म की बजट के लिए पैसे अमीर लोगों से मिलते है जो नए और अलग स्क्रिप्ट में पैसा लगाने के लिए तैयार होते हैं.

ऐसी ही एक स्क्रिप्ट थी उस लड़के के बारे में जो मुंबई की झोपड़ पट्टी में पला बढ़ा था और जिसने एक गेम शो में 20 मिलियन रूपए जीत लिए थे. वो फ़िल्म थी Slumdog Millionaire जिसने 2009 में आठ ऑस्कर जीते थे.

अमेरिकन फ़िल्म इंडस्ट्री इसलिए सर्वाइव कर पाई क्योंकि उसने लूनशोट नर्सरी के तीनों कंडीशन को पूरा किया था. पहला, उन्होंने मार्केट को बड़ी कंपनी और छोटे स्टूडियो में डिवाइड कर दिया था.दूसरा, दोनों मार्किट के बीच पार्टनरशिप का अच्छा नेटवर्क बन गया था और तीसरा, ज़्यादा फंड्स और ज़्यादा सक्सेसफुल प्रोजेक्ट्स का साइकिल बन गया था.बिना बड़ी कंपनी की backing के फ़िल्मों के फ़्लोप हो जाने पर छोटे स्टूडियो का दिवाला निकल जाएगा. लेकिन बड़ी कंपनी हमेशा नए और फ्रेश आईडिया की तलाश में रहती हैं. छोटे स्टूडियो की क्रिएटिविटी के बिना बड़ी कंपनी ख़त्म हो जाएंगी.

इसका एक एग्ज़ाम्पल है, Imagine Entertainment और Universal Studios के बीच की पार्टनरशिप. ये डील 30 सालों तक चली और इस बीच उन्होंने 50 फ़िल्में बनाई. Imagine Entertainment स्क्रिप्ट ढूंढ कर फ़िल्में बनाता था और Universal Studios उन्हें डिस्ट्रीब्यूट करता था. उनकी इन प्रोजेक्ट्स में कई बेहतरीन फ़िल्में शामिल हैं जैसे “A Beautiful Mind” और “Apollo 13” जो ऑस्कर जीत चुके हैं.

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