(hindi) Ego Is The Enemy

(hindi) Ego Is The Enemy

इंट्रोडक्शन(Introduction)

आजकल हर किसी का ईगो बहुत बड़ा हो गया है. तो क्या है ये ईगो? कोई इसे अहंकार और घमंड कहता है तो कोई इसे “मैं” की भावना होना कहता है.क्या आपको भी लगता है कि ईगो आपके और आपके गोल्स के बीच में आ रहा है? क्या आप फेल होने के बाद हार मान लेते हैं? क्या आपकी लाइफ कंट्रोल से बाहर हो रही है? अगर हाँ तो आपने बिलकुल सही बुक को चुना है. ये बुक आपके ईगो को कंट्रोल करने के लिए आपको गाइड करेगी क्योंकि ईगो आपका सबसे बड़ा दुश्मन है. आप ऐसे टेक्निक्स के बारे में सीखेंगे जिन्हें प्रैक्टिस कर आप अपने ईगो को कंट्रोल में रख सकते हैं.

आप सक्सेसफुल होने के लिए हम्बल यानी विनम्र होने के इम्पोर्टेंस के बारे में भी जानेंगे. इस बुक में ऐसी कई आदतों के बारे में बताया गया है जिन्हें आप अपनी लाइफ स्टाइल में शामिल कर अपने ईगो को ठीक कर सकते हैं.

और हाँ,आप अकेले नहीं हैं जो इसका सामना कर रहे हैं. ईगो एक नेचुरल इमोशन है जो हम सब महसूस करते हैं. लेकिन इसे कंट्रोल करना भी ज़रूरी है क्योंकि इसमें आपको बर्बाद करने की ताकत है. आपकी सक्सेस आपके हाथों में है इसलिए इसे अपने ईगो के कारण ख़ुद से दूर ना जाने दें.

टॉक, टॉक, टॉक (Talk, Talk, Talk)

किसी भी नई जर्नी की शुरुआत के वक़्त हम सभी excited लेकिन कुछ डरे हुए होते हैं.ख़ुद को शांत करने के लिए हम अक्सर अपने अंदर देखने की बजाय बाहर वो कम्फर्ट और आराम ढूँढने लगते हैं.हम सभी अटेंशन पाना चाहते हैं. लेकिन कुछ करने की बजाय सिर्फ़ बातें करना बड़ा आसान होता है.हम अक्सर ख़ामोशी को कमज़ोरी मान लेते हैं इसलिए अपनी ताकत दिखाने के लिए बात करते हैं.

लेकिन हम इस बात से अनजान हैं कि चुप रहना यानी साइलेंस एक ऐसी महान क्वालिटी है जिसमें आज तक बहुत कम लोग महारत हासिल कर पाएं हैं.बेकार की बातें कर के हम उससे जुड़े एक्शन को कमज़ोर कर देते हैं.साइलेंस हमारे सेल्फ़-कांफिडेंस और ताकत को दिखाता है. ज़्यादा बात करना हमारे काम की क्वालिटी को ख़राब कर देता है और हमारा ध्यान भटका देता है.ये एक साइकोलॉजिकल फैक्ट है कि बात करने से किसी भी काम को कम्पलीट करने का चांस कम हो जाता है.ये हमें फील कराता है कि जैसे हमने उसे पहले ही कम्पलीट कर लिया है.

इसलिए आपको हमेशा अपनी जीभ पर क़ाबू रखने की कोशिश करनी चाहिए ताकि आप बातों के जाल में ना फंस कर सक्सेस हासिल कर सकें. चुप रहने की क्वालिटी आपका बेस्ट परफॉरमेंस बाहर निकालने में मदद करती है. इसलिए आपको चुपचाप काम करना चाहिए और बेफ़िजूल की बात करने की इच्छा से दूर रहना चाहिए. आइए एक कहानी से इसे समझते हैं.

ये कहानी एक्टिविस्ट अप्टन सिंक्लेयर(Upton Sinclair) के बारे में है जो 1934 में कैलिफ़ोर्निया के गवर्नर के पोस्ट के लिए इलेक्शन में खड़े हुए थे. कैंपेन के दौरान अप्टन ने बड़ा ही अजीब सा कदम उठाया जिसने सभी को चौंका दिया था.उन्होंने एक शोर्ट बुक पब्लिश की जिसका नाम था “I, Governor of California, and How I Ended Poverty.” इस बुक में सब कुछ past tense में लिखा हुआ था यानी ऐसे लिखा हुआ था जैसे वो सब कुछ हो चुका हो और उसमें अप्टन ने गवर्नर के रूप में क्या क्या ख़ास काम किया था उस बारे में बताया गया था.

वो जानते थे कि जिस तरह वो पब्लिक के साथ बातचीत कर सकते थे उस तरह कोई दूसरा नहीं कर सकता था.लेकिन उन्हें ज़रा भी अंदाज़ा नहीं था कि उनका ये आईडिया उन्हें बर्बाद कर देगा. अप्टन ने बुक में अपनी सभी स्ट्रेटेजीज के बारे में लिखा था जिससे उनके competitors को फ़ायदा हुआ. इसके अलावा, अप्टन ने ख़ुद अब कैंपेन में रूचि खो दी थी क्योंकि उन्हें लगने लगा था कि जो भी उन्होंने लिखा है वो सब उन्होंने हासिल कर लिया है.

इस बुक की लाखों कॉपी बिकी, लेकिन अप्टन का कैंपेन बहुत बड़ा फेलियर साबित हुआ. वो 2,50,000 वोट से इलेक्शन हार गए और इस प्रोसेस में उन्होंने दिलचस्पी खो दी थी. अप्टन के साथ जो हुआ वो उनके कम्युनिकेशन के कारण था.

उनके बुक ने उन्हें ये महसूस कराया कि उन्होंने सब कुछ हासिल कर लिया था जबकि वो तो अब तक गवर्नर बने भी नहीं थे और उन्होंने अब तक कुछ भी नहीं किया था. वो अपने शब्दों को एक्शन में नहीं बदल पाए. वो बातों के जाल में फंस गए और इस कारण उनका सारा काम चौपट हो गया. इस कहानी ने दुनिया को ये सिखाया कि कोई भी काम पूरा करने के लिए अपनी ज़बान पर लगाम रखना कितना ज़रूरी है.

अगर आप अपने काम में सक्सेसफुल होना चाहते हैं तो आपको बातें बनाना बंद कर बिलकुल साइलेंस में अपना काम करना चाहिए.बात करने से आपके माइंड को ये विश्वास हो जाता है कि आपने सब कुछ अचीव कर लिया है और वो आपको रियलिटी में काम करने से रोक देता है.

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टू बी और टू डू ? (To Be or To Do?)

लाइफ में चाहे कुछ भी हो जाए, आप जैसे हैं बिलकुल वैसे ही बने रहे, रियल और दिखावे से दूर, तब आप लाइफ में कुछ ख़ास ज़रूर करेंगे.अगर आप बिना ईगो के अपने रास्ते पर आगे बढ़ेंगे और ख़ुद के प्रति सच्चे रहेंगे तो आप क्या क्या अचीव कर सकते हैं इसकी कोई सीमा नहीं है. एक इंसान जब ख़ुद के साथ ऑनेस्ट होता है तब वो दूसरों के साथ भी कभी फ़ेक नहीं होता.

जब आप कुछ करने का फ़ैसला करते हैं तो उसे फेमस होने के लिए या अपनी पहचान बनाने के लिए ना करें. जो भी चीज़ आप दिल से करना चाहते हैं उसके बदले में बिना कुछ चाहे आप अपने और दूसरों के साथ सच्चे बने रह सकते हैं. कुछ ऐसा करें जिससे आप दूसरों की लाइफ में कुछ वैल्यू add कर सकें. आइए एक एजाम्प्ल से इसे समझते हैं.

मॉडर्न वॉर में influential लोगों में से एक जॉन बॉयड थे. वो एक महान फाइटर पायलट थे और 40 सेकंड से भी कम समय में किसी को भी हरा सकते थे.इन सब के बावजूद उन्हें कभी कर्नल के रैंक से ऊपर प्रमोट नहीं किया गया था.

जॉन को Nellis Air Force Base, कोरिया में लीड इंस्ट्रक्टर के रूप में चुना गया. F-15 और F-16 उनके pet प्रोजेक्ट्स थे. उनका सबसे बड़ा मकसद था अपने देश के लिए एक एडवाइजर की भूमिका अदा करना और वो अपने देश की हर संभव सेवा करना चाहते थे. जॉन प्राइवेट मीटिंग में डिफेंस सेक्रेटरी को काफ़ी सलाह देते थे लेकिन इसके लिए उन्होंने कभी क्रेडिट नहीं लिया.

उन्होंने अपने अचीवमेंट की कोई बुक पब्लिश नहीं की और ना ही किसी मिलिट्री बेस का नाम उनके नाम पर रखा गया. वो बिना किसी अटेंशन और लोगों की तारीफ़ के अपना काम इमानदारी से करना चाहते थे. उनका मानना था कि चाहे उन्हें हाई रैंक मिले या ना मिले, उनके काम से उनके देश को फ़ायदा होना चाहिए बस.

प्रमोशन मिलने का हमेशा ये मतलब नहीं होता कि आप अपने काम में अच्छे हैं. लाइफ में आपका पर्पस आपसे ऊपर और बड़ा होना चाहिए और वो तब होता होता है जब आप सिर्फ़ अपने बारे में नहीं बल्कि सबकी भलाई के लिए सोचते हैं.जब आप सेल्फ़लेस होकर दूसरों की लाइफ में सुधार करना चाहते हैं तब आपको एक्स्ट्राऑर्डिनरी सक्सेस मिलती है.

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बिकेम अ स्टूडेंट  (Become a Student)

एक स्टूडेंट का main काम क्या होता है, सीखना. तो लाइफ में हमेशा एक स्टूडेंट बनकर सीखते रहने की सोच अपनाएं. ख़ुद को इम्प्रूव करने के लिए हमेशा नई चीज़ें सीखते रहे. आपको हमेशा उन चीज़ों को सीखने की कोशिश करनी चाहिए जिनके बारे में आप कुछ नहीं जानते ताकि आपकी नॉलेज लाइफ के हर एरिया में बढ़ सके.

अक्सर जब हमें सक्सेस मिलती है तब हम निश्चिंत हो जाते हैं कि भई मुझे तो सब कुछ पता है और मुझे कुछ सीखने की ज़रुरत नहीं है. लेकिन ये सोच जल्दी ही आपको नीचे भी ले आती है. आपको अपने टीचर्स से फीडबैक लेना चाहिए और ये complain तो बिलकुल नहीं करना चाहिए कि टीचिंग प्रोसेस कितना स्ट्रिक्ट है. ये आपके ईगो को दूसरों के हाथों में दे देता है, ये होती है एक स्टूडेंट की पॉवर.

रियल फीडबैक पाने के लिए आपको किसी ऐसे इंसान से सीखने की ज़रुरत जो आपसे ज़्यादा जानते हैं. इस बात को एक्सेप्ट करें कि कई लोग ऐसे हैं जो आपसे बहुत ज़्यादा जानते हैं और आप उनके नॉलेज से बहुत कुछ सीख सकते हैं. जिस दिन आपने सोच लिया कि आपको सब कुछ आता है, उस दिन से आपकी ग्रोथ होना बंद हो जाएगी. इसलिए महान बनने के लिए और महान बने रहने के लिए हमेशा एक स्टूडेंट की तरह सीखते रहे. एक हद तक ख़ुद को criticise करना और सेल्फ़-मोटीवेट करना भी हमारे ईगो को चेक में रखता है. आइए एक कहानी से इसे समझते हैं.

कर्कहैमेट नाम का एक गिटारिस्ट था जो एक कमाल का स्टूडेंट था. वो मुश्किल से 20 साल का होगा जब उसे Metallica बैंड के लिए एक गिटारिस्ट के रूप में चुना गया. कुछ दिनों बाद उसने पहले बड़े शो में परफॉर्म किया. कर्क बहुत डाउन टू अर्थ और हम्बल इंसान था. वो सालों से गिटार बजा रहा था इसके बावजूद उसे लगता था कि अब भी बहुत कुछ सीखना बाकि था इसलिए उसने एक टीचर को तलाशना शुरू किया.

सेन फ्रांसिस्को में अपने होमटाउन में उसे एक महान टीचर मिले जिनका नाम जो सट्रियानी (Joe Satriani) था. जो के म्यूजिक का स्टाइल कर्क के स्टाइल से बिलकुल अलग था. जो को अपने टीचर के रूप में चुनने का मकसद ये था कि कर्क कुछ ऐसा सीखना चाहता था जिसके बारे में वो कुछ नहीं जानता था. जो कर्क की कमज़ोरी समझ गए और उसे इम्प्रूव करने में उन्होंने बहुत मदद की.

कर्क एक स्पंज की तरह था और उसके टीचर जो कुछ उसे सिखाते वो उसे तुरंत catch कर लेता. कर्क बाकि स्टूडेंट्स से काफ़ी अलग था क्योंकि वो सारे instrcutions ध्यान से सुनता और हमेशा सीखने की कोशिश करता. दो साल तक, कर्क ने जो के हर फीडबैक को पॉजिटिव तरीके से लिया और ख़ुद को इम्प्रूव करता रहा.जिसका रिजल्ट ये हुआ कि लोग उसे एक ग्रेट गिटारिस्ट के रूप में जानने लगे थे.

तो कर्क ने ये कैसे किया? उसने अपने ईगो को साइड में रखा और इस बात को एक्सेप्ट किया कि कोई उससे better म्यूजिशियन है. इसे एक्सेप्ट करने के बाद, उसे जो के नॉलेज से बहुत कुछ सीखने को मिला जिसने अंत में कर्क को अपने स्किल में मास्टरी हासिल करने में मदद की.

अगर कर्क एक स्टूडेंट की तरह सीखता नहीं तो कभी इम्प्रूव नहीं करता. वो फेमस गिटारिस्ट एक स्टूडेंट बन गया ताकि वो फेमस से ग्रेट बन सके और ग्रेट बने रह सके. अगर उसने फेमस होने के बाद ये मान लिया होता कि उससे ज़्यादा कोई नहीं जानता या उसे और सीखने की ज़रुरत नहीं है तो वो कभी ग्रेट नहीं बनता. ये कहानी हमे सिखाती है कि हमें हमेशा सीखते रहना चाहिए और इस बात को एक्सेप्ट करना चाहिए कि कई लोग हैं जो  हमसे भी ज़्यादा जानते हैं.इसलिए कहा गया है कि जब परफॉर्म करो तो एक गुरु की तरह परफॉर्म करो लेकिन बड़े होने के बाद भी जब सीखो तो एक शिष्य की तरह सीखो.

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