(hindi) Unlimited Power

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इंट्रोडक्शन(Introduction)

अगर कोई आपसे आग पर चलने के लिए कहे तो क्या आप सच में ऐसा करेंगे? टोनी रॉबिंस के सेमिनार में कई एक्टिविटीज में से एक एक्टिविटी है फायर वॉक. चार दिनों के इस सेमीनार का नाम “Mind Revolution” है. इस एक्टिविटी का मकसद है अपने डर को पॉवर में बदलना.सेमीनार में हिस्सा लेने वाले लोग 10 फीट लंबे जलते हुए कोयलों पर नंगे पैर चलते हैं.टोनी का मानना है कि डर सिर्फ़ हमारे मन में होता है.

इसलिए टोनी अपने सेमीनार में डर पर काबू पाना, एक्शन लेना और मन में ये विश्वास जगाना सिखाते हैं कि कुछ भी करना नामुमकिन नहीं है. उनका मूल मंत्र यही है – “Nothing is Impossible”. अगर आप जलते हुए कोयलों पर चल सकते हैं तो बेशक आप जिंदगी के रास्ते में आने वाली किसी भी प्रॉब्लम का सामना कर उसे हरा भी सकते हैं.

टोनी ख़ुद भी एक दुखी और unproductive इंसान हुआ करते थे. वो अकेले रहते थे. ना उनके पास मनपसंद जॉब थी और ना मीनिंगफुल रिश्ते. यहाँ तक कि उनका वज़न भी 30 pound ज़्यादा था.लेकिन सिर्फ़ तीन सालों में टोनी ने ख़ुद को पूरी तरह से बदल दिया. वो  बेचारे जैसी सिचुएशन से एक सक्सेसफुल और खुशहाल नौजवान बन गए थे.एक बेस्ट सेलिंग ऑथर बनने के साथ साथ वो सबसे चहेते मोटिवेशनल स्पीकर्स में से एक बन गए.

ख़ुद को बदलने के बाद टोनी ने कई लोगों की मदद की है चाहे वो पॉलिटिशियन हों, बिज़नेस एग्जीक्यूटिव हों, एथलिट हों या आम लोग हों जो किसी ना किसी फ़ोबिया या डिसेबिलिटी के शिकार थे. सिर्फ़ 25 साल की उम्र में ही टोनी ने बहुत सक्सेस, दौलत और शोहरत हासिल कर ली थी. आपको जान कर हैरानी होगी कि उनके पास कोई बड़ी डिग्री नहीं थी, उन्होंने सिर्फ़ हाई स्कूल तक अपनी पढ़ाई कम्पलीट की थी लेकिन इसके बावजूद उन्होंने उससे कई गुना ज़्यादा अचीव कर लिया था.पत्नी के रूप में उन्हें लाइफ ने एक बहुत अच्छा हमसफ़र दिया और वो अपने करियर में कई ऐसे लोगों से मिले जिन्होंने उन्हें बहुत इंस्पायर किया.

इस बुक में टोनी ने बताया है कि आखिर उन्होंने ये सब किया कैसे.तो आप उन प्रिंसिपल्स को सीखेंगे जो उन्होंने अपने लाइफ में अप्लाई किए. आप उन अनमोल लेसंस को सीखेंगे जो वो अपने हर सेमिनार में सिखाते हैं. आप कितना अचीव कर सकते हैं इसकी कोई लिमिट नहीं है और सच पूछो तो इसके लिए आपको कहीं और देखने की ज़रुरत नहीं है, इस अनलिमिटेड पॉवर का सोर्स पहले से ही आपके अंदर मौजूद है.

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द कमोडिटी ऑफ़ किंग्स (The Commodity of Kings)

टोनी ने कई सक्सेसफुल लोगों को बड़े गौर से देखा था. उन्होंने नोटिस किया कि उन सब में सक्सेस का एक पैटर्न कॉमन था. टोनी ने उसे “अल्टीमेट सक्सेस फ़ॉर्मूला” का नाम दिया. इसमें चार स्टेप्स होते हैं. पहला स्टेप है, अपना टारगेट सेट करना. इसका मकसद ये जानना होता है कि आप असल में क्या अचीव करना चाहते हैं.

दूसरा स्टेप है, एक्शन लेना यानी अपने गोल की तरफ़ कदम बढ़ाना.लेकिन कभी-कभी आप जो एक्शन लेते हैं वो गलत भी हो सकते हैं और आपको आपकी मंज़िल तक ले जाने के बजाय वो आपको रास्ते से भटका देते हैं. इसलिए आपको स्टेप नंबर 3 की ज़रुरत होती है जो है अपने एक्शन को मॉनिटर करना और उसका फीडबैक लेना. अंत में चौथा स्टेप आता है जो है अपने बिहेवियर यानी रवैये को बदलना जिसका मतलब है अपने एक्शन में तब तक बदलाव करते रहना जब तक आप अपना टारगेट हासिल नहीं कर लेते.आइए एक कहानी से इसे समझते हैं.

स्टीवन स्पीलबर्ग को कौन नहीं जानता. बेहतरीन एनीमेशन का इस्तेमाल कर वो हमें जुरासिक पार्क और डायनासोर की दुनिया में ले गए थे. 36 साल की उम्र में ही उन्हें अब तक का सबसे उम्दा डायरेक्टर कहा जाने लगा. हिस्ट्री की 10 बेस्ट ब्लाक बस्टर फिल्मों में से चार उन्होंने बनाई है. उनकी सबसे सक्सेसफुल फिल्मों में E.T., Jurassic Park, Indiana Jones aur Schindler’s List शामिल हैं.

तो स्पीलबर्ग ने इतने अद्भुत करियर की शुरुआत कैसे की? क्या वो शुरू से ही एक गिफ्टेड डायरेक्टर थे? क्या उनके पास कोई स्पेशल एडवांटेज था? नहीं, ऐसा नहीं है.उन्होंने तो बस अल्टीमेट सक्सेस फार्मूला को फॉलो किया था.

“मैं एक फ़िल्म डायरेक्टर बनना चाहता हूँ”, यही वो थॉट है जो स्पीलबर्ग के मन में लगातार चलता रहता था जब वो एक teenager थे. 17 साल की उम्र में वो पहली बार  Universal Studiosदेखने के लिए गए.वहाँ वो सब घूम ही रहे थे कि उन्हें साउंड स्टेज दिखाई दिया. लेकिन उनके ग्रुप को साउंड स्टेज तक जाने नहीं दिया गया क्योंकि वहाँ एक फिल्म की शूटिंग चल रही थी.तो आपको क्या लगता है, स्पीलबर्ग ने बात मान ली और चुपचाप वहाँ से चले गए? अजी नहीं, बल्कि यहाँ स्पीलबर्ग ने एक्शन लिया, वो चुपके से शूटिंग वाले लोकेशन तक पहुंचें और वहाँ बड़े गौर से सब देखने लगे. तभी उनकी मुलाक़ात फिल्म के एक एडिटर से हुई, उन्होंने उससे एक घंटे तक बात की. स्पीलबर्ग ने एडिटर को उन फ़िल्मों के बारे में बताया जो वो बनाना चाहते थे.

ज़्यादातर लोगों के लिए ये कहानी वहीँ ख़त्म हो गई होती लेकिन स्पीलबर्ग के लिए नहीं. उनमें अपने थॉट को एक्शन में बदलने की पॉवर थी.अब उन्होंने एक प्लान बनाया, वो अगले दिन वापस स्टूडियो गए. लेकिन इस बार उन्होंने कुछ अलग किया.वो वहाँ सूट पहन कर पहुंचें. इतना ही नहीं वो अपने पिता की ब्रीफकेस भी साथ ले गए थे. वो बड़े कॉन्फिडेंस के साथ सिक्यूरिटी गार्ड के पास से निकले मानो वो सच में स्टूडियो के लिए काम करते हों. बेचारे उस गार्ड को क्या पता था कि स्पीलबर्ग की ब्रीफकेस में ज़रूरी पेपर्स नहीं बल्कि एक सैंडविच और दो कैंडी के अलावा कुछ नहीं था.

स्टूडियो के अंदर उन्हें एक खाली ट्रेलर मिला. वो वहाँ बैठ गए और अपने सामने एक बोर्ड लगा दिया जिस पर लिखा था “Steven Spielberg, Director”. स्पीलबर्ग ने गर्मियों का मौसम ऐसे ही बिताया. वो स्टूडियो जाते और राइटर, एडिटर, डायरेक्टर से बातें करते, उनकी बातें बड़े ध्यान से सुनते और बड़े गौर से देखते कि वो क्या करते हैं, कैसे करते हैं.वहाँ उन्होंने अपने आस पास के लोगों से बहुत कुछ सीखा.

स्पीलबर्ग तीन सालों तक रोज़ स्टूडियो जाते रहे जिसके बाद उन्हें अपना पहला कॉन्ट्रैक्ट मिला. स्पीलबर्ग ने एक सिंपल सी फ़िल्म बनाई जिसे उन्होंने Universal Studios के स्टाफ को दिखाया. वहाँ के लोगों ने उनके टैलेंट को तुरंत पहचान लिया और उन्हें 7 सालों का कॉन्ट्रैक्ट दे दिया. 20 साल की कम उम्र में स्पीलबर्ग अपने पहले टीवी शो के डायरेक्टर बने.

तो आपने देखा कि स्पीलबर्ग ने कैसे अल्टीमेटसक्सेस फार्मूला को फॉलो किया. उन्होंने पहले डायरेक्टर बनने का गोल सेट किया और उसके बाद एक्शन लेने लगे. वो स्टूडियो के चक्कर लगाने थे और उन्होंने वहाँ के स्टाफ से बहुत कुछ सीखा. जब तक आपमें अपने सपने को सच करने की धुन सवार नहीं होगी तब तक वो सपना ही बना रहेगा, सच नहीं होगा.

आप भी इस फार्मूला को अप्लाई कर सकते हैं. इससे कोई फर्क नहीं पड़ता कि आप कौन हैं और आपके पास क्या है. सिर्फ़ आगे बढ़ने के लिए कदम उठाना मायने रखता है.

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द डिफरेंस डेट मेक्स द डिफरेंस(The Difference that Makes the Difference)

ऐसा क्यों है कि कुछ लोगों के पास दुनिया की हर चीज़ होने के बावजूद वो ख़ुश नहीं हैं? ऐसे कई लोग हैं जिनके पास बहुत दौलत और शोहरत है, क़रीबी  दोस्तों का साथ है, सक्सेसफुल करियर है, परफेक्ट पार्टनर है लेकिन अंत में वो भी निराश और दुखी रहते हैं, क्यों?

तो वहीँ दूसरी ओर कई लोग ऐसे भी हैं जो फिजिकली डिसेबल्ड हैं, गरीबी की मार झेल रहे हैं, उन्हें सोसाइटी नीची नज़रों से देखता है लेकिन फ़िर भी वो हर चैलेंज से एक विनर बन कर उभरें हैं और एक खुशहाल जिंदगी जी रहे है. इस फ़र्क की वजह क्या है? आप इनमें से क्या बनना पसंद करेंगे?

तो इसका जवाब है है कि ये किसी सिचुएशन या चैलेंज के बारे में नहीं है बल्कि हम उसे किस नज़रिए से देखते हैं वो इस फ़र्क का कारण बनता है.अगर आपके साथ कोई बुरी घटना घट जाती है तो आप ख़ुद से क्या कहेंगे? क्या आप नेगेटिव पहलुओं के बारे में सोचते रहेंगे और कोई गलत कदम उठाएंगे या आप उस बुरी घटना में भी कोई पॉजिटिव चीज़ ढूंढ कर सिचुएशन को बेहतर करने की कोशिश करेंगे? आइए इस कहानी से इसे समझते हैं.

दो आदमी थे. पहले का नाम था जॉन बेलुशी जो 1970 के समय के जाने माने कॉमेडियन थे. अपने समय में उन्होंने कई यादगार शो और परफॉरमेंस दिए. उस समय उनकी गिनती बेस्ट entertainers में की जाती थी. 22 साल की उम्र में जॉन शिकागो के सबसे ज़्यादा पसंद किए जाने वाले कॉमेडी ग्रुप Second City में सबसे कम उम्र के मेंबर बने. समय के साथ जॉन उस शो के स्टार बन गए. उनका सफ़र थिएटर से शुरू हुआ और ये रास्ता उन्हें टीवी और फ़िल्मों की दुनिया तक ले गया.उनकी पॉपुलैरिटी धीरे धीरे बढ़ती जा रही थी. लोग उनके उम्दा परफॉरमेंस के कायल होने लगे.

बेलुशी की कई लोगों से दोस्ती हुई. उन्होंने न्यूयॉर्क में कुछ प्रोपर्टी खरीदी और उनकी एक बेहद खूबसूरत लड़की से शादी हुई.बेलुशी अपने सपनों को हकीकत में जी रहे थे. उनकी जिंदगी में किसी चीज़ की कोई कमी नहीं थी और लोग तो उनके दीवाने थे ही. लेकिन सब कुछ होते हुए भी वो अंदर से ख़ुश नहीं थे, वो अंदर ही अंदर घुट रहे थे. धीरे धीरे उन्हें ड्रग्स की लत लग गई. बाहर से देखने से लगता था कि उनके पास सब कुछ था लेकिन अंदर से वो बिलकुल अकेला और खोया हुआ महसूस थे. इस खालीपन को उन्होंने ड्रग्स से भरने की कोशिश की और इसी ड्रग्स के ओवरडोज़ ने 33 साल की उम्र में उनकी जान ले ली.

अब आइए हम उस दूसरे आदमी, डब्लू. मिशेल की कहानी पर एक नज़र डालते हैं. एक रात मिशेल 65 मील की स्पीड से हाईवे पर मोटरसाइकिल चला रहे थे. वहाँ बहुत अँधेरा था. अचानक किसी चीज़ की वजह से उनका ध्यान भटका और  मिशेल की नज़र सड़क के किनारे पड़ी. जब उन्होंने दोबारा सामने की ओर देखा तो उन्हें रियेक्ट करने तक का वक़्त नहीं मिला.

उनके ठीक सामने एक बड़ी सी ट्रक अचानक आकर रुकी लेकिन मिशेल तब भी 65 की स्पीड पर ही थे. उन्होंने ब्रेक्स को दबाकर मोटरसाइकिल रोकने की कोशिश की. वक़्त जैसे उनके लिए थम गया था, सब कुछ मानो स्लो मोशन में हो रहा था. मिशेल किसी भी तरह बाइक को रोकना चाहते थे.लेकिन जब तक ये हुआ तब तक वो ट्रक के नीचे आ गए थे.उनके मोटरसाइकिल का गैस कैप निकल गया था जिस वजह से सारा तेल बाहर निकलने लगा और वो आग की लपटों में घिर गए.इस भयानक हादसे के कारण मिशेल बेहोश हो गए थे.

जब उन्हें होश आया तो वो हॉस्पिटल में थे. उनकी पूरी बॉडी में इतना दर्द था कि वो हिल भी नहीं सकते थे. वो बुरी तरह झुलस गए थे, उन्हें थर्ड डिग्री बर्न हुआ था. यहाँ तक कि उनके चेहरे के शेप पर भी इसका बहुत बुरा असर हुआ था.लेकिन मिशेल ना निराश हुए और ना उन्होंने हिम्मत हारी. ठीक होने के बाद वो वापस अपने बिज़नेस में लग गए.लेकिन दुर्भाग्य से वो एक और हादसे का शिकार हुए. एक दिन, वो जिस प्लेन में सफ़र कर रहे थे वो क्रैश हो गया. इस बार मिशेल को कमर से नीचे वाले हिस्से में लकवा मार गया था जिसका मतलब था कि उन्हें जीवन भर व्हीलचेयर पर ही रहना पड़ेगा.

कोई भी इंसान इतने दर्दनाक हादसों के बाद टूट सकता था और मिशेल का भी अंत बेलुशी जैसा हो सकता था. वो पूरा दिन व्हील चेयर पर बैठे बैठे बीयर पीकर टीवी देख सकते थे और ख़ुद को दुनिया से अलग कर सकते थे लेकिन उन्होंने ऐसा कुछ नहीं किया. दुखी होने के बजाय मिशेल ने दोबारा जिंदगी जीने का जज़्बा दिखाया. उन्होंने अपने बिज़नेस को कंटिन्यू किया और मिलियनेयर बन गए. उनकी कई influential लोगों से मुलाक़ात हुई. उन्होंने कोलोराडो में एक ख़ुशहाल शादी और भरपूर जीवन जिया.

टोनी Neuro-Linguistic Programming या NLP के बारे में सिखाते हैं. सिंपल शब्दों में अगर कहें, तो इसका मतलब होताहै अपने माइंड को सही थॉट्स से भरने के लिए प्रोग्राम करना ताकि आप सही एक्शन या डिसिशन ले सकें. ये पॉजिटिव बिहेवियर बनाए रखने के लिए ख़ुद से कम्यूनिकेट करने के बारे में है.

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