(hindi) Learn to Earn

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इंट्रोडक्शन(Introduction)

हमें बचपन में स्कूल में बहुत कुछ सिखाया जाता है जैसे एकाउंट्स, इकोनॉमिक्स, साइंस यहाँ तक कि कुकिंग और drawing भी लेकिन वो हमें सबसे ज़रूरी चीज़ सिखाना तो भूल ही गए जो है इन्वेस्टमेंट.हम देशभक्ति की बात करते हैं, आर्मी की बात करते हैं लेकिन हम एक बात भूल जाते हैं कि एक देश को उसका बिज़नेस महान बनाता है. बिज़नेस की वजह से ही हमारी GDP बढ़ती है, इकॉनमी बढ़ती है जिसकी वजह से लोगों को जॉब मिलती है और फाइनली देश की ग्रोथ होती है.

लेकिन क्या हमने कभी सोचा है कि बिज़नेस कैसे ग्रो करते हैं? वो तब ग्रो करते हैं जब कोई उनमें पैसा इन्वेस्ट करता है. आज हम इसी बारे में सीखेंगे कि आख़िर इन्वेस्टमेंट होता क्या है, कंपनी कैसे ग्रो करती है, हम किन किन चीज़ों में पैसा इन्वेस्ट कर सकते हैं. तो हम उम्मीद करते हैं कि आप इस समरी को उतना ही एन्जॉय करेंगे जितना इसे बनाते वक़्त हमने एन्जॉय किया.

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अ शोर्ट हिस्ट्री ऑफ़ कैपिटलिज्म (A Short history of Capitalism)

तो सबसे पहले ये समझते हैं कि आख़िर कंपनी होती क्या है. जब कई लोग साथ मिलकर एक बिज़नेस करना चाहते हैं तो वो एक कंपनी बनाते हैं. कंपनी बनाना कोई मुश्किल काम नहीं है, बस आपको कुछ पेपर्स देने होंगे, फीस भरनी होगी और कंपनी बन जाती है.और अब तो ये और भी आसान हो गया है भारत सरकार ने केवल आधार कार्ड सबमिट करने पर ही कम्पनी फोर्मेशन की अनुमति दी है।कई लोग सोचते हैं कि कंपनी का मतलब एक बिल्डिंग या ऑफिस होता है. लेकिन कंपनी कुछ लीगल पेपर्स का फोल्डर है.

लॉ की नज़र में कंपनी एक अलग इंसान होता है जैसे कि आप और मैं, जिसे गवर्नमेंट सज़ा भी दे सकती है और उस पर फाइन भी लगा सकती है. इसका फ़ायदा ये है कि मान लीजिये आपने एक कंपनी खोली और आपने उस कंपनी में 1 लाख रूपए इन्वेस्ट किया. कल अगर उस कंपनी से कोई गलती हो जाती है तो केस कंपनी के ऊपर होगा आपके ऊपर नहीं. इसमें आपका ज़्यादा सा ज़्यादा 1 लाख का नुक्सान हो सकता है, वही 1 लाख जो आपने कंपनी में इन्वेस्ट किया था.गवर्नमेंट आपके पर्सनल asset जैसे घर, गाड़ी, गोल्ड नहीं ले सकती.

यही कंपनी बनाने का सबसे बड़ा फ़ायदा है कि आपकी लायबिलिटी लिमिटेड होती है यानी आप उतनी ही चीज़ों के लिए liable हैं जितनी आपने इन्वेस्टमेंट की है. इसलिए कंपनी के नाम के आगे Limited शब्द लगाया जाता है जैसे कि Reliance Industries Limited.

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टाइप्स ऑफ़ कम्पनीज (Types of companies)

कंपनी दो तरह की होती हैं – प्राइवेट कंपनी और पब्लिक कंपनी. प्राइवेट कंपनी उसे कहते हैं जिसमें आम पब्लिक पैसा इन्वेस्ट नहीं कर सकती. अगर आपको किसी प्राइवेट कंपनी में हिस्सा चाहिए तो एक ही रास्ता है, आपको ओनर से शादी करनी पड़ेगी.

पब्लिक कंपनी वो कंपनी होती है जिनके शेयर्स मार्केट में खरीदे और बेचे जाते हैं. इनके शेयर्स कोई भी खरीद सकता है – चाहे आप अमीर हो या गरीब, लंबे हो या छोटे, कोई भी.कोई आपको पब्लिक कंपनी में शेयर्स खरीदने से नहीं रोक सकता बस उन शेयर्स को खरीदने के लिए आपके पास पैसे होने चाहिए.

जब भी हम किसी कंपनी के शेयर्स खरीदते हैं तो लीगली हम कंपनी के मालिक बन जाते हैं. बेशक छोटे से ही सही लेकिन मालिक ज़रूर बनते हैं. हम अपनी पसंद की किसी भी कंपनी के शेयर्स खरीद सकते हैं. अगर हम Tata की बस या कार में जाते हैं तो हम Tata के शेयर्स में इन्वेस्ट कर सकते हैं. अगर हम Airtel या Jio यूज़ करते हैं तो उनके शेयर्स खरीद सकते हैं. इन शोर्ट, हम अपने favourite न्यूज़ चैनल से लेकर एक aeroplane की कंपनी के भी शेयर्स खरीद सकते हैं.

और ये एक शेयरहोल्डर के लिए गर्व की बात भी हो सकती है कि आप SBI बैंक में जाते हैं और लोग SBI की तारीफ़ कर रहे हों तो आपको गर्व महसूस होगा कि आपने SBI में इन्वेस्ट किया है और आप भी उनकी अच्छी परफॉरमेंस का एक हिस्सा हैं.

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द बेसिक्स ऑफ़ इन्वेस्टिंग (The Basics of Investing)

अक्सर देखा गया है कि ज़्यादातर लोग अपनी जिंदगी में काफ़ी लेट इन्वेस्टमेंट करने के बारे में सोचते हैं क्योंकि उनका ये कहना होता है कि अभी जॉब नहीं लगी या अभी मैं इस ज़िम्मेदारी को पूरा कर लूँ वगैरह वगैरह. लेकिन हम जितनी जल्दी इन्वेस्टमेंट करना शुरू करते हैं उतना ही ज़्यादा हमें फ़ायदा होता है.इन्वेस्टमेंट का पहला लेसन है कि हमें सेविंग्स करने की शुरुआत करनी होगी. आइए इसे एक एक्जाम्पल से समझते हैं.

एक लड़का है श्याम जिसकी नई नई जॉब लगी है और उसे लोगों को दिखाना है कि वो अमीर बन चुका है.अब वो सोचता है कि क्यों ना मैं एक अच्छी सी 20 लाख तक की गाड़ी ले लूँ. इसे खरीदने के लिए वो लोन लेता है. वो अपनी सारी सेविंग्स निकाल कर 2 लाख़ डाउनपेमेंट देता है और 18 लाख़ का लोन ले लेता है.उसने 5 साल का लोन 11.67% इंटरेस्ट रेट पर लिया था. अब हर महीने वो लगभग 40,0000 installment भरता है.

शुरू शुरू में श्याम जब भी अपनी नई गाड़ी कहीं पार्क करता तो लोग वाह वाह करते रह जाते लेकिन 5 सालों के बाद गाड़ी पुरानी सी लगने लगी. वो कहते हैं ना कि दुनिया में ऐसी कोई गाड़ी नहीं है और ऐसा कोई दिल नहीं है जिस पर कोई ख़रोंच ना लगी हो, तो श्याम की गाड़ी पर भी कई जगह ख़रोंच लग गई थी.अब ऐसी गाड़ी को देख कर कौन वाह वाह करता.

लेकिन इसे खरीदने के चक्कर में श्याम ने लोन लिया और लोन चुकाने के लिए उसे बैंक को 6 लाख़ एक्स्ट्रा देना पड़ा यानी कि एक गाड़ी पर 20 की जगह 26 लाख़ का ख़र्च हुआ और 5 साल के बाद जब उसने लोन चुका दिया तब उसके पास एक ऐसी गाड़ी थी जिसे वो अब पसंद भी नहीं करता था और जिसकी कीमत मार्केट में सिर्फ़ 8 लाख़ रह गई थी.

वहीँ दूसरी तरफ़ राम नाम के एक समझदार लड़के को भी बिलकुल सेम सैलरी पर जॉब मिली थी. राम ने भी गाड़ी ली लेकिन सेकंड हैंड और वो भी बिना लोन के. वो इस बात को समझता था कि गाड़ी उसके लिए बस एक ट्रांसपोर्ट का साधन है जो उसे एक जगह से दूसरी जगह तक ले जा सकती है.गाड़ी में कोई डेंट या स्क्रैच लगने से उसे कोई फ़र्क नहीं पड़ता था क्योंकि वो अपनी सैलरी का एक बड़ा हिस्सा सेव और इन्वेस्ट कर रहा था.

फ़िर एक ऐसा समय आया जब राम ने अपना ख़ुद का घर खरीदा. उसने ऊपर के दो फ्लोर को रेंट पर दे दिया और हर महीने पैसिव इनकम कमाने लगा. पैसिव इनकम यानी कोई भी एक्टिविटी जिसमें किसी इंसान को actively इन्वोल्व होकर कुछ नहीं करना पड़ता लेकिन फ़िर भी उसकी कमाई होती रहती है.

अब राम को अपनी सैलरी भी मिल रही थी और रेंट भी यानी वो समझ गया था कि पैसों से और ज़्यादा पैसा कैसे बनाया जाता है यानी अपने पैसों का सही इस्तेमाल कैसे किया जाता है.

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