(hindi) The 7 Habits of Highly Effective Teens

(hindi) The 7 Habits of Highly Effective Teens

इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आपको कभी हैरानी हुई है कि बाकि टीन्स कैसे खुश रहते है, जबकि आपको अपनी लाइफ मिज़रेबल लगती है? क्या कभी आपने ये जानने की कोशिश की है कि क्यों कुछ टीनएजर्स अपनी प्रोब्लम्स हैंडल नहीं कर पाते? वेल, दरअसल प्रोब्लम अंदर है. बाहर नहीं. सारी प्रोब्लम्स हमारे अंदर ही है, हमारे परसेप्शन में. अगर आप अपना परसेप्शन चेंज कर दे तो आप खुद को भी और अपनी सिचुएशंन भी चेंज कर सकते हो.

ये बुक सभी टीनएजर्स प्रोब्लम्स का सोल्यूशन है. इस बुक से आप सीखेंगे कि कैसे कुछ टीनएजर्स अपनी लाइफ के सबसे ज्यादा चेलेजिंग टाइम से सक्सेसफूली गुजर कर आये है और आपको उनकी सक्सेस का सीक्रेट भी पता चलेगा. इस बुक में आप पढेंगे कि एक टीनएज लाइफ की प्रोब्लम्स क्या है और उनके सोल्यूशन क्या हो सकते है. इस बुक को पढकर एक बात जो आप सीखेंगे वो ये कि कोई भी चेंज हमारे अंदर से आता है.

अगर आप एक पीसफुल लाइफ जीना चाहते हो, तो आपकी बॉडी और माइंड भी पीसफुल रहना जरूरी है. इस बुक में आप हाईली इफेक्टिव टीन्स की कुछ डेली हैबिट्स के बारे में जानेंगे. ऐसी सेवन हैबिट्स इस बुक में डिसक्राइब की गयी है जो आपका परसेप्शन और आपका माइंडसेट चेंज कर सकते है. इस जर्नी में, आपको सक्सेस का ट्रू मीनिंग समझ आएगा. सक्सेस का मतलब पैसे या फेम नहीं है बल्कि अपनी पर्सनल और प्रोफेशनल लाइफ के बीच बेलेंस क्रिएट करना ही सक्सेस है.

आप दुनिया को एक डिफरेंट वे से देखोगे तो ये दुनिया आपको बदली हुई नजर आएगी. फर्क सिर्फ हमारे नजरिये में है. इसलिए बाहरी सुन्दरता से पहले अपने अंदर की खूबसूरती को निखारो. फिर देखो ये पूरी दुनिया ही आपको खूबसूरत नज़र आएगी. तो क्या आप चेंज के लिए रेडी है? तो चलो शुरू करते है?

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

गेट इन द हैबिट ( Get in the habit )

टीनएज फेस लाइफ का सबसे मुश्किल टाइम होता है. इस उम्र में बच्चे अक्सर समझ नहीं पाते कि गलत क्या है और सही क्या. उम्र के इस दौर में कई बार उन्हें इमोशनल अप-डाउन फेस करने पड़ते है. अगर आप भी एक टीनएजर हो तो आपको भी कई तरह की प्रोब्लम्स झेलनी पड़ती होगी, जैसे फ्रेंडशिप, हार्ट ब्रेक्स, स्कूल की प्रोब्लम्स और इसी तरह की कई सारी प्रोब्लम्स.

आप अपनी लाइफ को एकदम टर्न ऑफ तो नहीं कर सकते लेकिन हाँ आप अपनी लाइफ में चेंज जरूर ला सकते हो. ऑथर शौनकोवे सजेस्ट करते है कि हर सक्सेसफुल और हैप्पी टीन में ये सेवन हैबिट्स जरूर पाई जाती है. ह्बैट्स ऑटोपायलट मोड पर काम करती है और कई बार तो हमे पता ही नहीं चलता कि हम कोई  भी काम अपनी हैबिट की वजह से कर रहे है. गुड हैबिट्स आपको बैटर बना सकती है जबकि बेड हैबिट्स आपको तोड़ भी सकती है. लेकिन बेस्ट पार्ट ये है कि आप कभी भी अपनी हैबिट चेंज कर सकते हो.

टीनएज लाइफ में कितने कॉम्प्लिकेशंस आते है इसका एक एक्जाम्पल शौन अपनी रियल लाइफ के एक्स्पिरियेंश से देते है. शौन जब स्कूल में थे तो उसे अपना फर्स्ट लव हुआ था. जिस लड़की से उन्हें प्यार हुआ था उसका नाम था निकोल. शौन थोड़े से शर्मीले टाइप के थे इसलिए वो लड़कियों से डायरेक्ट बात करने में डरते थे. तो शौन ने अपने फ्रेंड क्लार को बोला की वो उसे निकोल को प्रोपोज़ करने में हेल्प करे.

उसने क्लार को बोला कि वो जाकर निकोल को बताये कि शौन उससे लव करता है. तो क्लार निकोल के पास गया और उसने उसे शौन का मैसेज दिया. वो जब वापस शौन के पास आया तो शौन ने निकोल का रिस्पोंस पुछा. क्लार बोला’ तुम मोटे हो इसलिए निकोल ने तुम्हे रिजेक्ट कर दिया है/” और क्लार हंसने लगा. वो शौन का मजाक उड़ा रहा था. और इधर शौन का दिल टूट चूका था. उसे खुद पे शर्म आ रही थी. वो सोच रहा था कि काश वो कहीं जाकर छुप जाता.

दरअसल टीनएज फेस हमारी लाइफ का सबसे मुश्किल दौर होता है जब छोटी-छोटी बातो से हम हर्ट हो जाते है. किसी का एक छोटा सा कमेन्ट भी हमे काफी चुभता है. शौन खुश किस्मत था कि वो जल्दी ही इस दर्द से उबर गया. मगर बहुत से लोग नहीं उबर पाते. कुछ टीनएजर तो इतने हर्ट हो जाते है कि खुद को नुकसान पहुंचा लेते है. यहाँ हम एक और एक्जाम्पल देंगे कि कैसे हमारी हैबिट्स चेंज हो सकती है. चलो एक एक्सरसाइज़ करते है.

आप अपने बाजू फोल्ड करो. अब उन्हें अपोजिट वे में फोल्ड करने की कोशिश करो. आपको ये थोडा सा अजीब लगेगा क्योंकि आपको फर्स्ट तरीके से हाथ फोल्ड करने की आदत है. लेकिन अगर आप 30 दिनों तक अपोजिट डायरेक्शन में अपने हाथ फोल्ड करने की प्रेक्टिस करोगे तो फिर आपको कुछ अजीब नहीं लगेगा. क्योंकि तब तक ये आपकी हैबिट बन चुकी होगी. तो इसका मतलब है कि आप कभी भी अपनी बेड हैबिट्स छोडकर गुड हैबिट्स डेवलप कर सकते हो.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

हैबिट 1: बी प्रोएक्टिव Habit 1: Be Proactive

दो टाइप के लोग होते है, पहले जो रीएक्टिव होते है और दुसरे प्रोएक्टिव. रीएक्टिव लोग अपनी हर प्रोब्लम के लिए दूसरो को ब्लेम करते रहते है. ऐसे लोग अपनी कोई रीस्पोंसेबिलिटी नहीं समझते. ये लोग खुद को हमेशा विक्टिम की नजर से देखते है, क्योंकि इन्हें लगता है कि लोग इनके दुश्मन है. दूसरी तरफ प्रोएक्टिव लोग होते है जो अपनी लाइफ की हर रिस्पोंसेबिलिटी खुद उठाते है. ये लोग अपनी लाइफ की गाडी में पैसेंजर नहीं बल्कि ड्राईवर होते है. यानी इनकी लाइफ में जो कुछ होता है उसे ये अपनी जिम्मेदारी समझते है. शौनकोवे कहते है कि अगर हमे विनर बनना है तो हमे प्रोएक्टिव बनना पड़ेगा.

चलो एक एक्जाम्पल की मदद से रीएक्टिव और प्रोएक्टिव लोगो के बीच का फर्क समझते है. मान लो आपका कोई क्लोज फ्रेंड हिया, आप उसके साथ अक्सर घुमते फिरते है और आपका फ्रेंड भी आप के साथ बड़ा अच्छा बिहेव करता है. अब मान लो कि एक दिन आपने उसे किसी और से आपकी बुराई करते हुए सुन लिया. आपको कैसा फील होगा? बेशक आप काफी हर्ट होंगे, आपको अपने फ्रेंड की धोखेबाज़ी पर काफी गुस्सा आएगा. या तो आप रिएक्टिव हो जाओगे या प्रोएक्टिव.

अगर आप रिएक्टिव बनते हो तो उससे बात करना बंद कर दोगे और दोस्ती तोड़ दोगे. हो सकता है आप डिप्रेशन में आकर उस पर अटैक कर दो. या फिर आप भी बदला लेने के लिए उसके खिलाफ उलटा-सीधा बोलने लगो. लेकिन क्या आपको पता है कि इस तरह का बिहेव करके आप अपने फ्रेंड को अपनी लाइफ का रिमोट कण्ट्रोल दे रहो हो. क्योंकि उसने जो किया, आप उस पर बगैर सोचे समझे रिएक्ट कर रहे हो. अब वो जब चाहे तब आपका मूड चेंज कर सकता है. लेकिन अगर आप प्रोएक्टिव बनते हो तो आप उसे माफ़ कर दोगे.

आप उसे बताओगे कि आपको कितना हर्ट हुआ है और आप दुबारा ये नहीं चाहते. आप अपने फ्रेंड को माफ़ करके एक सेकंड चांस दे रहे हो. और वो भी आपकी इस काइंडनेस को हमेशा याद रखेगा और आपकी दोस्तों उम्रभर चलेगी. प्रोएक्टिव लोग इसी तरह से अपनी लाइफ का चार्ज लेते है. वो किसी और को अपने इमोशंस कण्ट्रोल नहीं करने देते. वो कैसे रिएक्ट करेंगे, ये वो खुद डिसाइड करते है. कोई और उनसे कोई रिएक्शन नहीं करवा सकता.

हैबिट विद द इमेज इन माइंड (Habit 2: Begin with the End in Mind)

हम सब कुछ ना कुछ अचीव करने में बिजी रहते है. और अपने गोल्स अचीव करने के लिए काफी हार्ड वर्क भी करते है, कई बार तो अपने सेट गोल की वैल्यू को ऐनालाइज किये बगैर. क्योंकि हम कई बार गैर ज़रूरी कामो में बिजी रहते है जिसकी वजह से हम फोकस लूज़ कर देते है और अपना रियल एम्बिशन ही भूल जाते है.

हाईली इफेक्टिव टीन्स की सेकंड हैबिट है, बिगन विद द एंड इन माइंड यानी एंड को अपने माइंड में लेकर चलना. जिसका मतलब है कि आप लाइफ के जो चाहते है उसकी क्लियर पिक्चर अपने माइंड में रखो. दो रीजन्स की वजह से ये हैबिट काफी इम्पोर्टेंट है.

पहला तो ये कि टीनएज उम्र एक क्रिटिकल क्रॉसरोड की तरह है. आप जो रास्ता चूज़ करोगे, वो आपकी फ्यूचर लाइफ को अफेक्ट करेगा. सेकंड रीजन है कि अगर आप अपने गोल्स डिसाइड नहीं करते है तो कोई और आपके लिए डिसाइड कर लेगा यानी फिर आप अपने नही बल्कि उनके ड्रीम्स पूरे करोगे.

हैबिट ऑफ़ बिगिन विथ द एंड इन माइंड” के कांसेप्ट की वजह से ही जिम अपने ड्रीम्स पूरे कर पाया. जब जिम नाइंथ क्लास में था, तो उसने पहले ही सोच रखा था कि वो बड़ा होकर क्या बनेगा. जब कभी वो उदास होता और नेगेटिव फील करता तो एक शांत जगह पे चला जाता और इमेजिन करने लगता कि वो बड़ा होगा तो कैसी लाइफ जियेगा.

इस तरह से जिम ने अपनी पूरी लाइफ प्लान कर रखी थी. उसने अपनी एजुकेशन के बारे में, अपनी फ्यूचर फेमिली, घर यहाँ तक कि बच्चे भी प्लान कर रखे थे. जिम ने अपनी लाइफ का कण्ट्रोल अपने हाथ में रखा और अपने इरादों पर डटा रहा. वो अपने डिसीजन खुद लेता था. जैसा कि हमने बोला टीनएज एक क्रिटिकल क्रोसरोड होती है इसलिए अपना रास्ता खूब सोच समझ कर चूज़ करो. इस पॉइंट को हम एक और स्टोरी से प्रूव करेंगे. शौन कोवे का एक फ्रेंड था जैक.

जैक योरोप गया और वहां से एक पार्टी ड्रग लेकर लौटा. उसने अपने नए फ्रेंड्स को और शौन को भी पार्टी ड्रग ट्राई करने के लिए इनवाईट किया. शौन जानता था कि जैक गलत रास्ते पे चल रहा है और वो उसे फोलो नहीं करेगा. लेकिन शौन के ज्यादा क्लोज फ्रेंड्स नहीं थे और वो लोनर नहीं रहना चाहता था.

इसके बावजूद शौन ने जैक से फ्रेंड्शिप तोड़ दी और नए फ्रेंड्स बनाये. कुछ महीनो बाद ही जैक एक ड्रग एडिक्ट बन चूका था. और नशे की हालत में एक स्विमिंग पूल में डूबकर मर गया. शौन को जैक के चले जाने का काफी दुःख था, लेकिन उसे ये सोचकर रिलीफ हुआ कि उसने सही टाइम पर जैक की बुरी संगत छोड़ दी और एक ड्रग एडिक्ट होने से बच गया.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

SHARE
Subscribe
Notify of
Or
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments