(Hindi) The Daily Stoic

(Hindi) The Daily Stoic

इंट्रोडक्शन (Introduction )

क्या आपकी लाइफ आपके कण्ट्रोल में है? या लाइफ आपको कण्ट्रोल कर रही है? क्या आप इमोशन में आके डिसीजन लेते है या रेशनल थौट्स से? क्या अक्सर ऐसा होता है कि आस-पास हो रही चीजों से आप जल्दी अफेक्ट हो जाते हो? या फिर आप खुद को संभालना जानते है? ये कुछ ऐसे सवाल है जिन्हें जवाब आपको देने है. इस बुक में आप आर्ट ऑफ़ लिविंग के बारे में पढेगे और सीखेंगे कि अपनी लाइफ के चैलेंजेस को कैसे हैंडल करना है. और ऐसा करने के लिए आपको सिर्फ उन्ही चीजों पर फोकस करना है जो आपके लिए मोस्ट इम्पोर्टेंट है. और आपको वो चीज़े आइडेंटीफाई करनी होंगी जो आपके कण्ट्रोल में है.

इस बुक को स्टोइज्म के तीन क्रिटिकल डिसप्लीन्स में डिवाइड किया गया है. फर्स्ट है, डिसप्लीन ऑफ़ परसेप्शन यानि हम इस दुनिया को कैसे देखते है. सेकंड है, डिसप्लीन ऑफ़ एक्शन, जोकि हमारे एक्श्न्स पर बेस्ड है और थर्ड है डिसप्लीन ऑफ़ विल यानी हम उन चीजों को कैसे हैंडल करे जो हमारे कण्ट्रोल से बाहर है. तो अब, क्या आप स्टोइक बनना चाहोगे? क्या आप अंदर से इतना शांत और मजबूत बनना चाहोगे कि कोई बाहरी ताकत आपको डिस्टर्ब ना कर पाए?

ये बुक आपको स्टोइज्म के अलावा भी काफी कुछ बताएगी. प्रॉपर गाइडेंस और एक कंसिस्टेंट प्रेक्टिस के साथ ये बुक आपको एक बेहतर इंसान बनने में हेल्प करेगी. एक स्टोइक कैसे बना जाए, ये आप इस बुक में सीखेंगे, यानी इस बुक को पढने के बाद आपएक बेहद शांत और वेल डिसप्लीन इंसान बन सकते है.

पार्ट I: द डिसप्लीन ऑफ़ परसेप्शन (Part I: The Discipline of Perception )

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जनवरी : क्लेइरिटी (January: Clarity )

क्लेयीरिटी का मतलब है अपने माइंड को समझना. आप इस दुनिया को जिस तरीके से देखते हो, वही आपके जीने का तरीका बन जाता है. स्टोइज्म की सबसे इम्पोर्टेंट प्रेक्टिस है उन चीजों के बीच का फर्क समझना जो कण्ट्रोल में है और जो कण्ट्रोल में नहीं है. लेकिन इसके लिए खुद को एजुकेट करना पड़ेगा. जब भी आपको बोरीयत हो, टीवी देखने के बजाए या मोबाइल देखने से अच्छा है कि अपनी नॉलेज बढाई जाए. आप वो चीज़े सीखो जो आपको नहीं आती. आप एक पर्पज के साथ बुक्स पढ़ते है – और यही चीज़ है जो आप आर्ट ऑफ़ लर्निंग में सीखते है.

अगर कभी थंडरस्टॉर्म या बुरे मौसम की वजह से आपकी फ्लाईट डिले या कैंसल हो जाए, तो एयरलाइन स्टाफ पर चिल्लाने से मौसम ठीक नहीं हो जाएगा. ठीक ऐसे है आप लाख चाहने के बावजूद आपकी हाईट नहीं बढती या आप चाहो कि काश” मै किसी और कंट्री में पैदा होता, या किसी और की फेमिली में पैदा होता”, लेकिन रियेल में ऐसा नहीं होता है. एक रिकवरी कम्युनिटी में एक प्रेक्टिस है जिसे सेरेनिटी प्रेयर बोलते है. इसमें लोग गॉड से प्रे करते है कि जो चीज़े हम बदल सकते है, उन्हें बदलने की शक्ति दो और जो हमारे हाथ में नही है, उन्हें एक्सेप्ट करने की ताकत दो”.

जैसे अगर कोई ड्रग एडिक्ट है तो उसका पास्ट उसके हाथ में नहीं है. हो सकता है कि वो बचपन में किसी बुरे अनुभव से गुज़रा हो जिससे कि उसे ड्रग की आदत पड़ गयी हो. लेकिन उसका आज उसके हाथ में है, वो चाहे तो अपनी इस बुरी आदत को छोड़ सकता है जो आगे चलकर उसके फ्यूचर को बेहतर बना देगा. तो जब भी आप अपने पास्ट की बातो को लेकर रिग्रेट करते है, प्रोब्लम्स वही से शुरू होती है. लेकिन अगर आप एक्शन लोगे तो अपने प्रजेंट में आप सेम प्रोब्लम से छुटकारा पा सकते हो और एक खुशहाल लाइफ जी सकते हो. हमेशा याद रखो कि पास्ट आपके हाथ में नहीं था, लेकिन प्रजेंट तो आपके हाथ में है, तो फिर क्यों आप अपने आज में खुशियों से दूर रहना चाहते हो.

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फरवरी; पैसंस एंड इमोशंस February: Passions and Emotions

खुद को शांत बनाये रखना काफी चेलेजिंग तो है, लेकिन लाइफ की खूबसूरती इसी में है. जो शांत रहता है वो अपनी प्रोब्लम्स का कोई न कोई सोल्यूशन तो ढूंढ ही लेता है. साथ ही लाइफ में और प्रोब्लम्स क्रिएट करने से भी बचता है. गुस्सा सबको आता है, लेकिन गुस्से का फायदा क्या है? बेवजह गुस्सा होना कोई अच्छी बात तो नहीं है, गुस्से से आज तक किसी का भला नहीं हुआ है, गुस्सा आपकी पॉवर नहीं बल्कि आपको कमजोरी दिखाता है. बल्कि गुस्से में आदमी कई ऐसी गलतियाँ करता है जिससे बाद में उसे पछताना पड़ता है.

क्या आपने कभी सपोर्ट गेम में किसी प्लेयर को दुसरे प्लेयर से उलझते देखा है? वो दुसरे को प्रोवोक करने या उन्हें डिसट्रेक्ट करने की कोशिश करते है? अपने अपोजिट टीम प्लेयर्स को गुस्सा दिलाकर वो उनका कम्पोजर तोड़ने की कोशिश करते है. जिससे कि कोई गलती करे या गुस्से में ऐसा डिसीजन ले ले जो उनके फेवर में ना हो. आपके इमोशंस आपके कण्ट्रोल में हो या नहीं या आप अपने आस-पास की चीजों पर रिएक्ट कर रहे है, गुस्से में आपको कुछ पता नहीं चलता कि आप क्या कर रहे है.

बॉक्सर जो लुईस (The boxer Joe Louis ) को अक्सर रिंग रोबोट बुलाते थे क्योंकि वो मैच के दौरान एकदम इमोशनलेस रहता था. सामने वाला प्लेयर उसके इस शांत नेचर से और ज्यादा डर जाता था, क्योंकि ऐसे में वो और भी ज्यादा डेंजरस लगता था. आप सिचुएशन को कैसे कण्ट्रोल करते हो, इसी में आपकी रियल पॉवर छुपी है.

जब कोई हम पे रौब ज़माने की कोशिश करे तो अंदर से हम कुछ ऐसा फील करते है” मुझे मत सिखाओ, मै जो भी करूँ जैसे भी जियूं, मेरी मर्ज़ी है, मेरी लाइफ है”. क्योंकि हमे लगता है कि हमारी लाइफ हमेशा हमारे कण्ट्रोल में रहे, लेकीन सच तो ये है कि हम सिचुएशंस पर रिएक्ट किये बिना रह ही नहीं पाते है. कोई हमसे एग्री ना करे तो हमे उस पे गुस्सा आता है, अगर कुछ बुरा हो जाए तो हम उदास हो जाते है. तो इसलिए हमे यही कोशिश करनी है कि सिचुएशन चाहे जैसी हो, हमे अपने इमोशंस को हावी नहीं होने देना है बल्कि हमे कैसे रिएक्ट करना है, ये हमारे कण्ट्रोल में होना चाहिए.

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मार्च : अवेयरनेस (March: Awareness )

लोग अक्सर सेल्फ अवेयरनेस की ज़रूरत भूल जाते है. क्या कभी आपने खुद से पुछा है” मै कौन हूँ?’ क्या आप की पहचान सिर्फ आपके कलर से, आपकी जॉब से या आपके पैसे से है? सेल्फ अवेयरनेस का मतलब है खुद को जानना, समझना. अपनी कमियों और खूबियों को जानना. आप बहुत कैपेबल है, खुद को कभी कम मत समझो. वर्ना हमेशा दुसरों से कम्पेयर करोगे और डिप्रेस्ड और दुखी रहोगे. वही दूसरी तरफ खुद को बढ़-चढ़कर भी मत समझो. क्योंकि खुद से ही बड़ी-बड़ी उम्मीदे रखना आपके इगो को हर्ट करेगा.

जब आपको कभी हार का सामना करना पड़े तो आप सह नहीं पाओगे. हमारा इगो हमे मिसगाइड करता है, जो हम है नहीं, हम खुद को वो समझने लगते है. ये हमे अपनी असलियत नही देखने देता. जो लोग ईगो में रहते है, उन्हें लगता है कि उन्हें सब कुछ पता है इसलिए अब कुछ भी लर्न करने की ज़रूरत नहीं. फिर ऐसे लोग लाइफ में कभी ग्रो नहीं कर पाते. अवेयरनेस का मतलब सिर्फ खुद के बारे में नहीं है, बल्कि ये हमारे कांशस के बारे में भी है.

क्योंकि अवेयर इसका रूट वर्ड है. यानी हम अपने प्रजेंट को लेकर अवेयर रहे, प्रजेंट मोमेंट में जिए. जो बीत गया सो बीत गया, पास्ट की बाते सोचने से कुछ नहीं बदलेगा और फ्यूचर की टेंशन लेना फ़िज़ूल है. इसलिए आज में जियो, क्योंकि यही हमारे हाथ में है. स्टोइज्म की मोस्ट इम्पोर्टेंट प्रेक्टिस याद रखो” जो बदल सकते हो और जो नहीं बदल सकते, उनके बीच  में फर्क करना सीखो”.

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अप्रैल : अनबायेस्ड थौट (April: Unbiased thought )

किसी भी सिचुएशन को हैंडल करते वक्त अपने इमोशंस से या उस चीज़ पर अपनी अटैचमेंट की फीलिंग से नहीं बल्कि लोजिक से सोचो. जिससे कि आप उस सिचुएशन को ऑब्जेक्टिव तरीके से देख सको और ऐसा डिसीजन ले सको जो अनबाएस्ड हो. पोजिटिव ढंग से जीने तरीका यही है. इससे आप किसी भी तरह की नेगेटिविटी से बचे रहोगे. हमारी चाहते हमे अक्सर गुलाम बना देती है, ये हम पर हावी हो जाती है और फिर हम उन्हें बगैर सोचे समझे पूरा करने में जुट जाते है. जैसे कि सेनेका कहती है” डिजायर नथिंग, एंड इट विल बी योर ग्रेटेस्ट पॉवर” यानी कोई भी ईच्छा मत रखो, इसी में आपकी ताकत है”.

जैसे एक्जाम्पल के लिए, पैसे के लिए आप उनके गुलाम बन सकते हो जिनके पास पैसा है. बिल कन्नींघम (Bill Cunningham,) एक फैशन फोटोग्राफर थे, उनसे जब पुछा गया कि” आपने अपने काम के लिए मैगजींस से पैसा लेना क्यों कम कर दिया’ तो उनका जवाब था’ जब आप उनके पैसे नहीं लोगे तो वो भी आपको नहीं बोल सकते कि आपको क्या करना है’. सिसरो (Cicero) से एक बार पुछा गया कि वो अलग-अलग मौको पर सेम मैटर पर डिफरेंट ओपिनियन क्यों देते है.

जैसे उन्होंने किसी मैटर पर पहले कुछ और बोला था और आज कुछ और बोल रहे है. सिसरो (Cicero) ने कहा जब उन्हें किसी चीज़ की प्रोबेबिलीटी लगती है तो वो बोल देते है चाहे उस बारे में पहले उनके ख्याल अलग रहे हो”. क्योंकि इससे उन्हें और ज्यादा फ्रीडम फील होती है. अगर किसी चीज़ को लेकर आपका माइंड चेंज हुआ है तो कोई बात नहीं, क्योंकि हम इन्सान है और इंसानों से ही गलतियाँ होती है. सबसे इम्पोर्टेंट ये है कि हम गलतियों को गलतियाँ समझ कर माफ़ कर दे, उन्हें दिल पे ना ले. क्योंकि गलतीयों से ही इंसान को सीखने का मौका मिलता है

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