(Hindi) Predictably Irrational

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इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आप स्टारबक्स का सीक्रेट जानना चाहते है? क्या आप स्टीव जॉब्स से कोई बिजनेस टिप लेना चाहेंगे? क्या आपको पता है कि हमारे इमोशंस हमारे डिसीजंस को  किस हद तक अफेक्ट कर सकते है? क्या आपको मालूम है कि हम सब किसी भी फ्री चीज़ के लिए एकदम पागल हो जाते है? अगर इन सवालों के जवाब हाँ है तो ये बुक आपके लिए ही बनायी गयी है. आज की आँडियो बुक का टाईटल है प्रेडिक्टेबली इररेशनल जिसे लिखा है डैन अरिएली ने। डैन एक आर्थर , रिर्सचर और प्रोफेसर  हैं उन्होने कोर्गनेटिव साईलोजी और बिजनेस एडमिनीसट्रीव में पीएचडी की है। बिहेवियर ईकोनिम्कस तरीका है ये जानने का हमारे इमोशन हमारे डिसीजन को कैसे इफेक्ट करते हैं।

लाइफ में ऐसी कई चीज़े है जिन्हें हम अक्सर इग्नोर करते है जैसे कि हमारा बिहेवियर या हमारी डेली लाइफ की सिचुएशंस. ऑथर डैन अरिएली ने इसका जवाब ढूढने की हिम्मत की है कि आखिर हम ऐसा बिहेव क्यों करते है? क्यों लोग प्रेडिक्टेबली इररेशनल होते है? हम अक्सर इररेशनल डिसीजन्स लेते है जबकि हम इस बात को नोटिस तक नहीं करते. जैसे कि एक के साथ एक फ्री का ऑफर सुनकर हम खुद को रोक नहीं पाते है और झट से वो चीज़ खरीद लेते है. या अक्सर हम देखते है कि ग्रुप डिनर्स के बाद काफी खाना बच गया है? इस बुक समरी में आप ऐसे पैटर्न्स देखेंगे जो आपने पहले कभी नहीं देखे होंगे. आप अपने और अपने आस-पास के लोगो के बिहेवियर को और अच्छे से समझने लगेंगे. और इस नॉलेज की वजह से आप और ज्यादा कांशीयस और रेशनल डिसीजन ले पायेंगे. तो चलो, स्टार्ट करते है इस बुक समरी से पहला चैप्टर स्टार्ट करते हैं.

द फालेसी ऑफ़ सप्लाई एंड डिमांड (डिमांड और सप्लाई की फालेसी) The Fallacy of Supply and Demand

एक टाइम था कि अगर आपको अमेरिका बढ़िया कॉफ़ी पीनी है तो आपको डंकिन डोनट्स (Dunkin’ Donuts) जाना पड़ता था. यहाँ पर आपको स्माल, मीडियम या लार्ज साइज़ में सही रेट की अच्छी कॉफ़ी मिल जाती थी. और आप चाहो तो उसमे एक्स्ट्रा शुगर या क्रीम भी डलवा सकते हो.

फिर होवार्ड स्चुल्त्ज़ (Howard Schultz ) स्टारबक्स का आईडिया लेकर आये. उन्होंने कॉफ़ी पीने का पूरा कांसेप्ट ही चेंज कर दिया. स्चुल्त्ज़ (Schultz ) ने स्टारबक्स कॉफ़ी को बाकि कॉफ़ी शॉप्स से डिफरेंट और यूनीक बनाने के लिए काफी डीप प्लानिंग की थी. ये प्लानिंग इतनी परफेक्ट थी कि स्टारबक्स की  कॉफ़ी पीने के लिए लोग लाइन में लगते थे. होवार्ड ने सबसे पहले एम्बिएंस चेंज किया. वो स्टारबक्स को यूरोप के कॉफ़ी शॉप्स की तरह बनाना चाहते थे. और उन्होंने कॉफ़ी के लिए हाई क्वालिटी कॉफ़ी बीन्स यूज़ किये जिसकी खुशबू दूर तक फैलती थी. स्चुल्त्ज़ ने स्टारबक्स में कॉफ़ी के आलावा बाकि चीज़े भी रखी जैसे कि पेस्ट्रीज़, केक्स और वाफ्फ्लेस (waffles.)

स्चुल्त्ज़ ने अपनी कॉफ़ी को स्माल, मीडियम या लार्ज लेबल ही नहीं दिए बल्कि उन्हें फेंसी नाम भी दिए जैसे टाल, ग्रांडे या वेंटी (tall, grande or venti).  कॉफ़ी को और ज्यादा फैशने बल नाम भी दिए गए जैसे मशेएटो  (Macchiato,) फ्रेपीचिनो (Frappuccino), कैफे अमेरिकनों या कैप्पूचिनो (Cappuccino).
स्टारबक्स का ये अंदाज़ कस्टमर्स को खूब पसंद आया. स्टारबक्स की एक्सपेंसिव कॉफ़ी पीना जैसे एक फैशन हो गया. बेशक ऑफिस में फ्री कॉफ़ी मिलती है मगर लॉयल कस्टमर्स स्टारबक्स की कॉफ़ी को सबसे डिफरेंट बोलते है. उनके लिए ये एक कप कॉफ़ी से कहीं बढकर थी. और यही चीज़ तो स्चुल्त्ज़ चाहते थे कि लोग उनके इस एक्सपेंसिव प्रोडक्ट के दीवाने बन जाए. जब भी हम कोई नया प्रोडक्ट लेते है तो उसके प्राइस पर हमारा ध्यान सबसे पहले जाता है.

बिजनेस ओनर्स कस्टमर्स के इस प्रेडिक्टेबल इररेशनल बिहेवियर को अपने फायदे के लिए यूज़ करते है और प्रोडक्ट्स का रेट बढ़ा कर रखते है. अगर कस्टमर्स वो प्रोडक्ट ख़ुशी-ख़ुशी ले रहे है तो आगे भी लेते रहेंगे. फिर चाहे उन्हें ज्यादा पैसे क्यों ना खर्च करने पड़े. एक बार प्रोडक्ट को हैबिट लग जाए तो लोग हमेशा खरीदते रहेंगे. और बिजनेस ओनर्स का यही गोल रहता है कि कस्टमर्स को उनके प्रोडक्ट की आदत पड़ जाए.

और लोग बार-बार उनके प्रोडक्ट खरीदते रहे. क्या आप एप्पल के फैन है? क्या आपके पास भी आईफ़ोन या मैक है? ये बात तो आप भी जानते होंगे कि एप्पल प्रोडक्ट्स के प्राइस बाकि गैजेट्स से हमेशा महंगे होते है? लेकिन फिर भी आपने एक बार अगर एप्पल के प्रोडक्ट्स यूज़ कर लिए तो शायद आप उनके लॉयल कस्टमर्स बन जाए. हालाँकि बाकि ब्रांड्स में आपको बैटर स्पीक्स और ज्यादा हाई टेक फोंस या लैपटॉप मिल जायेंगे. लेकिन एप्पल के फैन हमेशा ही एप्पल की तारीफ करेंगे. जो लोग इनके प्रोडक्ट यूज़ करते है वो यही बोलते है कि ये सबसे डिफरेंट है, ओरिजिनल है, इनोवेटिव है, यूजर फ्रेंडली है. वेल, यही तो स्टीव जॉब्स की स्ट्रेटेजी है.

और एप्पल का तो स्लोगन भी यही है” थिंक डिफरेंटली”. ये एक्सक्ल्यूसिव है. सिर्फ एप्पल कस्टमर्स ही एप्पल सॉफ्टवेयर यूज़ कर सकते है. जब आप कोई आईफोन या मैक लेते हो तो आप इस एलिट एप्पल ग्रुप के मेंबर बन जाते हो. बस आप और आपके जैसे लोगो के पास ही ये प्रिविलेज़ है. तो देखा आपने! आप एप्पल के प्राइस पे अटक गए है. आपको इसके गैजेट्स और एक्ससरीज़ पे ज्यादा पैसा खर्च करना बिलकुल भी बुरा नहीं लगेगा, जबकि आपको इससे कम प्राइस में दुसरे ब्रांड्स के और भी अच्छे स्पेक्स मिल सकते है. इसीलिए होवार्ड स्चुल्त्ज़ और स्टीव जॉब्स आज इतने सक्सेसफुल बिजनेसमेन है. क्योंकि ये फालेसी ऑफ़ सप्लाई और डिमांड के बारे में जानते है.

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द ट्रुथ अबाउट रिलेटीविटी (रिलेटिविटी का सच) The Truth about Relativity

हमारे सामने जब कोई आप्शन आता है तो हमे कुछ ऐसा चाहिए होता है जिससे हम उसे कम्प्येर कर सके. जैसे मान लो हम आप्शन बी के रिलेटिव आप्शन ए चूज़ करते है. अगर हमारे पास कम्पेरिजन के लिए कोई ऑब्जेक्ट नहीं होगा यानि दोनों में अच्छा कौन सा है, तो हमे डिसाइड करने में प्रोब्लम होगी. जैसे मान लो, एक बार इकोनोमिस्ट मैगजीन में एक एडवरटीज़मेंट आया था जो उनके मन्थली सब्सक्रिप्शन के बारे में था. फर्स्ट आप्शन था $59 में ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन. सेकंड आप्शन था $125 में प्रिंट सब्सक्रिप्शन और थर्ड आप्शन था $125 में प्रिंट और ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन. अगर सिर्फ ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन और प्रिंट ओनली सब्सक्रिप्शन होता तो कस्टमर्स को डिसाइड करने में प्रोब्लम आती कि कौन सा वाला चूज़ करे. कौन सा बैटर है? ऑनलाइन या प्रिंट?

असल में उन्हें पहले ये जानने की ज़रूरत है कि उनके लिए कौन सा वाला आप्शन सही है. लेकिन फिर एक और थर्ड आप्शन भी है जिसमे आप प्रिंट और ऑनलाइन दोनों सब्सक्रिप्शन ले सकते है. इसका प्राइस $125 है. इतने में तो सिर्फ प्रिंट सब्सक्रिप्शन मिल रहा है. तो लोग सेकंड आप्शन क्यों चूज़ करेंगे जब उन्हें सेम प्राइस में ज्यादा मिल रहा है? तो देखा आपने. मार्केटिंग एक्सपर्ट्स कस्टमर्स के इस प्रेडिक्टेबली इररेशनल बिहेवियर के बारे में काफी पहले से जानते थे. किसी भी प्रोमो या एडवरटीजमेंट में ये “डेकॉय” यूज़ करते है.

ये कस्टमर्स के सामने एक आप्शन रखते है ताकि कस्टमर्स कम्प्येर कर सके. इस केस में “डीकॉय” $125 में प्रिंट ओनली सब्सक्रिप्शन है. और मार्केटिंग एक्सपर्ट्स ने डीकॉय इसलिए रखा ताकि कस्टमर्स उसी ऑप्शन को चूज़ करे जो कंपनी उन्हें वाकई में बेचना चाहती है. इसी डीकॉय की वजह से कस्टमर्स प्रिंट और ऑनलाइन सब्सक्रिप्शन $125 में लेने को रेडी हो गए, उन्हें ये प्राइस कम्प्येर में काफी रिजनेबल लग रहा था. इस ऑप्शन ने दरअसल उन्हें फील कराया कि उन्हें ऑप्शन 3 में कुछ फ्री मिल रहा है. जबकि उन्हें कुछ भी फ्री नहीं मिल रहा है. गौर से देखे तो उन्हें ज्यादा खर्च करना पड़ रहा है. क्योंकि इकोनोमिस्ट अपने कस्टमर्स को $59 के बजाये $125 का प्लान बेचना चाहते है. ये डीकॉय इफेक्ट आपको मार्किट के किसी भी प्रोडक्ट में देखने को मिलेगा.

एक और एक्जाम्पल है रेस्ट्रोरेन्ट मेन्यू. ग्रेग रैप एक रेस्ट्रोरेन्ट कन्सल्टेंट है. न्यू यॉर्क के हाई क्लास रेस्ट्रोरेंट्स के लिए मेन्यू बनाना और प्राइस सेट करना उनकी जॉब में शामिल है. उन्होंने एक ऐसी टेक्नीक निकाली है जिससे रेस्ट्रोरेन्ट के मालिक ज्यादा कमाई कर सके. ग्रेग रेस्ट्रोरेन्ट की महंगी डिशेज़ को मेन्यू कार्ड में सबसे नीचे रखते है चाहे वो सबसे कम बिके. क्यों? क्योंकि ये महंगी डिशेज़ एक डीकॉय का काम करती है. बेशक कस्टमर्स ये डिशेज़ आर्डर नहीं करेंगे लेकिन वो सेकंड मोस्ट एक्सपेंसिव मील ज़रूर आर्डर करेंगे. डीकॉय की वजह से कस्टमर्स को लगता है कि उन्हें सेकंड मोस्ट एक्स्पेंसिव मील में कम प्राइस में और बेस्ट वैल्यू मिल रहा है.जैसे कि $100 में सिर्फ पास्ता के बजाए कस्टमर्स $180 का स्टेक चूज़ करेंगे. क्यों? क्योंकि $200 में लॉबस्टर के कम्प्येर में ये उन्हें काफी सस्ता और किफायती लगेगा. तो लास्ट में फायदा आखिर रेस्ट्रोरेन्ट ओनर का ही हुआ ना.

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द कास्ट ऑफ़ जीरो कास्ट (The Cost of Zero Cost)
जीरो कास्ट की कास्ट

फ्री ऑफर्स हमेशा ही कस्टमर्स को अट्रेक्ट करता है. जब भी हमे किसी प्रोडक्ट के साथ कुछ फ्री चीज़ दिखती है तो हम तुरंत खरीद लेते है चाहे हमे उसकी ज़रूरत हो ना हो. हमे लगता है कि हमारी सेविंग हुई है मगर सच तो ये है कि वो प्रोडक्ट हमे फिर भी महंगा पड़ा. जैसे एक्जाम्पल के लिए आप स्पोर्ट्स स्टोर में गए. आपको एक खास टाइप के सॉक्स लेने है जैसे कि गोल्ड टो और पैडल्ड हील वाले जो आपको टेनिस की प्रेक्टिस के लिए चाहिए. लेकिन स्टोर में घुसते ही आपने देखा कि एक के साथ एक फ्री सॉक्स का ऑफर है. लेकिन आपको तो टेनिस के सॉक्स चाहिए. फिर भी आप खुद को ऑफर वाला प्रोडक्ट खरीदने से रोक नहीं पाते है और इस तरह आप वो प्रोडक्ट खरीद लेते जिसकी आपको ज़रूरत भी नहीं थी.

एक और एक्जाम्पल लेते है. मान लो आप अमेज़ोन की साईट पे गए. आपको एक बुक लेनी है. लेकिन फिर आपने देखा कि आपके फेवरेट ऑथर की लेटेस्ट बुक आई है जिसका प्राइस है $16.95 और शिपिंग फीस है $3.95. तभी आपको फ्री शिपिंग का ऑफर दिखा, दो बुक्स पर शिपिंग फ्री है. अब आप सोचोगे ”वाओ, कितना कूल ऑफर है”. और आप एक और बुक खरीद लेते है जबकि आपको सिर्फ एक ही बुक की ज़रूरत थी और इस तरह आपका टोटल हुआ $31.90.

आपको क्या लगा कि आपने कोई ग्रेट डील की है. आपको फ्री शिपिंग मिली है. लेकिन क्या आपने कुछ सेव किया? बिलकुल नहीं, बल्कि आपने $15 ज्यादा खर्च किये. लेकिन आप को लगा की आपने पैसे बचाए है. और आप खुश हो गए. क्या आपने ऐसा ही कुछ ग्रोसरी शौपिंग करते टाइम भी देखा है? आप बेसिक सामान लेने जाते है. आपको राइस, ब्रेड, टूथपेस्ट और साबुन चाहिए. लेकिन आपको स्टोर में घुसते ही कोक का एक बड़ा ढेर नजर आता है जहाँ लिखा है” 6 के साथ एक फ्री”. आप कोक लेने तो आये नहीं थे. लेकिन आपने फ्री ऑफर देखा तो आपसे रहा नहीं गया. और फाइनली आप 6 कोक्स खरीद लेते है. क्या आपने कुछ सेविंग की? नहीं, फिर भी आप ख़ुशी-ख़ुशी कई दिनों तक कोक्स पीते रहेंगे. इसी को हम प्रेडिक्टेबली इररेशनल कस्टमर बोलते है.

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