(Hindi) Stephen Hawking’s a Brief History of Time: A Reader’s Companion

(Hindi) Stephen Hawking’s a Brief History of Time: A Reader’s Companion

इंट्रोडक्शन (Introduction)

ये यूनिवर्स कितना बड़ा है? प्लैनेट्स कैसे बनते हैं? एक ऐटम के अंदर क्या होता है ? क्या ब्लैक होल सच में मौजूद है? ऐसे ही कुछ सवालों के जवाब आपको इस बुक में मिलेंगे.

आप स्पेस-टाइम और जेनरल रिलेटिविटी के बारे में सीखेंगे. आप क्वांटम मैकेनिक्स और अनसर्टेनिटी प्रिंसिपल के बारे में जानेंगे. इसके साथ ही आप ये भी जानेंगे कि यूनिवर्स की शुरुआत कैसे हुई. आप नेचर के फोर्सेज और थ्योरी ऑफ़ everything के बारे में भी जानेंगे.
“अ ब्रीफ हिस्ट्री ऑफ़ टाइम” दिलचस्प टॉपिक्स और कभी ना ख़त्म होने वाली possibilities से भरा हुआहै.
कोई भी साइंटिस्ट बन सकता है. आप शुरुआत इस बुक से कर सकते हैं.

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स्पेस एंड टाइम  (Space and Time)

न्यूटन के लॉ के अनुसार ऐब्सल्यूट (absolute) स्पेस कुछ नहीं होता. इमेजिन कीजिये कि आप एक चलती हुई ट्रेन के अंदर हैं और आपका बेस्ट फ्रेंड प्लेटफार्म पर खड़ा है.

आपके दोस्त के पोजीशन से उसे ट्रेन तेज़ी से आगे बढ़ती हुई नज़र आएगी. उसे लगता है कि वो रेस्ट की पोजीशन  पर है क्योंकि वो प्लेटफार्म पर सिर्फ़ खड़ा है. तो वहीँ, आपकी  पोजीशन से, आपको लगता है कि आप रेस्ट पोजीशन पर हैं क्योंकि आप ट्रेन के अंदर बैठे हुए हैं. आपके लिए, आपका दोस्त तेज़ी से दूर जा रहा है.

न्यूटन का मानना था कि टाइम ऐब्सल्यूट होता है. टाइम सबके लिए सेम होता है, बशर्ते आपके पास एक अच्छी घड़ी होनी चाहिए ! उनका ये भी मानना था कि टाइम और स्पेस एक दूसरे से अलग अलग exist करते हैं.
फिर आइंस्टाइन आए जिन्होंने कहा कि ऐब्सल्यूट टाइम भी नहीं होता है. ये जेनरल थ्योरी ऑफ़ रिलेटिविटी का ही एक हिस्सा है. इसे ऐसे समझा जा सकता है

इमेजिन कीजिये कि आप घर के अंदर है. आपका बेस्ट फ्रेंड अर्थ (earth) के atmosphere के बाहर एक स्पेस शिप में ट्रैवल कर रहा है. ग्रेविटी के पुल या खिंचाव के कारण अपने दोस्त के मुकाबले आपका टाइम स्लो चलेगा. अर्थ पर आपके घड़ी के मुकाबले उसकी घड़ी ज़्यादा फ़ास्ट चलेगी. असल में GPS इसी कांसेप्ट पर  काम करता है.

ग्लोबल पोजिशनिंग सिस्टम (GPS) जेनरल रिलेटिविटी की वजह से काम करता है. सैटलाइट फ़ीड को एडजस्ट किया जाता है ताकि अर्थ पर ये आपके टाइम और पोजीशन पर एक्यूरेट हो . अगर टाइम रिलेटिविटी को नज़रंदाज़ कर दिया जाए तो GSP अलग अलग फ़ीड देने लगेगा और आपअपने रास्ते में खो जाएँगे.

आइंस्टाइन का भी यही मानना था कि स्पेस और टाइम एक दूसरे से अलग अलग नहीं बल्कि एक साथ exist करते हैं. ये यूनिवर्स फोर डायमेंशनल है. इसमें स्पेस के तीन डायमेंशन के साथ टाइम का एक डायमेंशन जुड़ा हुआ है.

स्पेस टाइम वार्प क्या होता है? किसी भी ऑब्जेक्ट जिसमें mass होता है उसकी ग्रेविटी की वजह से स्पेस-टाइम में जो घुमाव या मोड़ (curve) होता है उसे स्पेस टाइम वार्प कहा जाता है. आइये ट्रैम्पोलीन की मदद से इसे समझते हैं.

इमेजिन कीजिये कि आपके पास एक ट्रैम्पोलीन, एक बोलिंग बॉल और गोल्फ़ के कुछबॉल हैं. अगर आप ट्रैम्पोलीन पर बोलिंग बॉल डालेंगे तो उसका फैब्रिक (कपड़ा) कर्व हो जाएगा यानी मुड़ जाएगा. ये घुमाव या कर्व काफ़ी बड़ा होगा क्योंकि बोलिंग बॉल का mass ज़्यादा है और उसका ग्रेविटी पुल भी ज़्यादा स्ट्रोंग है.

अब जब आप गोल्फ़ के बॉल को डालेंगे तो भी फैब्रिक मुड़ेगा लेकिन इस बार ये बोलिंग बॉल जितना नहीं मुड़ेगा क्योंकि गोल्फ़ के बॉल का mass कम होता है. तो स्पेस-टाइम बिलकुल ट्रैम्पोलीन जैसा है और बॉल प्लैनेट्स जैसे हैं.

ग्रेविटी के कारण प्लैनेट्स स्पेस-टाइम को मोड़ते हैं. इसके बदले स्पेस-टाइम प्लैनेट्स के मूवमेंट और पोजीशन को डिसाइड करता है.

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द एक्सपैंडिंग यूनिवर्स  (The Expanding Universe)

क्या आप जानते हैं कि सन के सबसे नज़दीक कौन सा स्टार है? वो है प्रोक्सिमा सेंटौरी. ये हमसे 4 लाइट इयर्स दूर है. जिसका मतलब है इसकी लाइट को अर्थ पर पहुँचने में चार साल लगता है. क्यों, चौंक गए ना?

तो वहीँ हमारा सन हमसे 8 मिनट की दूरी पर है.  रात के  साफ़ आसमान में हमें अक्सर कई सारे स्टार्स नज़र आते हैं, वो शायद हमसे हंड्रेड लाइट इयर्स दूर होंगे. ये हमारे मिल्की वे गैलेक्सी के अंदर होते हैं.

1924 में एडविन हब्ब्ल ने ये कहा कि इस यूनिवर्स में मिल्की वे गैलेक्सी एक अकेला गैलेक्सी नहीं है. अलग अलग गैलेक्सीज  के बीच काफ़ी बड़ा खाली स्पेस है जिसके कारण उनकी exact पोजीशन को बता पाना बहुत मुश्किल है.

मॉडर्न टेलिस्कोप से पता चला है कि वास्तव में लाखों गैलेक्सीज मौजूदहैं. हर एक के अन्दर लाखो स्टार्स होंगे. हमारा अपना मिल्की वे गैलेक्सी 1,00,000 लाइट इयर्स के आस पास है. इसका शेप घुमावदार है मतलब एक स्पाइरल के जैसा. ये सौ मिलियन सालों में एक बार धीरे धीरे घूमता है.

हमारा सन गैलेक्सी के एक स्पाइरल में एक एवरेज स्टार है. उस बड़े से स्पाइरल गैलेक्सी के अंदर हमारे सोलर सिस्टम को इमेजिन कीजिये. एडविन हब्बल ने ये भी पाया कि दूसरी गैलेक्सीज हमसे दूर जा रही हैं. उन्होंने doppler शिफ्ट का कांसेप्ट यूज़ किया था.

दूसरी गैलेक्सीज के स्टार्स से मिलने वाले लाइट वेव्स को हब्बल ने स्टडी किया. doppler शिफ्ट के अनुसार, अगर कोई स्टार पास होता है तो उसका वेवलेंथ छोटा या कम  होता है. वो लाइट स्पेक्ट्रम के ब्लू कलर के हिस्से में आता है . लेकिन अगर कोई स्टार दूर होताहै तो उसका वेवलेंथ लंबा होगा. वो लाइट स्पेक्ट्रम के रेड कलर के हिस्से में आएगा.

हब्बल को ये जान कर बहुत आश्चर्य हुआ कि ज़्यादातर स्टार्स या गैलेक्सीज रेड कलर के हिस्से में थी. जिसका मतलब है कि वो सब हमसे दूर जा रही हैं. उन्होंने ये भी देखा कि जितनी दूर एक गैलेक्सी था वो उतनी ही तेज़ी से और दूर जा रहा था.

तो कन्क्लूज़न ये है कि वास्तव में यूनिवर्स expand हो रहा है, बढ़ रहा है. समय बीतने के साथ गैलेक्सीज के बीच की दूरी बढती जा रही है.
अब आप सोच रहे होंगे, फिर ग्रेविटी का क्या? क्या ग्रेविटी यूनिवर्स के इस expension को रोक नहीं सकती? तो थ्योरी ये कहती है कि एक्सपेंशन की स्पीड ग्रेविटी के पुल से ज्यादा स्ट्रोंग है. इसलिए ये यूनिवर्स सिकुड़ (contract) नहीं सकती, छोटी नहीं हो सकती. ये हमेशा बढ़ती ही जाएगी.

न्यूटन और आइंस्टाइन दोनों ही एक static यूनिवर्स के आईडिया को मानते थे. static मतलब एक ऐसा यूनिवर्स जहां स्पेस ना तो बढ़ता है और ना कम होता है. 1922 में एलेग्जेंडर फ्राइडमैन ने बढ़ते हुए यूनिवर्स के कांसेप्ट के बारे में और जानने की कोशिश की. उन्होंने दो चीज़ों को assume किया. पहला, हम जहां भी देखते हैं ये यूनिवर्स बिलकुल सेम नज़र आता है. दूसरा, अगर हम किसी दूर की गैलेक्सी से देखेंगे तब भी वो बिलकुल सेम ही नज़र आएगा.

1924 में हब्बल की खोज के रिजल्ट ने प्रूव कर दिया कि फ्राइडमैन का आईडिया एकदम सही था. यहाँ एक और अमेजिंग फैक्ट है. 1965 में बेल labs के दो फिजिसिस्ट को expanding यूनिवर्स के बारे में और सबूत मिले. वो दोनों थे, रॉबर्ट विल्सन और अर्नो पेनज़ियास.

वो दिन बिलकुल एकआम दिन जैसा था.  विल्सन और पेनज़ियास एक बहुत सेंसिटिव माइक्रोवेव डिटेक्टर को टेस्ट कर रहे थे. उन्हें लगा कि डिटेक्टर ठीक से काम नहीं कर रहा था. वो डिटेक्टर बहुत ज़्यादा शोर को दिखा रहा था. ऐसा लग रहा था कि वो शोर किसी भी डायरेक्शन से नहीं आ रहा था क्योंकि वो जहां भी डिटेक्टर को पॉइंट कर रहे थे, वो शोर बिलकुल सेम था.

जिसका मतलब था कि अर्थ पर कहीं से भी ये माइक्रोवेव नहीं आ रहा था. ये अर्थ के बाहर स्पेस से आ रहा था. हो सकता है कि वो मिल्की वे गैलेक्सी के बाहर से आ रहा था. क्योंकि ये माइक्रोवेव सेम था, चेंज नहीं हो रहा था तो इसने फ्राइडमैन के आईडिया को प्रूव कर दिया था कि चाहे कहीं से भी देखो ये यूनिवर्स बिलकुल सेम नज़र आती है.

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