(Hindi) WHY I AM AN ATHEIST.

(Hindi) WHY I AM AN ATHEIST.

इंट्रोडक्शन (Introduction)

1930 में भगत सिंह जब लाहौर सेंट्रल जेल में बंद थे तब उन्होंने एक एस्से लिखा था. वो खुद को एक एथीईस्ट (नास्तिक), मतलब जो भगवान् में विश्वास नहीं करते, मानते थे. इस वजह से उनके दोस्त उन्हें घमंडी समझने लगे. वो कहते कि भगत सिंह खुद को नास्तिक इसलिए कहते हैं क्योंकि उन्हें बहुत अहंकार और घमंड है.

मगर भगत सिंह इस बात से बिलकुल सहमत नहीं थे. इस एस्से में उन्होंने समझाया है कि उनके नास्तिक होने का कारण घमंड नहीं है. इस बुक में आप उनके आज़ाद सोच और  प्रिंसिपल्स के बारे में सीखेंगे.उन्होंने दुनिया में बहुत अन्याय और नाइंसाफी देखी तो सवाल किया कि अगर सच में भगवान् है तो वो अपने लोगों को इतने दुःख और तकलीफ क्यों देता है?

इस बुक में भगत सिंह ने हिन्दू, मुस्लिम और क्रिस्चियन के अपने भगवान्  में  विश्वास को चैलेंज किया. ये दुनिया कैसे बनी, कैसे इतनी आगे बढ़ी और अगले जन्म की सोच जैसी कई बातों पर सवाल उठाए.क्योंकि वो पूरा जीवन नास्तिक रहे, उन्हें स्वर्ग और अगले जन्म के कांसेप्ट में बिलकुल भरोसा नहीं था.

भगत सिंह ने मौत का सामना हिम्मत से किया, वो उससे घबराए नहीं. वो खुश थे कि उन्होंने अपना पूरा जीवन इंडिया की आज़ादी और लोगों को आज़ाद करने में लगा दिया. 1931 में उन्हें फांसी दे दी गयी. वो सिर्फ 23 साल के थे.

हाँ, वो एक महान और ग्रेट इंडियन हीरो हैं. वो बहुत टैलेंटेड राइटर थे, आज़ाद ख्यालों वाले और एक बहुत स्ट्रोंग लीडर भी थे. भगत सिंह ने अपने मिशन, इंडिया की आजादी के लिए अपनी जान तक ग़वा दी. चाहे वो नास्तिक हों या नहीं, वो एक महान इंसान ज़रूर थे जिनकी जितनी भी तारीफ की जाए वो कम ही होगी.

व्हाई आई ऍमऍनएथीईस्ट     (Why I am an Atheist)

क्या मेरे नास्तिक होने का कारण मेरा घमंड है ? अगर मैं भगवान् में विश्वास नहीं करता  तो क्या इसका कारण मेरा घमंड है? यही सवाल मेरे दोस्त मुझसे पूछते हैं. मुझे एहसास ही नहीं हुआ कि मेरे व्यवहार से उन्हें ऐसा लग रहा है. कुछ लोगों ने जो थोडा बहुत समय मेरे साथ बिताया था उन्होंने ऐसा ही समझ लिया, ऐसा ही अनुमान लगा लिया.

अब मैं जवाब देने के लिए मजबूर हूँ. मैं एक साधारण आदमी हूँ, इससे ज्यादा मैं खुद को कुछ नहीं समझता. हाँ मैं स्वीकार करता हूँ कि कभी कभी मुझ में घमंड और अहंकार होता है मगर वो मेरे नास्तिक होने का कारण बिलकुल नहीं है.

मेरे कुछ दोस्त मुझे तानाशाह और हुकुम चलाने वाला कहते हैं. कुछ कहते हैं कि मैं हर काम अपनी मर्ज़ी से करता हूँ. उन्हें शिकायत है कि मैं अपनी बात दूसरों पर थोपता हूँ और तब तक बहस करता हूँ जब तक वो मेरी बात मान नहीं लेते. हाँ, इस बात से मैं मना नहीं कर सकता.

मैं इस बात से भी मना नहीं कर सकता कि मुझमें बहुत ईगो है. हमारे समाज में इसे “अहंकार” या खुद पर बहुत गर्व होना कहते हैं. तो अगर ये बात सच है कि मैं अपने घमंड के कारण नास्तिक हूँ तो इसकी वजह ये दो कारण हो सकते हैं :

पहला,मुझे खुद पर इतना गर्व है कि मैं भगवान् को अपना दुश्मन समझता हूँ. दूसरा, मुझे इतना अहंकार है कि मैं खुद को ही भगवान् समझता हूँ.चाहे दोनों में से कोई भी सिचुएशन हो फिर भी मैं ही हारूंगा.

अगर पहला स्टेटमेंट सच है तो मैं खुद को भगवान् का दुश्मन समझूंगा, तो सही मायने में मैं नास्तिक तो हुआ ही नहीं, ऐसा इसलिए क्योंकि खुद को उनका दुश्मन कहने के लिए मुझे पहले इस बात को मानना होगा कि भगवान् सच में हैं. और अगर दूसरा स्टेटमेंट सच है तब मुझे भगवान् के होने की बात पर विश्वास करना होगा कि ऊपर कोई भगवान् है जो पूरे यूनिवर्स को देख रहे हैं.

तो ये कहना कि मैं भगवान् का दुश्मन हूँ या मैं खुद भगवान् का अवतार हूँ का मतलब हुआ कि मैं भगवान् के होने पर विश्वास करता हूँ ? ये बात बिलकुल झूठ है, मैं बिलकुल नहीं मानता कि कोई भगवान् होते हैं. इसलिए मैं अहंकारी नहीं हूँ. मैं खुद को भगवान् नहीं समझता. मुझे भगवान् या किसी डिवाइन एनर्जी  के होने  पर कोई विश्वास नहीं है. तो मैं साफ़ साफ़ बता देना चाहता हूँ कि भगवान् नहीं होते हैं.

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मेरे दोस्तों ने मेरे बारे में ऐसा कैसे सोचा ? उन्हें क्यों लगा कि मैं घमंडी हूँ इसलिए नास्तिक बन गया हूँ ? मैं कोर्ट में चल रहे ट्रायल की वजह से पोपुलर हुआ. दिल्ली में हुए बोम्ब ब्लास्ट और लाहौर कांस्पीरेसी केस की वजह से लोग मेरा नाम जानने लगे. मेरे दोस्तों को लगा कि ये पॉपुलैरिटी मेरे सर पर चढ़ गई है.

तो चलिए, मैं आपको सच बताता हूँ. मैं नास्तिक अचानक या अभी अभी नहीं बना हूँ. मैं जब कॉलेज में था तब से नास्तिक हूँ. मैं उन दोस्तों से नहीं मिला हूँ जो मुझ पर घमंडी होने का इलज़ाम लगाते हैं. मैं अच्छा स्टूडेंट नहीं था तो खुद पर गर्व करने का तो सवाल ही नहीं उठता.

मैं पढ़ाकू या होशियार नहीं था, ना ही मैं मेहनती था. मैं बहुत शर्मीला लड़का था जो अपने फ्यूचर को लेकर हमेशा नेगेटिव ही सोचता था. हाँ मैं ये कह सकता हूँ कि मैं शुरू से नास्तिक नहीं था.

मेरे दादा आर्य समाज से हैं. मैं उसी समाज की सोच और विश्वास के बीच पला बड़ा हूँ. मेरी परवरिश आर्य समाज की सोच के हिसाब से हुई है.
मेरी प्राइवेट एजुकेशन के बाद मैंने लाहौर  के  DAV स्कूल में  एडमिशन लिया. स्कूल के पहले साल मैं स्कूल के बोर्डिंग हाउस में रहा. उस समय मैं भगवान् से सुबह  शाम प्रार्थना किया करता था. मैं घंटों तक गायत्री मंत्र पढ़ा करता था.

मैं भगवान् का पक्का भक्त था. उसके बाद मैं अपने फादर के साथ रहने लगा. वो बहुत खुले विचार के थे, हमेशा आगे की सोचते और दूसरों की भलाई  सोचते  थे. मुझे उनसे ही आज़ादी के लिए लड़ने की इंस्पिरेशन मिली. हालांकि वो मुझे रोज़ प्रार्थना करने के लिए कहते थे.

जब नॉन कोऑपरेशन मूवमेंट तेज़ी से बढ़ रहा था, मैंने नेशनल कॉलेज में एडमिशन लिया. वहाँ मैं और भी ज्यादा खुले विचारों का हो गया था. मैं बहुत गहराई से सोचने लगा.लम्बे समय से चली आ रही सोच और पूरे सिस्टम पर मैं सवाल उठाने लगा. मैं भगवान् से जुडी बातों पर सवाल उठाने लगा.
मैंने अपने बाल बढ़ा कर लम्बे कर लिए थे. मैं हर बात का विरोध करने लगा था. मैं पुरानी कथाओं और रिलिजन से जुडी बातों की बुराई करने लगा था, उनमें दोष निकालने लगा था. मगर मैं तब भी भगवान् के होने में विश्वास करता था.

बाद में, मैं रेवोल्यूशनरी पार्टी का मेम्बर बन गया. जो मेरे पहले लीडर थे, उन्हें भगवान् के होने में डाउट था लेकिन उन्होंने कभी ये नहीं कहा कि भगवान् नहीं  हैं. जब मैं उनसे पूछता था तो वो कहते कि “अगरप्रार्थना करना चाहते हो तो करो”. मुझे लगता है कि इस तरह की सोच में दम नहीं है.

जो मेरे दूसरे लीडर थे वो भगवान् में बहुत विश्वास करते थे. उनका नाम सचिन्द्र नाथ सन्याल था. उन्हें कराची कांस्पीरेसी के लिए सज़ा सुनाई गई थी. उन्होंने एक बुक लिखी जिसका नाम “बंदी जीवन” था, उसमें उन्होंने भगवान् के बारे में बहुत अच्छी बातें लिखी हैं, उन्होंने भगवान् में गहरा विश्वास दिखाया है. वेद में भगवान् के बारे में जिस तरह लिखा गया है उसका प्रभाव उनपर हुआ और वो भी भगवान् में बहुत विश्वास करने लगे.

मैं ये बताने की कोशिश कर रहा हूँ कि रेवोल्यूशनरी पार्टी में सब की सोच नास्तिक जैसी नहीं थी, सब अलग अलग विचारों वाले थे. यहाँ तक की काकोरी काण्ड में जिन चार लोगों को गिरफ्तार किया गया था उन शहीदों ने अपने आखरी पलों में प्रार्थना की थी. राम प्रसाद बिस्मिल भी आर्य समाज के थे. राजेन लाहिरी ने अपनी मौत से पहले गीता और उपनिषद् में लिखे श्लोक (shlok) और भजन गाये थे.

उनमें से सिर्फ एक ही था जिसने कभी प्रार्थना नहीं की. उनका कहना था कि हम इंसानियत को ठीक से समझ ही नहीं पाए हैं और अलग अलग रिलिजन हमारी ना समझी और कमियों की वजह से बना है. मगर उन्होंने कभी नहीं कहा कि भगवान् है ही नहीं.

जब मैंने पहली बार पार्टी ज्वाइन की थी, तब मैं एक मस्त मौला खुले विचारों वाला लड़का था. मेरे लीडर्स जो मुझे सिखाते थे मैं बस उसे फॉलो करता था. मगर उनसब के जाने के बाद ये रेस्पोंसिबिलिटी हमारे ऊपर आ गई थी, नए जेनरेशन पर.

कुछ ऐसे लोग थे जो हमारा मज़ाक उड़ाया करते थे. ऐसे भी लोग थे जिन्हें हमारे मकसद और हमारी पोलिटिकल पार्टी की ताकत पर भरोसा नहीं था. बस यहीं से मुझे एक नया मोड़ मिला, मेरी सोच बदल गई.  मेरा नया स्लोगन “पढ़ो” बन गया. अगर आप पढ़े लिखे हों तो ये आपको सामने वाली की बात का सही जवाब देने का ज्ञान और समझ मिल जाती है. अगर आप पढ़े लिखे होंगे तो आप रेवोल्यूशनरी पार्टी के विचारों और सोच को ख़तम होने से बचा सकेंगे.

और मैंने बिलकुल ऐसा ही किया. हमारे पुराने लीडर्स ने सिर्फ ताकत का इस्तेमाल किया था. मगर मुझे ये समझ में आया कि विचार ज्यादा ताकतवर होते हैं. पढाई लिखाई करने से हमें नॉलेज मिलती है, हम कही  सुनी बातों पर ऐसे ही विश्वास नहीं कर लेते. इस तरह आप अन्धविश्वास से बच सकते हैं. मैंने अपने साथियों को रियलिटी को अपनाने के लिए कहा, कही सुनी बातों को नहीं.

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