(Hindi) Intuitive Eating: A Revolutionary Program that Works

(Hindi) Intuitive Eating: A Revolutionary Program that Works

इंट्रोडक्शन(Introduction)

आप किस तरह खाना पसंद करते हैं? खाना खाने के अलग अलग स्टाइल को 4 तरह की पर्सनालिटीज में डिवाइड किया गया है जो है – केयरफुल ईटर, प्रोफेशनल डाइटर, अनकॉन्सियस(unconscious)ईटर और इंटूइटिव ईटर. तो आपके पास चांस है ये पता लगाने का कि आप कौन सी ईटिंग पर्सनालिटी हैं.

क्या आप उनमें से हैं जो हेल्थ और फिटनेस के बारे में ज्यादा जानने की इच्छा रखतें हैं ? क्या आप उनमें से हैं जो सामान खरीदते वक़्त लेबल पर डिटेल्स पढतें हैं ? क्या आप रेस्टोरेंट में वेटर से डिश के बारे में पूछ्तें हैं कि उसमें क्या क्या डाला गया है और किस तरह से उसेबनाया गया है ?
अगर आपका जवाब हाँ है, तो आप केयरफुल ईटर हैं.जैसा कि इन्हें नाम दिया गया है, ये अपने फ़ूड को लेकर बहुत केयरफुल होते हैं. ये जानना चाहते हैं कि खाने कि हरबाईट मेंइनके बॉडी के अन्दर क्या जा रहा है. फिट और healthy बनने की इच्छा रखना बिलकुल गलत नहीं है लेकिन केयरफुल ईटर कभी कभी अति कर देते हैंमतलब हद से ज्यादा कोई भी चीज़ बहुत खराब होती है. हर चीज़ में एक बैलेंस होना ज़रूरी है. ये अपने रूल्स को लेके बहुत स्ट्रिक्ट होते हैं.

क्या आपने हर पॉप्युलर (popular) डाइट को ट्राय किया है ? क्या आप हमेशा नई डाइटिंग टेक्निक  को ढूंढते रहते हैं ? क्या आप एक डाइट प्लान से दुसरे प्लान पर जाते रहते हैं, क्या आप रेगुलर डाइटिंग करते हैं ?

अगर आपका जवाब हाँ है,तो आप एक प्रोफेशनल डाइटर हैं. ऐसेलोगहमेशा डाइटिंग करते रहते हैं. ये स्ट्रिक्ट डाइट , एक्सरसाइजयहाँ तक कि पिल्स भी लेने को तैयार रहते हैं. क्या आपने कभी सोचा है कि इतना सब कुछ करने के बाद भी इनमें से कोई भी सच में काम नहीं करता है.

क्या आप टीवी देखते समय या बुक पढ़ते समय खाते हैं ? क्या आप काम करते समय या इन्टरनेट ब्राउज करते समय कुछ खाते हैं ? अगर हाँ तो आप  unconscious  ईटर हैं. हो सकता है कि आपका रूटीन बहुत हेक्टिक हो. हो सकता है कि आपकोस्नैक्स(snacks) जैसे कूकीज और कैंडीज खाना पसंद हो. हो सकता है जब आप थके हुए, उदास या गुस्से में होते हैं तब खाते हैं.

ऐसे लोग अनकॉन्सियस ईटरहोते हैं. इनका ध्यान खाने पर होता ही नहीं है, ये हमेशा कोईना कोई काम करते समय खाते हैं. ये नोटिस ही नहीं करते कि ये ज़रुरत से ज्यादा खा चुके हैं. ये अपने बॉडी की ज़रुरत और भूख से बिलकुल अनजान होते हैं. यहाँ तक की इन्हें पता ही नहीं चलता की इनका पेट भर चुका है या नहीं. ये बस अपना काम करते रहते हैं और साथ में खाते चले जाते हैं.

इन तीनों ईटिंग स्टाइल्स के नेगेटिव रिजल्ट्स होते हैं. इस बुक के दोनों ऑथर्स ने ऐसे बहुर लोगों के साथ काम किया है जो अपनावेट कम करना चाहते हैं और एक healthy लाइफ जीना चाहते है. आइये देखते हैं ये क्या कहना चाहती हैं :

इंटूइटिव ईटर बनाना सीखो. ये तरीका सबसे बेस्ट होता है. भूख लगने पर जब आप खाना खाते हैं और पेट भर जाने पर जब रुक जाते हैं तब आप एक इंटूइटिव ईटर होते हैं. ऐसे ईटर को कुछ भी खाने केबादमें कभी कोई गिल्ट या नेगेटिव फील नहीं होता है.

ये ईटर्स अपनी बॉडी के नेचुरल सिगनल्स पर ध्यान देते हैं मतलब जो नैचुरली हम सब में होता है. फर्क ये है कि वो अपनी बॉडी की बात सुनते हैं, बाहर की चीज़ों पर ध्यान नहीं देते कि कब खाना है और कितना खाना है. ऐसे ईटर्स अपनी बॉडी और फ़ूड दोनों को लेकर कम्फ़र्टेबल होते हैं.ये अपनी ईटिंग हैबिट से बहुत खुश रहते हैं क्योंकि इनकी बॉडी भी बहुत अच्छामहसूस करती है. वो अपने खाने को बहुत चाव से स्वाद लेकर खाते हैं, उनमें कोई गिल्ट नहीं होता है.
क्या आप ऐसा नहीं करना चाहेंगे ? क्या आप इंटूइटिव ईटर नहीं बननाचाहते? इस बुक में आप उन 10 प्रिंसिपल्स के बारे में सीखेंगे जो आपको इंटूइटिव ईटरबनाने में मदद करेगा. एक एक करके इन स्टेप्स को सीख कर आप अपने करंट ईटिंग स्टाइल से इंटूइटिव ईटर बन सकते हैं.

इमेजिन कीजिये कि ये आपकी लाइफ को कितना चेंज कर देगा.आप सोच रहे होंगे कि ये बुक हमें ऐसा क्या स्पेशल सिखाएगा. ये हमें खाने में ज्यादा interest लेना और उसके साथ एक अच्छा रिश्ता बनाना सिखाएगा, हमें अपने आप को कैसे खुश रखना है ये सिखाएगा और लाइफ को और ज्यादा कैसे एन्जॉय करना है ये सिखाएगा. फ़ूड हमारी सबसे बेसिक ज़रुरत है, इसे हम कभी अवॉयड नहीं कर सकते हैंइसलिए बहुत ज़रूरी है किइसके साथ हमारा एक पॉजिटिव रिलेशन हो ताकिकुछ खाने के बाद हमें गिल्ट नहीं ख़ुशी और सैटिस्फैक्शन मिले.तो आईये शुरू करते हैं.

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हिटिंग डाइट बॉटम  (HITTING DIET BOTTOM)

सैंड्रा बिलकुल हिम्मत हार चुकी थी. उसनेहर तरह के डाइट ट्रिक को ट्राय करके देख लिया था  फिर भी उसका वेट कम नहीं हो रहा था. उसने  डॉक्टर्स  एवलिन  और  एलिस को कहा की वो दोनों अब उसकी लास्ट होप हैं.

वो जब भी कोई नई डाइट स्टार्ट करती थी तो बहुतएक्साइटेड होती थी, बहुत होप के साथ स्टार्ट करती थी. वो सोचती थी कि इस बार ये नई डाइट काम करेगी और उसका वेट कम हो जाएगा. शुरू शुरू में उसे ये सब बहुत अच्छा लग रहा था, वो बहुत सीरियसली डाइट फॉलो करती थी.लेकिनकुछ दिन डाइटिंग करने और खुद को भूखा रखने के बाद वो फिर से अपने पुराने डाइट पर आ जाती थी और ज़रुरत से ज्यादा खा लेती थी.

ऐसाबार बार करने से अब सैंड्राहर समय बस खाने के बारे में ही सोचती थी. उसे अपनी बॉडी बिलकुलपसंद नहीं थी. वो खुद को दोष देने लगी थी कि उसने ठीक से और डिसिप्लिन से डाइट फॉलो नहीं किया और खुद को कण्ट्रोल नहीं किया.सैंड्रा ये नहीं समझ पा रही थी कि ये उसकी गलती नहीं है और उसे खुद को ब्लेम नहीं करना चाहिए. डाइटिंग करके खुद को भूखा रखने का ये तरीका ही गलत है.ऐसाइस प्रोसेस की वजह से होताहै क्योंकि ये प्रोसेस बिलकुल गलत है.

डॉ.एवेलिन  और डॉ. एलिस के हिसाब से इस ईटिंग हैबिट की वजह से सैंड्रा डिस्टर्ब रहने लगी थी, खाना उसे एक दुश्मन के जैसा लगने लगा था. डाइटिंग की वजह से वो खुद को दोष देने लगी थी. डाइटिंग ने उसके मेटाबोलिज्म को स्लो कर दिया था. मेटाबोलिज्म मतलब हमार्री बॉडी का वोप्रोसेस जो खाने को पहले ब्रेक करता है और फिर उसे एनर्जी में कन्वर्ट कर देता है.

लेकिन ये सिर्फ सैंड्रा के साथ नहीं हुआ था.ज्यादातरलोग इस डाइटिंग की सोच को बहुत पसंद करते हैं,सैंड्रा जैसे बहुत लोगों ने ये सबexperience किया है .सैंड्रा कीऐज जब 14 साल थी तब उसने डाइटिंग करना शुरू किया था, आज वो 30 साल की है लेकिन अभी भी अपनी बॉडी से खुश नहीं है. इतने साल डाइटिंग करने के बाद भी उसका वेट कम नहीं हुआ था. उसे बहुत गुस्सा आने लगा था, वो बहुत नाखुश थी. डॉ.एवेलिन  और डॉ. एलिस काकहना  है कि इंसान जितना ज्यादा डाइट करने की कोशिश करता है उतना हीज्यादा इसके फेल होने के चांसेस होते हैं औरउसका कारण है डाइट बैकलैश मतलब डाइटिंग के नेगेटिव रिएक्शन.

डाइटिंग करने के बहुत नुक्सान भी होते हैं, उनमें से कुछ हम आपको बताने जा रहे हैं. पहला, क्योंकि डाइटिंग करते समय कुछ चीज़ों को बिलकुल बंद करना पड़ता है तो उन चीज़ों के लिए क्रेविंग बहुत बढ़ जाती है, उसे खाने की और ज्यादा इच्छा होती है जैसे “सिनफुल फ़ूड” , जिसमें बहुत कैलोरीज होती हैं जैसेआइसक्रीम और पिज़्ज़ा. दूसरा, जबलोगों का डाइट प्लान पूरा हो जाता है तो वो “बिंज” करने लगता है मतलब उन्हें इतनी इच्छा होती है अपने पसंद का खाना खाने की कि वो बहुत ज्यादा खा लेतेहैं और उसे बाद उन्हें बहुत बुरा लगता है कि उन्होंने कण्ट्रोल नहीं किया जिसकी वजह से उनका डाइटिंग करना बेकार हो गया.

तीसरा साइड इफ़ेक्ट है, खुद को लोगों से दूर करके अलग रहना – जिसे “सोशल विथड्रॉवल” कहते हैं. ये लोग पार्टीज में जाना बंद कर देते हैं. फ्रेंड्स औरफैमिली को भी अवॉयड करने लगते हैं.ये अपने बारे में अच्छा फील नहीं करते और इनका खुद पर भरोसा ख़तम होने लगता है. इनका कॉन्फिडेंस बहुत कम हो जाता है.

चौथा साइड इफ़ेक्ट है स्लो मेटाबोलिज्म. आइये एक इंटरेस्टिंग बात जानते हैं. जब आप डाइटिंग करते हैं तो खुद को भूखा रखना शुरू करते हैं, धीरे धीरे आपकीबॉडी को इसकी आदत हो जाती है. आपके बॉडी को लगने लगता है कि कुछ टाइम बाद इससे भी कम खाना मिलेगा और इसलिए ये digestion प्रोसेस को स्लो कर देता है. अब खाना को ब्रेक करने और उसे एनर्जी में कन्वर्ट करने में ज्यादा समय लगता है. हमारी बॉडी ऐसे रियेक्ट ना करे इसलिए बहुत ज़रूरी है कि जितनाहमारीबॉडी को ज़रुरत है उतना खाना खाया जाए.

फिफ्थ साइड इफ़ेक्ट है ईटिंग डिसऑर्डर,जिसे खाने का रोग या गड़बड़ी भी कह सकते हैं. डाइटिंग करने वालों को अलग अलग तरह के डिसऑर्डर हो सकते है जैसे एनोरेक्सिया (anorexia) जिसमें इंसान बिलकुल खाना बंद कर देता है. दूसरा है बुलिमिया (bulimia)  जिसमें इंसान हर समय खाता ही रहता है, उसे हर समय भूख लगती है.तीसरा है कंपल्सिव ओवरईटिंग जिसमें इंसान अपना कण्ट्रोल ही खो देता है और जबरदस्ती ज्यादा खाने लगता है.

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