(Hindi) VIVEKANANDA A Biography.

(Hindi) VIVEKANANDA A Biography.

इंट्रोडक्शन (Introduction)

क्या आपने भगवान् को देखा है ? कुछ इसी तरह के सवाल स्वामी विवेकानंद पूछा करते थे जब वो बच्चे थे. उन्होंने दुनिया की हर सुख सुविधा देने वाली चीज़ को छोड़ दिया था. सिर्फ एक डंडे और कटोरेके साथ उन्होंने पूरे इंडिया की सैर कर ली थी. वो भगवान को देखना चाहते थे और वो जल्दी ही इसमें सफल भी हो गए.

इस बुक में आप स्वामी विवेकानंद के लाइफ के बारे में पढेंगे. वो जब बच्चे थे तो कैसे थे? वो कैसे इतने महान लीडर बने ? उनमें ऐसा क्या था जो अमेरिका में सब उन्हें इतना पसंद करते थे ? क्या है उनकी कहानी, उनके गोल्स और क्यों उन्हें आज भी इतना याद किया जाता है? इस बुक में आप ये सब और भी बहुत कुछ जानेंगे.

अपनी खोज में स्वामी विवेकानंद ने अक्सर खुद को अकेला, भूखा और किसी ना किसी सोच में खोया हुआ महसूस किया. उनके पास बस उनका विश्वास था कि उन्हें जो चाहिए वो उन्हें ज़रूर मिलेगा. और एक दिन उन्होंने भगवान को देख लिया. उन्हें अपनी लाइफ का गोल मिल गया था, उन्हें साफ़ पता था कि उन्हें क्या चाहिए और जल्द ही उन्होंने उसे अचीव भी कर लिया था. स्वामी विवेकानंद ने हमेशा अच्छा काम ही किया था शायद इसलिए उनके पास खुद अच्छी चीज़ें आ जाती थीं.

अर्ली इयर्स (Early Years)

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 में मकर संक्रांति के दिन हुआ था (मकरसंक्रांति जो एक फेस्टिवल है). उस दिन गंगा नदी के किनारे बहुत से लोग पूजा करने आते थे. स्वामीजी के घर से उन सब की पूजा और आरती की आवाज़ सुनाई दे रही थी.

उनकी मदर भगवान् पर विश्वास करती थीं. वो बहुत पूजा पाठ किया करती थीं ताकि उन्हें एक ऐसा बेटा मिले जो उनके फेमिली का नाम ऊँचा कर सके. एक दिन उनकी मदर  भुवनेश्वरी देवी ने सपने में भगवान् शिव को देखा. उन्होंने देखा भगवान् उनसे कह रहे थे कि वो उनके बेटे के रूप में जन्म लेंगे. ये सुन कर वो बहुत खुश हो गयी, उनके आँखों में ख़ुशी के आंसू आ गए थे.

इसीलिये भुवनेश्वरी अपने बेटे का नाम विरेश्वर (vireswar), जोकि भगवान् शिव का एक और नाम है, रखना चाहती थी लेकिन उनके फैमिली ने स्वामीजी का नाम नरेन्द्रनाथ रखा. उन्हें सब प्यार से नरेन कह कर बुलाते थे.

किसे पता था कि नरेन बड़े हो कर “स्वामी विवेकानंद” बनेंगे जिनकी सब इतनी रिस्पेक्ट करेंगे. हिन्दू रिलिजन के लिए उनका लगाव बचपन से ही साफ़ साफ़ दिखाई देता था. उनका जन्म कलकत्ता के दत्ता परिवार में हुआ था. उनके परिवार में सब बहुत इंटेलीजेंट और पढ़े लिखे थे और हमेशा दूसरों की मदद करते थे जिसकी वजह से उनका बहुत नाम था, सब उनको बहुत मानते थे. नरेन के फादर कलकत्ता हाई कोर्ट में लॉयर थे.
नरेन अपने फादर की तरह कम और अपने ग्रैंड फादर की तरह ज्यादा थे.

उनके फादर को सब सुख सुविधाएं अच्छी लगती थी मगर नरेन को साधु के जैसे सिंपल  रहना पसंद था. उनके जीवन की पहली टीचर उनकी मदर थीं. उन्होंने नरेन को अल्फाबेट और कुछ इंग्लिश के वर्ड्स सिखाए थे. वो उन्हें रामायण और महाभारत की कहानियाँ भी सुनाती थी. छोटे नरेन को राम जी की कहानी बहुत पसंद थी. उन्हें राम एक हीरो की तरह लगते थे जिन्होंने अपनी वाइफ सीता को बचाने के लिए लड़ाई तक कर ली थी.

नरेन सब बच्चों से अलग थे शायद इसलिए उन्हें सपने भी सबसे अलग आते थे. उन्हें लगता था कि हर बच्चे को ऐसे सपने आते होंगे और इसमें कोई बड़ी बात नहीं है. एक बार उन्हें सपने में एक चमकता हुआ बॉल दिखाई दिया जिसमें से बहुत रौशनी निकल रही थी और  जिसका रंग बदलता जा रहा था.वो बॉल धीरे धीरे और बड़ा हो रहा था और एक पॉइंट पर आकर वो फूट गया. फिर उससे निकलने वाली वाइट रौशनी उनके ऊपर गिरने लगी और उन्हें पूरी तरह से ढक लिया.

छोटी उम्र में भी वो लोगों पर अलग अलग रिलिजन जैसे हिन्दू मुस्लिम और अमिर गरीब में भेदभाव करने के लिए सवाल उठाते थे. एक दिन उन्होंने अपने फादर के ऑफिस में टबैको पाइप का एक बॉक्स देखा. ये उनके फादर के क्लाइंट्स के लिए था. अलग अलग हिन्दू कास्ट के लिए एक बॉक्स और मुस्लिम के लिए अलग बॉक्स रखा था. नरेन् ने हर बॉक्स में से टबैको पाइप लेकर ट्राय किया. उनके फादर ने जब ये देखा तो उन्हें बहुत डांटा पर नरेन् के कहा “मुझे तो इनमें कोई फर्क दिखाई नहीं देता”.

नरेन् को हमेशा हर बात जानने की इच्छा रहती थी. एक बार उन्होंने अपने फादर से पूछा “आपने मेरे लिए क्या किया है”? उनके फादर बहुत समझदार थे. उन्होंने नरेन् को दर्पण में खुद को देखने के लिए कहा और बोले “अपने आप को इस दर्पण में देखो तो समझ जाओगे की मैंने तुम्हारे लिए क्या किया है”.

उन्होंने फिर एक दिन पूछा “पिताजी मुझे अपनी कैसी इमेज को दुनिया के सामने रखना चाहिए”? उनके फादर ने कहा “बेटा, कभी किसी चीज़ को देख कर सरप्राइज मत होना”. यही कारण था कि नरेन् ने सीखा- सबकी रिस्पेक्ट करनी चाहिए और किसी को हर्ट नहीं करना चाहिए. जब वो मोंक (मोंक मतलब जो साधू के जैसे रहते हैं) बन गए तब चाहे वो किसी राजा के महल में जाते थे या किसी गरीब के घर में, वो हमेशा एक जैसा व्यवहार रहते थे, उन्हें अमीर गरीब से कोई फर्क नहीं पड़ता था.

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ऐट द फीट ऑफ़ रामकृष्ण   (At the Feet of Ramakrishna)

नरेन् जब छोटे थे तो एक दिन उन्हें दो तरह के सपने आए. पहला, एक बहुत पढ़ा लिखा आदमी है जिसके पास बहुत पैसा है और सोसाइटी में उसका नाम बहुत ऊँचा है. उसके पास एक बहुत सुन्दर घर भी है, उसकी वाइफ और प्यारे प्यारे बच्चें हैं. दूसरा, एक मोंक जो एक जगह से दूसरी जगह घुमते रहते हैं. उन्हें सिंपल लाइफ पसंद है. पैसा और दूसरी सुख सुविधा देने वाली चीज़ें उन्हें खुश नहीं करती, उनकी बस यही इच्छा है कि वो भगवान् को जानें और उनके और पास चले जाएं.

नरेन् जानते थे कि वो इनमें से कुछ भी बन सकते थे. उन्होंने बहुत गहराई से सोचा और उन्हें एहसास हुआ कि वो एक मोंक की तरह ही जीना चाहते थे. दुनिया में क्या क्या नया इन्वेंट हो रहा है, क्या नया अचीवमेंट हो रहा है इसमें तो उन्हें कोई इंटरेस्ट नहीं था. उनके पास एक क्लियर गोल था, उन्हें भगवान् को देखना था, उन्हें एक्सपीरियंस करना था कि भगवान् से मिलना कैसा लगता होगा. वो चाहते थे कि कोई ऐसा इंसान उन्हें रास्ता दिखाए जिन्होंने खुद ये एक्सपीरियंस किया हो, जिन्होंने खुद भगवान् को देखा हो.

अपनी इसी खोज में उन्होंने ब्रह्म समाज को ज्वाइन किया. एक दिन उन्होंने इस ग्रुप के लीडर से पूछा “सर क्या आपने भगवान् को देखा है?” उनकी बात सुनकर देवेन्द्रनाथ बहुत सरप्राइज हुए. उन्होंने नरेन् का मन बहलाने के लिए कहा कि “बेटे तुम एक साधू के जैसे हो, तुम्हें ज्यादा मैडिटेशन करना चाहिए”.
उनकी बात सुन कर नरेन् उदास हो गए, उन्हें लगा जैसा टीचर वो चाहते हैं ये वैसे नहीं हैं. उन्होंने बहुत सारे लोगों से पूछा, बहुत पता लगाया लेकिन उन्हें जो चाहिए था वो उन्हें नहीं मिल रहा था. फिर उन्होंने रामकृष्ण के बारे में सुना, जिनका मन इतना साफ़ था और जो इतनी गहराई से मैडिटेशन करते थे कि उन्होंने भगवान् को महसूस किया था.

नरेन् श्री रामकृष्ण से दक्षिणेश्वर मंदिर में मिले थे. वो नरेन् से मिल कर बहुत इम्प्रेस हुए. नरेन् ने पूरे मन से भजन गा कर सुनाए. रामकृष्ण समझ गए कि नरेन् दूसरे बच्चों से अलग है. ऐसा लगता था जैसे नरेन् की आँखें हमेशा मैडिटेशन में ही लीन रहती थी. वो अपने कपड़ों या वो कैसे दिख रहे हैं उस पर बिलकुल ध्यान नहीं देते थे. मास्टर रामकृष्ण बहुत खुश थे कि फाइनली उन्हें एक ऐसा स्टूडेंट मिला जिसके साथ वो अपने विचार को शेयर कर सकते थे.

रामकृष्ण को छोड़ कर कभी किसी टीचर ने नहीं कहा था कि उन्होंने भगवान् को सच में देखा है. अब नरेन् को विश्वास हो गया था कि वो जिन्हें खोज रहे थे वो उन्हें मिल गए हैं. एक दिन उन्होंने पूछा “मास्टरजी क्या आपने भगवान् को देखा है”? मास्टरजी ने कहा “हाँ मैंने भगवान् को देखा है. जैसे मैं तुम्हें देख पा रहा हूँ वैसे ही मैं भगवान् को भी देख सकता हूँ. भगवान् को देखा जा सकता है, उनसे बातें की जा सकता है. लोग अपने फैमिली, पैसा, प्रॉपर्टी के लिए रोते हैं मगर भगवान् की एक झलक देखने की इच्छा किसी में नहीं है, कोई उन्हें देखने के लिए आंसू नहीं बहाता. अगर कोई सच में भगवान् को देखना चाहता है तो वो उन्हें देख सकता है”. ये सुन कर नरेन् के मन को बहुत शान्ति मिली.

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