(Hindi) The Art of Public Speaking

(Hindi) The Art of Public Speaking

परिचय (Introduction)

क्या आपने कभी अकेले पूरी क्लास के सामने प्रेजेंटेशन दिया है ? क्या कभी ऐसा हुआ है कि आप स्टेज पर हो और हज़ारो लोगो की नजरे सिर्फ आप पर टिकी हो ? क्या आप भी कोई स्पीच देने से पहले नर्वस फील करते हो ? अगर इन सारे सवालों का जवाब हाँ है तो ये बुक पढ़के देखे. ये आपके दिल से पब्लिक स्पीकिंग का डर हमेशा के लिए निकाल देगी. अब ज़रा सोचो कि आपको स्कूल के एक इवेंट में कुछ बोलना है. अब इस बात के पूरे चांसेस है कि आप ये सोचकर ही टेंशन में आ जाओगे कि किस टॉपिक पर बोलना है.

लेकिन टेंशन की कोई बात नहीं क्योंकि आपके लिए टॉपिक चूज़ करने से लेकर स्पीच डिलीवर करने के मेथड तक, हर चीज़ में ये बुक आपकी हेल्प करेगी. डेल कार्निज लिखते है” द आर्ट ऑफ़ पब्लिक स्पीकिंग” उन लोगो के लिए है जिन्हें पब्लिक स्पीकिंग के नाम से ही पसीने छूटते है. इस बुक में उन्होंने कई सारे टिप्स दिए है जिन्हें पढकर आप भी एक ग्रेट पब्लिक स्पीकर बन सकते है. इस बुक के अंदर कई सारे चैप्टर्स है जिसमे पब्लिक स्पीकिंग के डिफरेंट टॉपिक्स लिए गए है.

हर चैप्टर के एंड में कुछ सवाल और एकसरसाईंजेस दिए है जो आपको जानने में हेल्प करेंगे कि चैप्टर आपको कितना समझ में आया है. आपको और गाइडेंस देने के लिए हर चैप्टर के अंदर कुछ सेलेक्शन और पैसेजेस भी है जिन्हें आप मेन टॉपिक के एक्जाम्पल की तरह यूज़ कर सकते है. लेकिन कोई भी चैप्टर अवॉयड ना करे क्योंकि हर चैप्टर में एक लेसन है और अलग यूज़ है.

चैप्टर 1 (Chapter 1)
अक्वाइरिंग कांफिडेंस बीफोर एन ऑडियंस (Acquiring Confidence before an Audience
ऑडियंस के सामने कांफिडेंस बनाकर रखना

हमे बोलते हुए कोई देख रहा है, ओब्ज़ेर्व कर रहा है, ये सोचकर ही अक्सर हम सेल्फ कांशस हो जाते है. लोग हमे जजमेंट करेंगे ये ख्याल हमेशा हमारे मन में रहता है. लेकिन सवाल ये है कि क्या हमे इस डर को खुद पे हावी होने देना चाहिए?

अब सवाल है कि इस डर से बाहर कैसे निकले? तो जवाब है–फेस इट, यानी डर का सामना करो. आपको ऑडियंस के सामने स्पीच देनी है, फियर ऑफ़ पब्लिक स्पीकिंग यही से स्टार्ट होती है. कई लोगो की आँखे आपको देख रही है, ये सोचकर ही आप नर्वस होने लगते है, राईट? इस डर से निकलने के लिए आपको बार-बार प्रेक्टिस करनी होगी, जितना हो सके उतना पब्लिक के सामने बोलने की कोशिश करनी होगी. इसके बाद जल्दी ही आपकी हेज़िटेशन भी दूर हो जायेगी और कांफिडेंस बिल्ड होगा. इसलिए जितना हो सके पब्लिक के सामने बोलने की प्रेक्टिस करो, आपके अंदर का डर खुद ब खुद हट जाएगा.

पहली कोशिश में मिस्टेक हो सकती है मगर डरने की कोई बात नहीं. दुनिया में कोई भी परफेक्ट नही होता. पहली बार में सबसे गलती होती है. लेकिन लगातार प्रेक्टिस करते रहो ताकि नेक्स्ट टाइम आप बैटर कर सको. दुनिया के बेस्ट मास्टर स्पीकर्स में से एक डेनियल वेबस्टर अपनी फर्स्ट स्पीच के दौरान इतने नर्वस हो गए थे कि वो स्पीच बीच में ही छोडकर वापस अपनी सीट में जा बैठे थे.

इस बुक में दिए गए फाइव स्टेप्स आपको बताएँगे कि ऑडियंस के सामने कांफिडेंस कैसे बनाये रखे. फर्स्ट स्टेप है” आपकी ऑडियंस आपको ओब्ज़ेर्व करती है इसलिए आपको अपनी ऑडियंस पर फोकस करना है. क्योंकि यही वो लोग है जिनसे आपको डायरेक्ट बात करनी है नाकि दिवार पे लटकी घड़ी से और ना ही उस प्लेटफोर्म से जिस पर आप खड़े है. इस बात पे कांसेंट्रेट करे कि आप पब्लिक को क्या मैसेज देना चाहते है. सेकंड स्टेप, जो भी आपको बोलना है, उसकी तैयारी करके आए.

अपनी स्पीच को अच्छे से याद कर लो, एक खाली दिमाग के साथ प्लेटफ़ॉर्म पर जाना बेवकूफी होगी. जब आपका माइंड खाली होता है तो आप दूसरी अनइम्पोर्टेंट चीजों के बारे में सोचने लगते हो, जैसे” मेरे बाल ठीक तो लग रहे है?” मै सही कर रहा हूँ या नहीं?’ अगर ,मै फेल हो गया तो”? तो सेल्फ कांफिडेंस बिल्ड करने के लिए आपको कुछ ऐसा चाहिए जिसके बारे में आप पूरे कॉंफिडेंट हो. और अगर आप पब्लिक स्पीकिंग कर रहे हो तो आपके पास स्पीच रेडी होनी चाहिए. ऐसा टॉपिक जिसके बारे में आपने रिसर्च किया हो, स्टडी किया हो. ज़ाहिर है आप ऑडियंस के सामने ऐसा कुछ नहीं बोल सकते जिसके बारे में आप खुद फेमिलियर नहीं है.

कॉंफिडेंट होना अच्छा है लेकिन ओवर कॉंफिडेंट होने से बचो. थर्ड स्टेप है” आफ्टर हेविंग सक्सेस एक्स्पेक्ट इट यानी सक्सेसफुल होने के बाद इसकी एक्सपेक्टेशन भी करो”. जैसे कि एक डिनर पार्टी में वाशिंग्टन इरविंग ने अपने फ्रेंड चार्ल्स डिकेन्सको इंट्रोड्यूस किया. चार्ल्स डिकेंस स्पीच दे रहे थे कि अचानक बीच में ही वो रुक गए, उन्हें इतनी शर्म आई कि वो अपने सीट पे जाकर बैठ गए. ये बड़ी अजीब सी सिचुएशन थी, वो साइड में बैठे अपने बेस्ट फ्रेंड की तरफ मुड़े और बोले” मैंने बोला था ना कि मुझसे नहीं होगा, देखा मै फेल हो गया” इसलिए हमेशा पोजिटिव एटीट्यूड रखो, अगर आप सोचोगे कि आपसे नहीं होगा तो डेफिनेटली आप फेल हो जाओगे.

फोर्थ स्टेप है” अज्यूम मास्टरी ओवर योर ऑडियंस” यानी आपको इमेजिन करना है कि ऑडियंस पर आपका पूरा कण्ट्रोल है”. आपने पढ़ा होगा कि इलेक्ट्रिसिटी में नेगेटिव और पोजिटिव फ़ोर्स होता है. तो या तो आप में  या आपकी ऑडियंस में कोई एक फ़ोर्स होगी. अगर आप पोजिटिव फील करोगे तो आपकी ऑडियंस भी पोजिटिव रहेगी. तो इसलिए ये सोचो कि आप एक कमाल की स्पीच डिलीवर कर सकते हो. एकदम नोर्मल और शांत रहो और चाहे कुछ भी हो जाए हिम्मत मत हारो.

फिफ्थ और लास्ट स्टेप है” जल्दबाजी मत करो” जैसा हमने पहले भी कहा है जितना हो सके कूल रहो, जैसा आपने प्रेक्टिस किया है, उसी हिसाब से चलो. जब आपको खुद पे 100% कांफिडेंस हो जाएगा तब आपको पता चलेगा कि पब्लिक स्पीकिंग इतना भी मुश्किल काम नहीं है जितना आप सोचते थे. याद रखो, खुद पे कांफिडेंस रखना बहुत इम्पोर्टेंट है, आप कर सकते हो, ये भरोसा रखो. डर को दूर भगाकर खुद पे बिलीव करो.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

चैप्टर 2 (Chapter 2
द सिन ऑफ़ मोनोटोनी (The Sin of Monotony)

टाइम के साथ इंग्लिश लेंगुएज में काफी चेंजेस आये है. और सबसे बड़ी बात ये है कि कुछ वर्ड्स के एक्स्ट्रा मीनिंग भी एड हो गए है जो पहले नहीं थे. जैसे कि लैक ऑफ़ वेरीएशन और रीपीटीटियस या डल को अब मोनोटोनस (monotonous बोला जाता है.
मोनोटोनस (monotonous)स्पीकर स्पीच के शुरू से लेकर एंड तक एक हो टोन में बोलता है. यही नहीं, वो अपनी पूरी स्पीच में सेम स्पीड और सेम एक्सप्रेशन देता है. कितना बोरिंग है ना राईट?

तो मोनोटोनी एक मोस्ट कॉमन मिस्टेक है जो ज्यादातर स्पीकर्स करते है. ऐसा स्पीकर एक थौट को दुसरे से अलग एक्सप्रेस नहीं कर पाता है, उसकी बोली हुई हर बात सेम लगती है. जहाँ उसे जोर देना होता है वहां भी सेम टोन होती है. इससे होता ये है कि ऑडियंस बोर होने लगती है, स्पीच में उनका इंटरेस्ट खत्म हो जाता है. अगर कोई आपके पास आकर बोले कि आपकी स्पीच मोनोटोनस (monotonous) लगी तो बुरा मत मानो. क्रिटिसिज्म एक्सेप्ट करना सीखो और इम्प्रूवमेंट लाने की कोशिश करो. स्पीच देंते वक्त उन वर्ड्स या फ्रेजेज़ पर ज्यादा जोर दो जो आप ऑडियंस के नोटिस में लाना चाहते हो. और जहाँ ज़रूरत हो वहां अपनी टोन का वोल्यूम कम या ज्यादा कर सकते हो. कुछ लोगो का मानना है कि मोनोटोनी हमारी लिमिटेशन शो कराता है.

ये हमें बताता है कि हमे और कितना इम्प्रूव करना है. मोनोटोनी और गरीबी एक जैसी चीज़ है. डिपेंड करता है कि आपको इस गरीबी से छुटकारा पाना है कि नहीं. अपनी स्पीच में वेराइटी इनक्रीज करने के कुछ और तरीके सोचो, स्पीच को इंटरेस्टिंग बनाओ बोरिंग नहीं. एक ओर्गेनिस्ट के पास कुछ खास कीज़ मालूम होते है जिससे वो हारमोनी कण्ट्रोल करता है. एक कारपेंटर के पास स्पेशल टूल्स होते है जिससे वो बिल्डिंग के डिफरेंट पार्ट्स कंस्ट्रक्ट करता है. स्पीकर भी कुछ ऐसा ही होता है.

उसके पास भी कुछ स्पेशल टूल्स होते है जीससे वो अपनी स्पीच की मोनोटोनी कण्ट्रोल कर सकता है. उसे मालूम है कि कहाँ पर जोर देना है, कहाँ पर फीलिंग्स एक्सप्रेस करनी है और कैसे अपने ऑडियंस के बिलिफ्स को गाइड करना है. स्पीच में वेरिएशन देना आपकी केपेबिलिटी से बाहर की चीज़ है, एक या दो दिन की प्रेक्टिस से कुछ नहीं होने वाला इसलिए ज्यादा से ज्यादा प्रेक्टिस करो. या तो अकेले में करो या ऑडियंस के सामने करो.

अगर ऑडियंस के सामने प्रेक्टिस करोगे तो ज्यादा अच्छा है. वो आपको फीडबैक दे सकते है कि कहाँ पर इम्प्रूवमेंट की ज़रूरत है. लेकिन अगर आपके पास कोई ऑडियंस नहीं है तो खुद ओब्ज़ेर्व करो और देखो कि कहाँ कमी है. नैचुरल वे में बोलना थोडा बोरिंग लगता है इसलिए थोडा ड्रामा क्रियेट करो. अपने हार्ड वर्क से आप एंडलेस पोसिबिलिटीज एक्सप्लोर कर सकते हो और एक स्पीकर के तौर पे अपनी स्किल्स को इम्प्रूव कर सकते हो.

चैप्टर 3 ( Chapter 3
एफिशिएंसी थ्रू एम्फेसिस एंड सबओर्डीनेशन (Efficiency Through Emphasis and Subordination)

कोई स्पीकर जब स्पीच देते टाइम डिफरेंट टोन यूज़ करे या किसी रेंडम सेंटेंस पर जोर दे तो ज़रूरी नहीं कि उसे रिजल्ट भी बढ़िया मिलेगा. आप हर एक वर्ड पर जोर नहीं दे सकते क्योंकि कुछ वर्ड्स इतने इम्पोर्टेंट नहीं होते. अब जैसे इस सेंटेंस को ले लो” डेस्टिनी इज़ नोट अ मैटर ऑफ़ चांस”, इट्स अ मैटर ऑफ़ चॉइस” अब यहाँ पर आप डेस्टिनी वर्ड पे जोर दोगे क्योंकि ये आपकी बात का मेन आईडिया है, फिर आप नोट पर जोर दोगे ये बताने के लिए कि डेस्टिनी एक चांस की बात है. लेकिन आपको चांस वर्ड पे भी जोर देना होगा क्योकि ये आपके सेंटेंस का दूसरा प्रिंसिपल आईडिया है. अब आप पूछोगे कि चांस पे क्यों जोर देना है तो जवाब ये है कि ये चॉइस का कंट्रास्ट है. और इससे दो कंट्रास्टिंग बातो पर जोर दिया जा रहा है.
अब आप इन दोनों सेंटेंस को पढो और कैपिटल लैटर में लिखे वर्ड्स पे जोर देकर बोलो.:

“डेस्टिनी इज़ नोट अ मैटर ऑफ़ चांस, इट इज़ अ मैटर ऑफ़ चॉइस”. (DESTINY is not a matter of CHANCE. IT IS A MATTER OF CHOICE.”

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

“डेस्टिनी इज़ नोट अ मैटर चांस, इट इज़ अ मैटर ऑफ़ चॉइस”. (DESTINY is NOT a matter CHANCE. It is a matter of CHOICE.”

दोनों में डिफ़रेंस है, राईट? एक एवरेज स्पीकर फर्स्ट सेंटेंस में उन वर्ड्स पे भी उतना ही जोर देगा जो ज्यादा इम्पोर्टेंट नहीं है. लेकिन अगर एम्फेसिस और सबओर्डीनेशन में एफिशिएंट है तो आप सेकंड सेंटेंस पे जोर देकर बोलोगे और ऑडियंस को वो वर्ड्स लाउड एंड क्लियर वे में हमेशा याद रहेंगे.
इस चैप्टर में एम्फेसिस का सिर्फ एक फॉर्म बताया गया है और वो है इम्पोर्टेंट वर्ड्स पे ज्यादा जोर देना और अनइम्पोर्टेंट वर्ड्स पे कम ज़ोर देना. हालाँकि हमे लाउडनेस को एम्फेसिस से कन्फ्यूज़ नहीं करना चाहिए.

कोई किसी वर्ड को जोर से बोलने का मतलब ये नहीं कि वो इम्पोर्टेंट है. और वैसे भी ज़ोर-ज़ोर से बोलना इंटेलिजेंस की निशानी नहीं होती. एक स्पीकर को ये समझना होगा कि एम्फेसिस का कोई परमानेंट रुल नहीं है. क्योंकि हम पहले से नहीं बोल सकते कि किस वर्ड पे जोर देना है और किस पर नहीं. ये स्पीकर की इंटरप्रेशन पर डिपेंड करता है, और ज़रूरी नहीं कि हर स्पीकर सेम इंटरप्रेट करे. इसमें राईट क्या है और रोंग क्या, ये बताना मुश्किल है. बस हमारे माइंड में ये प्रिंसिपल रहना चाहिए.

TO READ OR LISTEN COMPLETE BOOK CLICK HERE

SHARE
Subscribe
Notify of
Or
guest

0 Comments
Inline Feedbacks
View all comments